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शीतला देवी मंदिर, रानीबाग

माता शीतला देवी का मंदिर, कुमाऊँ के नैनीताल जनपद के हल्द्वानी नगर के समीप रानीबाग़ में है। Sheetla Devi mata mandir, ranibagh, Nainital, Mata Sheetla Devi ka mandir

शीतला देवी मंदिर, रानीबाग

शीतला देवी मंदिर उत्तराखंड राज्य के नैनीताल जनपद के रानीबाग़ नामक स्थान में स्थित है जो नैनीताल को जाने वाले मुख्य मार्ग पर गुलाब घाटी के ऊपर की ओर एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित है। यह स्थान उत्तराखंड राज्य के प्रमुख व्यावसायिक केंद्र तथा कुमाऊँ के प्रवेश द्वार कहे जाने वाले हल्द्वानी नगर से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। शीतला माता का मंदिर क्षेत्र का एक प्रमुख देवी मंदिर है जहां आस पास ही नहीं बल्कि दूर दूर से देवी भक्त आते हैं। मंदिर के आस पास का प्राकृतिक सौंदर्य पहाड़ की ओर जाने वाले भक्तों के साथ साथ नैनीताल आने वाले पर्यटकों को भी अपनी और आकर्षित करता है। यह मंदिर घने पहाड़ी वन क्षेत्र में स्थित है तथा नीचे कुछ दूरी पर गौला (गार्गी) नदी बहती है।

रानीबाग़ वर्तमान हल्द्वानी महानगर की सीमा पर स्थित छोटा सा स्थान है जो हल्द्वानी से नैनीताल जाने वाले मुख्य राजमार्ग पर ही स्थित है। रानीबाग़ के नामकरण के बारे में माना जाता है कि पूर्व में इस स्थान पर कत्यूरवंश की रानी जियारानी का उद्यान था इसलिए इस जगह को उसके नाम पर ही रानीबाग कहा जाने लगा। यहाँ पर वन विभाग का वन्य पशुओं का रेस्क्यू सेण्टर, चेक पोस्ट और सेना की यूनिट का छोटा सा ठिकाना भी है। यहीं से एक मार्ग नैनीताल और दूसरा मार्ग भीमताल होते हुए कुमाऊँ अंचल के अन्य नगरों को जाता है। माँ शीतला देवी का मनोरम दरबार हल्द्वानी से नैनीताल-अल्मोड़ा आदि स्थानों पर जाने वाले मोटर-मार्ग पर काठगोदाम से कुछ आगे गुलाब-घाटी के ऊपर पौराणिक और ऐतिहासिक रानीबाग नदी तीर्थ स्थली की चोटी पर जंगल के बीच स्थित है।

माता शीतला देवी का मंदिर, कुमाऊँ के नैनीताल जनपद के हल्द्वानी नगर के समीप रानीबाग़ में है। Sheetla Devi mata mandir, ranibagh, Nainital, Mata Sheetla Devi ka mandir

शीतला देवी मंदिर देवी दुर्गा के एक रूप मां शीतला को समर्पित एक हिन्दू मंदिर है जिनकी उत्तर भारत, पश्चिम बंगाल, नेपाल, बंग्लादेश और पाकिस्तान में पोक्सदेवी के रूप में व्यापक रूप से पूजा की जाती है।  शीतला देवी के नाम से पूजित इस स्थान पर यात्रा मार्ग के निकट एक बहुत बड़ा बांज (ओक) का वृक्ष है जिसके बारे में माना जाता हैं कि यहीं पर मां भगवती उमादेवी ने विश्राम किया था। शीतला देवी का मंदिर परिसर घने जंगल के बीच में स्थित बहुत ही शान्त एवं मन को प्रफ़ुल्लित करने वाला है। यह आजकल के शहरों के मंदिरों के शोरशराबे, चिल्लपों, कानफोड़ू लाउडस्पीकर पर बजते नकली भजनों से दूर, मन को शांति देने वाला स्थान है। अन्य देवी मन्दिरों की तरह यहां भी नवरात्र में मां के मंदिर भक्तों की विशाल भीड़ उमड़ पड़ती है।

माँ शीतला देवी मंदिर की स्थापना:

माँ शीतला देवी के मंदिर की स्थापना के बारे में यह भी कहा जाता है कि भीमताल के पाण्डेय ब्राह्मण परिवार के लोगों का समूह अपने गांव में मां शीतला का मंदिर बनाने के लिए बनारस से माता की मूर्ति ले कर आ रहा था। यह तब की बात है जब यात्रा मार्ग इतना सुगम नहीं था और वाहन की सुविधा या तो बहुत महँगी थी या उपलब्ध ही नहीं थी और आम लोग पैदल ही यात्रा करते थे। वैसे भी माता की मूर्ति को स्थापना हेतु ले जाना एक पवित्र धार्मिक अनुष्ठान माना जाता है तो वह पैदल ही मूर्ति लेकर जा रहे थे। तब अपनी यात्रा के दौरान उनको पैदल यात्रा करते-करते रानीबाग पहुंचने तक शाम हो गयी और आगे की पहाड़ी यात्रा रात में कठिन व असुरक्षित होने के कारण वह आगे नहीं जा सकते थे। अत: उन्होंने रात्रि में रानीबाग के गुलाबघाटी में ही रात्रि विश्राम कर आगे की यात्रा अगली प्रात :काल से करने का निर्णय लिया।

