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वीर बालक हरु सिंह हीत - कुमाऊँनी लोकगाथा (भाग-०१)

कुमाऊँ की लोकप्रिय लोकगाथा हरु सिंह हीत पर आधारित खंडकाव्य Famous folk tale of Kumaon "Haru Singh Heet"

वीर बालक हरु सिंह हीत

(भाग-०१)

कुमाऊँ की लोकप्रिय लोकगाथा पर आधारित खंडकाव्य

रचियता: खीमानंद
वीरगाथा को फ्लिपबुक फॉर्मेट में भी पढ़ सकते हैं

उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ अंचल में समय समय पर कई वीर-वीरांगनाओं ने जन्म लिया है जिनके सम्बन्ध में कई लोकगाथाएँ प्रचलित हैं।  कुमाऊँ की प्रमुख लोकगाथाओं में कत्यूरी जिया राणि, राजुला मालूशाही तथा हरु सिंह हीत आदि शामिल हैं।  यहां हम सल्ट परगने के एक शूरवीर राजा हरु सिंह हीत की वीरगाथा के बारे में जानेंगे, जिनका जीवन काल आज से लगभग २०० वर्ष पूर्व १७९० ई० से १८२० ई० के आसपास का माना जाता है।  यह उन दिनों का समय है जब अल्मोड़ा के सल्ट परगने में राजा समर सिंह (शायद वह कुमाऊँ के राजा के स्थानीय प्रतिनिधि होंगे, जिन्हें स्थानीय प्रजा राजा ही मानती है) का राज था। 

राजा समर सिंह के सात पुत्र थे और सातों एक से बढ़कर एक बलशाली शूरवीर थे। कहा जाता है तब सल्ट बहुत संम्पन्न राज्य था जिस कारण उनको मन में अहंकार आ गया था और वह भी आक्रमणकारी गोरखो की राह पर चल पड़े और प्रजा पर अत्याचार करने लगे।  प्रजा उनके अत्याचार से त्रस्त होकर हाहाकार करने लगी और तभी क्षेत्र में अचानक एक महामारी ने दस्तक दे दी। इस भयंकर महामारी के प्रकोप से राजा समर सिंह के के सातो पुत्रो का क्रमबद्ध सात दिन में निधन हो गया और आठवे दिन राजा समर सिंह भी चल बसा।

सात शूरवीर भाइयो और पिता समर सिंह की मृत्यु के समय बालक हरु सिंह हीत माता के गर्भ में था।  जब उस वीर बालक का जन्म हुआ तो उसकी माँ सात विधवा भाभियाँ ही उसके परिवार में जीवित थी।   कवि द्वारा लोकगाथा में हरू सिंह  हीत के माता व भाभियों द्वारा लालन पालन किये जाने, उसकी किशोरावस्था के वीरता के किस्सों और पिता के राज्य को स्थापित किये जाने से लेकर युवक हरू सिंह हीत के प्रति भाभियों की ईर्ष्या, उसके तिब्बत (भोट देश) की राजकुमारी मालू के सौंदर्य से प्रभावित होने पर वहां जाकर तिब्बत से राजकुमारी मालू को जीतकर उसके साथ वापस सल्ट आने, भाभियों द्वारा मालू की धोखे से हत्या करने, उसके बाद विरह में हरू सिंह हीत द्वारा माता के प्राण त्याग देने पर स्वयं की भी जीवन लीला समाप्त कर देने का किस्सा कुमाऊँनी भाषा में काव्य रूप में दिया गया है।

पुस्तक पीडीऍफ़ फॉर्मेट में Kumauni Archives पोर्टल पर उपलब्ध है, रचियता का नाम खीमानंद दिया गया है, पुस्तक में लिखे गए शब्द कई जगह स्पष्ट नहीं हैं फिर भी हमने पुस्तक के आधार पर उसका लिपीकरण करने की कोशिश की है।

पहला अध्याय-कवि का वर्णन
पंचनाम देव तुम है जया दयाल।
मूरखा का दिल मज करिया उज्वल।।
ईश्वर कौ ध्यान धरि उठानू कलम।
सब जग वीकी माया जलम थलम।।

