(माठु माठ खैया)
रचनाकार: जोगा सिंह कैड़ा
बासमतिक भात पकायो उरदे की दाल
मुंव क टपक लगायो मर्च भूटी लाल।
आल-बुखारे चटणी बनि आमूं क अचार
दै मुवां घ्यूथैं कूनी खिचड़ी का यार।
दै मुवां घ्यूथैं कूनी खिचड़ी का यार।

ग्योंनों क फुलक्या छन चट चूपोड़ी रवाट
पीनाउ गढ़ेरि पकै रन मारि लियो ग्वाट।
पीनाउ गढ़ेरि पकै रन मारि लियो ग्वाट।
पालिंगक काप बनायो थापचिनि क भात
मडुवा का सुखिया रवाटा घ्युं गूड क साथ।
मडुवा का सुखिया रवाटा घ्युं गूड क साथ।

भटिया रांजड़ पाकुं रो लुवे की कढाई
चट-बट लासण लूण पोदीने की खटाई।
चट-बट लासण लूण पोदीने की खटाई।
मोट मोट लेहटु रोट ं गढ़ेरी को साग
रैत बनायो ककड़ी को ककड़ी को भाग।
रैत बनायो ककड़ी को ककड़ी को भाग।

आलू मेथिक साग बनायो तरुड़ फराव
भल लागू पापड साग बेडु कैरु क्वेर्याव।
भल लागू पापड साग बेडु कैरु क्वेर्याव।
मॉसा गहत गडेरी गैला लसि पसि दाल
तावा लागी भटक डुबुक खांण में कमाल।
तावा लागी भटक डुबुक खांण में कमाल।

जोगा सिंह कैड़ा
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