
कुमाऊं में बागेश्वर का ऐतिहासिक उत्तरैणी मेला
इतिहास के झरोखे से।
लेखक: दुर्गा दत्त जोशी
मित्रो आप सबको प्रणाम।
मित्रो, कुमांऊं के बागेश्वर में लगने वाला उत्रैणी
मेला विश्व प्रसिद्ध है। इसे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और पौराणिक मेले की
महत्व मिला है। स्कंध पुराण के मानस खंड के अनुसार बागेश्वर में जहां आज
हजारों साल पुराना शिव मंदिर है यहां शिव बाघ के रूप में प्रकट हुए थे
इसलिए यहां ब्याघ्रेश्वर महादेव स्थापित हैं जो भक्तों की हर मनोकामना पूरी
करते हैं। इसलिए यहां उत्रैणी मेले का पौराणिक महत्व है।
इस
मेले में कुमाऊं की संस्कृति की झलक मिलती है इसलिए इसका सांस्कृतिक महत्व
है। इस मेले में कुमाऊँ का शिल्प, लोक कला, ऊनी वस्त्र, तांबे पीतल के
कलात्मक व घर में प्रयोग में आने वाले बरतन, बांस की कंडी छपरे सूप, फल
मेवे व कुमाऊँ के गायक लोक कलाकार लोक गीत लोक नर्तक, छोलिया डांसर आदि
बहुत किस्म की कुमाऊँनी कलाएं प्रदर्शित होती है, जिसे देखने देश विदेश से
लोग आते हैं।

इतिहास की बात करें तो, अंग्रेजी हुकूमत की नींव 27
अप्रेल 1815 को पड़ी थी। हालाकि अंग्रेजों ने भी कुमांऊं में काफी आतंक
फैलाया लेकिन वे गोरखों से कुछ बेहतर साबित हुए। गोरखे जो बिना सोचे समझे
लूट खसोट मनमानी कर रहे थे अंग्रेजों ने बकायदा नियम कानून बनाकर लूटा।
उन दिनों पहाड़ों में आज की तरह सड़कों का जाल नहीं था। सभी को पैदल,
पालकी या घोड़े खच्चरों के माध्यम से इधर उधर आना जाना पड़ता था। अंग्रेजी
नौकरशाही हुकूमत ने सभी गांवों के मालगुजार जो गांव में लगने वाले कर
इकट्ठा कर आगे पहुंचाते थे को आडर दिया कि वे एक कुली उतार रजिस्टर बनाएं
जिसमें गांव के अठारह से साठ साल के आदमियों का नाम दर्ज हो। जब भी कुली की
जरूरत पड़े रजिस्टर पटवारी या पेशकार को दें वे जिसे भी बुलाएं वह तुरंत
बोझा ढोने निर्देशित जगह पर हाजिर हो। उसके न आने आनाकानी करने पर उसे
दंडित किया जाय। मजदूरी भी मनमानी थी कभी देते कभी नहीं भी देते। रजिस्टर
में बड़े रसूखदारों के नाम भी थे।
मित्रो, अंग्रेजों के इस तुगलगी
फरमान के खिलाफ कुमांऊ परिषद ने 1921 मे काशीपुर में एक प्रस्ताव पास कर
कुली उतार के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। कुमाँऊ केसरी पं. बद्री दत्त पांडे
जी के नेतृत्व में बागेश्वर में पतित पावनी सरयू के तट पर उत्तरायणी के दिन
चालीस हजार कुमांऊनी वीरों ने कुली उतार रजिस्टर सरयू में बहाए, और कुली
उतार को बंद करने के लिए अंग्रेजों को बाध्य किया। मित्रो इस आंदोलन को
विफल करने के लिए अंग्रेजों ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। 15० सिपाही 21
अंग्रेज अफसर ड्यूटी पर लगाए गए थे, जिलाधीश ने नेताओं को गिरफ्तार करने की
चेतावनी दी थी। लेकिन 40000 लोगों की भीड़ जो गजब के उत्साह में थे जिन पर
बल प्रयोग करने का साहस अंग्रेज नहीं कर पाए। बताते है उनके पास गोला
बारूद की कमी थी इतने लोगों का उत्रैणी मेले में बागेश्वर जैसी दूरस्थ जगह
पर अकस्मात आ जाने से अंग्रेज अफसर भौचक रह गए थे। लोगों की भीड़ से घबराकर
अंग्रेजों ने सरयू पार शरण ली। इस घटना को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के
इतिहास में एक अनूठा आंदोलन इतिहासकार आज भी मानते हैं।

जब
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी को इस.आंदोलन की जानकारी मिली वे 1929 को
यहां के नेताओं को बधाई देने बागेश्वर आए। यहां सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता
सेनानी मोहनजोशी जी द्वारा संचालित स्वराज मंदिर की नींव बापू ने रखी और
पंद्रह दिन कौसानी में रहे। मित्रो अपने इतिहास की जानकारी हम सबको रखनी
चाहिए ताकि अतीत से सीख लेकर भविष्य संवारा जा सके।
संदर्भ ग्रंथ कुमाऊं का इतिहास
फोटो काल्पनिक

दुर्गा दत्त जोशी जी द्वारा फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी शब्द सम्पदा से साभार
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