धन धन हरि तुम, विष्णु भगवान्।
आघिनौ कौ लेखणौ कौ दिया वरदान।।
हृदय में बैठि जये सरस्वती माई।
गणेश ज्यु विघ्न हरि करिया सहाई।।
धन धन हरि तुम धन तेरी माया।
कसा कसा ज्यला हया सदा  क्वे निरया।।
सत्तर सौ नब्बे का मैं सुणानू यो हाल।
गोरखा लै जित जब अल्मोड़ा गढ़वाल।।
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समर सिंह के सात बेटों का हाल
तै बखतर समर सिंह गुजडू कोट मज।
सात च्यला सात ब्वारी चार पट्टी राज।।
तला पट्टी साल्ट मज समरू छी हीत।
कस छी बखत भया किसी छी ओ रीत।।
गुजडू कोट मज छिय तैक वसनाम।
चार दिन दुनिया में चले गया नाम।।
सात च्यला सात ब्वारी खूब झर पर।
चार पट्टी मालिक छ कैकी निहै डर।।
कुणखेत बारैडा में कमैं खणी स्यरा।
गुजडू कोट मज हैरे अन धनै ढेरा।
भारी सुख चैन हैरी भारी छी सम्पत्ति।
जब आनी बुरा दिन बैठी जैं कुमति।।
सात च्यला-समरू का भारी शूरवीर।
आई गय अभिमान निल्यना खातिर।।
सात बेटों का-आन जना लोगों की ओ लूटना रेशाला।
भलीभाली बाकरी कौ आई जांछा काला॥
अण ब्याह चेलियों को ठाकुर चारौ खानी।
वाट घट जैक भालै लै उघानी।।
दुखियों का-अणियाँ जणियां लोग है गई हारन।
बटा घटा बन्द हैगी सुणौ, भगवान।।
हमारी पुकार न्हैजो ईश्वरा दरवार।
गुजडू कोट मज हैरौं कस अत्याचार ।।
सातै च्यला मरीजै ओ ब्वारी हैजों रानी।
बिन वातै दुख दिनी यसा अभिमानीं।।
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जग जग सब लोग दौब जन गाई।
टोटली है जाली कनी नाजै कसी नाई।।
>तैबखता जर आया मुलुक तमान।
इलाका में फैली गया जादू की समान।।
कुछ दिन मज सब भला हुई गया।
आखरी में जर जब गुजडू कोट गया।।
जर है कुंजर हैगी गुजुडू का कोट।
कैमजी क्य दोष बाबू अपणौ छी खोट।।
जैकणी ओ जर आनी निऊठना ठाड़ा।
गुज्डू कोट मज लेगे दुखियों की डाड़ा॥
लीई गय अभिमान लींगय गरूर।
दुनिया की गाई बाबू लागीगे जरूर॥
सात च्यला समरू का पड़िया रेगया।
बारी बारी पर भया हंसी दूँग गया॥
सातै दिन मज तब सातै च्यला मरा।
सातै व्वारी रानी हैगी यस अया जरा ।।
साते च्यला मरीं गया एक ले निरय।
हाय करी समरू क कंठ रूकौ गया।।
आठों दिन समरुवा स्वर्गवास हया।
छै मैहैंन हरू हीत पेट मुया रया।।
एक छौ मेहड़ी हरूसात छै भौजिया।
देखण चहण मज मन का रौजिना॥
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भल मैसों च्यलीं छिया खानी दानी घर।
कसी जानी यथा उथा सरमें की डर।।
हरुवा का नाम पर उमर काटनी।
अन धन के निरय गैठी क्योला खानी।।
खानदानी घर छिय हई गई सेक।
शूर वीर मरी गई हरू रय एक।।
खीमानन्द कहणं छ घर लिया ध्यान।
द्वी दिन वचण हय निकय गुमान॥
जति शान्ति हलो ओती ईश्वरौ का वास।
अभिमा करि गया बड़ौ बड़ौ नास।।
हमरी क्य गिनती हई देवों को निरई।
गुज्डू कोट गरम लै कसी दसा भई॥
द्वीये स्यरा बजा हया बन्द है रकम।
निरहैगे डर कैकी नै कैक हुक्म॥
डर है निडर हैगो खुशी हया लोग।
सात च्यला मरी गया उड़ी गय भोग॥
महेणी भौजिया हरू करनी पालन।
जो पूछल दुशमन बताया लैं झन।।
हरूका-चार पांच बरस क हरूवा है गय।
पड़ण लिजायाँ तब स्कूल गय।।
दिन मरि इसकूल व्याल कौछ खेल।।
ननतिनों मज भयो पैली बटो मेल।
जस जैक काम हौछा उसै उं करनी।
मछा रनी पाणी जज बच्चा लै तैरनी।।
