
शकुनाखर - पुण्याह वाचन गीत
प्रस्तुति: तारा पाठक
रामी चँद्र, लछीमण दीना छन धरमी धरो,
एहो धरमी धरो।
सीता देही, बहूराणी दियो बडो़ दान तो बाडा़ रे अमीरों लै,
सम्पती पुरीयां लै।
ऐवान्ती मंगल देलीन, ब्राह्मण बेद पढे़।
सोहागिली मंगल देलीन, ब्राह्मण बेद पढे़।
(घरा बैगों और च्यालों नाम) दीना छन धरमी धरो,
ऐहो धरमी धरो।
(घरा सुहागिली-सुंदरी ,मंजरी) दीयो बडो़ दान तो बाडा़ अमीरों लै,
संपती पुरीयां लै।
ऐवान्ती मंगल देलीन ब्राह्मण बेद पढे़,
सोहागिली मंगल देलीन ब्राह्मण बेद पढे़।
(पुण्याह वाचन पुज करण लै शुभकाज में मंगलदायी मानी जां,यै अर्थ छ-पुण्य वचन, (आशिर्वाद)पुरोहित जजमान कें अशीष दिनी तुमर काम भली कै निभि जौ और जजमान उनूं कें दक्षिण दिनी।पुण्याह वाचनक् टैम पर पुरोहित,चेली -बेटी ,गिदार सबों कें दक्षिण दिई जें।
मली गीतक् भाव छ कि -शुभकाज करणी जजमान धार्मिक प्रवृत्तिक छन ।इनरि घरिणी दानशील छन ,यो बाड़ अमीर (ठुल सोच वाल)छन,सम्पत्तीवान छन।यो काज में सुहागिली मंगल गीत गाणी और पुरोहित जजमान कें आशिर्वाद दिणी।बेद व्याख्या करणी।)

तारा पाठक जी द्वारा उत्तराखण्डी मासिक: कुमगढ़ पर पोस्ट से साभार
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