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क्वे होंछ दिवान वीक क्वे हैछा सन्तरी।
अफु होछ रज हरू ठाड़रों सन्तरी।।
एक दिन एक नान बनै हैल चोर।
हरूव हुक्म लैगो हात बांधों डोर॥
कान लै पकड़ी बेर मारनी द्वी लात।
आज बटि छोड़ी दिये चोरी की लै लत।।
चोर जो बनाय बाबू तैंक नाम मोती।
ऐसी बोली मारी बेले बात अण होती।।
चोर-गरभै लै खाय कोछा सात भाई त्यरा।
कार बार बन्द हय बांज हया स्यरा।।
चार पट्टी जिमीदार निदिना रकम।
डर है निडर  हैगो न कैक हुक्म।।
तब कौला च्यलौ छै तु उधालै रकम।
स्यर लै आबाद कलै दिद्यलैं हुक्म।।
चौद सालैं उमर छी हरुबैं की तब।
बदन में आग लैंगे बोली मारी जब।।
हरु का...एक दिन न्हैगो हरू महेड़ी का पास।
हाथ जोड़ी कोछ इजा अरज छ खास।।
खेती ममै कती खछी सात भाई म्यरा।
कती लै इलाक म्योर कती मेरा स्यरा।।
भेद झन छिपये तू सांची कये बात।
भेद जै छिपाली इजा कौला जीव घात।।
माता का-यतु बात सुणी मां कौ हिय भरि आय।
को हनल दुश्मर भेद जो बताय।।
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निबतानू  मैं जब य बड़ौ हटिल।
बजरै की छाती करी समझाया।।
तिकणी कराय च्यला नौरमल पास।
काला दिनो याद करी मैं लागू निसास।।
कुणखेत बौरणा में कमै खणी स्यरा।
घार पट्टी मज च्यला जिमीदार त्यरा।।
जै महेनौ छिय च्यला सातै भाई मरा।
बाझ्यू तेरा मरी गया छुट कारबार।।
उदिन बै खेती बांजी बन्द है रकम।
निरहैगे डर कैकी न कैको हुक्म।।
हरू का-इन बातों सुणि हरु उठिगो जहर।
गुस में भरिगो हरु बाल झर झर।।
आज तक निबताय इजा त्वीले बात।
ऐसो बात सुणी मेरो जली गोछ गात।।
मैंत जानू मेरी इजा चारौ पट्टी मज।
किलक रकम रुकी क्यछ मन मज।।
एक हाथ ढाल थाम एक तलवार।
जीन थरी घोड़ी मज है गयो सवार।।
हरुवे की घोड़ी न्हैगे क्वस्यां नबा मज।
जिमीदारो कणि हरु धाद मारी तब।।
चौद सालैं रकम व सब नत मारी जानू।
यति करौ जम सब नत मारी जानू।।
स्यर म्यर, बांज रय रकम लैं बन्द।
चाहे वेचो घर कुड़ी चाहे करौ चन्द।
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रकम लै जम कवो स्यर लैं आबाद।
जगा जगा क्वास्यरा  मज लगे हैछ धाद।।
दूसरी ओ धाद मारी सल्ड तल्ला पट्टी।
आज तक चुपै रेय लगतावैं  वटी।।
मालकनौ समेत औ रकम लै ल्यावो।
वौरड़ौ को स्यर म्यरौ वाद कै जावो।।
हरुवा ओ हीत न्हैगो बसनाई फाट।
या मानो हुकम मेरो न पूजानू घाट।।
हरूवै की धाद सुणी हैगी भयभीत।
कती वटी आछ कनी दुश्मन हीत।।
जमीदारों का-
कुदार के छील भया आय कती बटी।
इनुलै निखान दिब लगताबैं बटी।।
गौनू गौनू मज सब जम हई गया।
सबैं एक मत करी सुणौ म्यर भया।।
रकम लै मालकामू हत दैकी ठेकी।
सैणी बल्द साथ जैंला  इमजी छ नेकी।।
घर घर मज सब बने हैला रब्ट।
सबासैं बेकार लागौ रातैं लागौ बट।।
क्वस्तां का ओ जिमीदार कुणखेत अया।
सल्टीयों की बात सुणी लिया भया।।
पैली बटी नामी हया सल्ट का सल्डिया।
झड़डालू बड़ हया ठुला लै बल्दिया।।
हलियो लै हल थामा सैंणियों लै बरा।
ठुलाओ बब्दौ का बाबू बाजिया नेवरा।।
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वोरड़ा का स्यरा मज रातै नसी गया।
दैकी ठेकी जम करी कार लागी गया।।
हलिये ले हल बाय जेलणियां साथ।
द्वीय स्तरा मज हैंरौ भारो सोमनाथ।।
उज्याव हणम हरू टुटि गेछ नीन।
हाथ जोड़ी माता हणी हैंरछ आधीन।।
ढया मज़ा जाई बेर देखि आनू स्यरा।
आई कि निअया इजा जिमीदार म्यरा।।
हरुका-ढया मज जाई बेर लागीगे नजर।
द्वीय स्यरो सेणी मैस लागी रई कार।।
खुशी हई गय हरू आई घर घर।
घ्वड़ मजि जीन धरी वादी ओ नेवर।।
रेशमी कपड़ा पैरा पुतलिया पाग।
घ्वड़ मज सवार हैगो बांसरी में राग।।
कुणखेत स्जर न्हैगे हरुवैं की घोड़ी।
सब झड़ स्यो लगानी हाथ जोड़ी जोड़ी।।
खुशी हबैं न्हैगो बोरड़ा स्यरम।
सल्टा क सल्टिया सब हई गया जंब।।
जमीयारों का सब झड़ स्यो लगानी हरुवा अणस।
घोड़ी बे उतरी हरु बैंटठिगो बीचम।।
छोटा ठुला मैंस सैंणी जम हई गया।
द्वी स्यरों लोग सब वैठि गया।।
हरुका- खानदानी च्यला छिय कसों कोंछ बात।
हाथ जोड़ा अरज छ नानी ठुला बात।।
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वहैं गछा दुणे जया बुतो जया धान।
भलौ है जो तुमरौ लै धरी गछा मान।।
जतुक ऐरछा येती मेरों भाई बैणी।
मैस जैला देर मजि बैरे जाओ सैणी।।
क्वे हनला यकलाओ कैका नना तिना।
उनर शराप भाई लागलौ आघिना।।
सबै मैंसों हणी हरु हाथ लै जोड़िया।
अरज छ मेरी भाई मैं झन छोड़िया।।
अपण दिल की तुमू सुणानू फिकर।
कथ बटि करी हालों ब्याऊ की जिगर।।
सीदी सादी नानी हवौ घर खान दान।
सात लै भौजिया घर महेणी समान।।
आठवां छ इजा मेरी बुढ़िया पराण।
सबौ की जो सेवा करो ऐसी हो बौराण।।
ऐसी बात चीत हैरै बौराण स्यरमा।
दुशमन नसी गय हरुवा घरम।।
हरुवा भौजिया हैती कसी कौछ बात।
मेरी बात सुणौ कौंछ रानिओ ओ सात।।
देवरा कारण काटा दिन रात।
जिमोदारों हैतो हरु ऐसी कौछी बात।।
भल खान दान चेली जैक भल नाम।
उरली बैठिया कौछा भौजि कैला काम।।
जो मेरी वौराण हली रली सब शीर।
सात जो भौजिया मेरा करीला खातीर।।
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ऊहली बौराण अब तुम ले नौकर।
तुमर रहणौ येती बड़ौ छ बिकार।।
भाभियों का-
भौजियों ले सुणी जब दुश्मन बात।
गुस्सा मजि भरि बेर घालनी यो घात।।
जै बौराण-भती ल्यायै बेरै हैजो रान।
झन खाण पये हरू द्वी स्यरों धान।।
हिटौ दिदि भुली अब हम नसी जोंला।
हरुवा जै ब्याऊ कौंछा क्लक  रहोंला।।
कमर बरति बांदी हत पर दाती।
सातै भौजि बट लागी बेठि गे कुमति।।
बौराड़ा कुणखेत बटि सड़क में गया।
सड़क में जाई बेरा धोंस्यला लै गाया।।
धोंस्यला
बकर की कानी धम्मा धोंस्यला।
जै बौराण भली ल्यालै धोंस्यला।।
बैरै हैजो रानि धम्मा धोंस्यला।१।
पक्ये हैलौ मान धम्मा धोंस्यला॥
झन खाण पये हरू धोंस्यला।२।
हे सेरी का धान धम्मा धोंस्यला॥
लट पटी लोड़ी धम्मा धोंस्यला।
येती बटी खाली न्हैजो धोंस्यला।
हरुवै की घोड़ी धम्मा धोंस्यला।३।
हरुवै की घोड़ी धम्मा धोंस्यला।।
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कृमशः अगले (भाग-०२) में

ऊपर दिए गए आलेख में कई टंकण की त्रुटिया हो सकती हैं, हमारा प्रयास है की जैसे ही संज्ञान में आये तो हम सुधार करते रहेंगे। आवश्यक सुधार हेतु कृपया कमैंट्स के माध्यम से अपने सुझाव अवश्य देते रहें।

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फोटो (काल्पनिक) सोर्स: गूगल

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