कहते हैं की जब वह रात में सो रहे थे तो समूह के एक व्यक्ति को रात्रि में स्वप्न आया जिसमें उस से माता की मूर्ति को उसी स्थान पर स्थापित करने का आदेश दिया गया था। जब उस व्यक्ति की आँख खुली तो उसने अपने स्वप्न के बारे में अपने साथियों को बताया, लेकिन सपने की बात समझकर उन्होंने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। सब आगे जाने की तैयारी करने लगे लेकिन जब वो मूर्ति को उसके स्थान से उठाने लगे तो मूर्ति को उठा नहीं पाये।

फिर सबने मिलकर मूर्ति को उठाने के हर संभव प्रयास किये पर मूर्ति को उसके स्थान से हिला भी नहीं सके। इसके बाद सभी को अपने साथी के सपने में किये गए आदेश की बात पर विश्वास हुआ। इसे देवी माँ का आदेश मानकर पाण्डेय ब्राह्मणो के समूह ने माता की मूर्ति को वही पर विधिपूर्व स्थापित किया। तब से ही यह परम्परा रही कि भीमताल क्षेत्र के उस पाण्डेय ब्राह्मण परिवार के लोग ही सबसे पहले माँ ले मंदिर में पूजा करने आते थे। पहले पांडे लोग स्वयं ही पूजा करने आते थे, लेकिन बाद में स्थानीय लोगों को भी मंदिर में पूजा का अधिकार दे दिया गया।

माता शीतला देवी का मंदिर, कुमाऊँ के नैनीताल जनपद के हल्द्वानी नगर के समीप रानीबाग़ में है। Sheetla Devi mata mandir, ranibagh, Nainital, Mata Sheetla Devi ka mandir

यहाँ पर शीतला माता की मूर्ति स्थापना के उपरांत धीरे-धीरे आस-पास के क्षेत्रों में मंदिर की लोकप्रियता बढ़ने लगी और यहाँ पर आस पास से भक्तो का आना जा होने लगा। क्योंकि यह स्थान मुख्य मार्ग से ज्यादा दूर नहीं है तो क्षेत्र के बाहर से पहाड़ को आने जाने वाले यात्रियों और पर्यटकों में भी इस मंदिर के बारे में जानकारी होने लगी। इस प्रकार यह मंदिर क्षेत्र के बाहर से आने वाले भक्तो और पर्यटकों को भी आकर्षित करने लगा और वह भी यहाँ पर आकर सुन्दर भक्तिमय वातावरण और सुहाने मौसम का आनन्द लेने लगे। इसी तरह मंदिर का विकास होने लगा और कालांतर में धीरे धीरे यहां हनुमान, भैरव आदि विभिन्न मंदिर बने।

वैसे रानीबाग का यह स्थान ऐतिहासिक और पौराणिक रूप से पहले से ही महत्वपूर्ण था, जैसा पूर्व में उल्लेख किया गया है की कत्यूरी रानी जियारानी का यहाँ पर बाग़ होने के कारण इस स्थान का नामकरण हुआ। इस स्थान पर दो पहाड़ी नदियों का संगम भी है और कहा जाता है की प्राचीन काल में यहां पर ऋषि मुनियों के आश्रम थे और हिमालय को जाने वाले भक्त - साधक यहाँ पर आकर विश्राम व साधना किया करते थे। कत्युरि लोगों द्वारा अभी भी रानीबाग को बड़ा महत्व दिया जाता है और मकर संक्रान्ति को विशेष रूप से जियारानी की स्तुति में यहां स्नान हेतु आते हैं। शीतला माता मंदिर से करीब 5 किलोमीटर ऊपर चढ़ाई में घने जंगल में एक कुंड स्थित है जिसे मार्कण्डेय कुण्ड के नाम से जाना जाता है। यह कुंड हमेशा स्वच्छ जल से भरा रहता है और इसके बारे में ऐसी मान्यता है कि मार्कण्डेय ऋषि का यहाँ पर आश्रम था और उन्होंने इसी स्थान पर तप किया था।

माँ शीतला देवी माता का परिचय:

शीतला देवी के बारे में उल्लेख किया गया है कि माँ शीतला का प्राचीनकाल से ही बहुत अधिक माहात्म्य रहा है। स्कंद पुराण में शीतला देवी का वाहन गर्दभ बताया गया है। माता शीतला हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं। माता शीतला को चेचक आदि (पोक्स) कई रोगों की देवी बताया गया है। जैसा आप सभी जानते हैं कि पहले इस रोग को माता का प्रकोप माना जाता था।

इन बातों का प्रतीकात्मक महत्व होता है, चेचक का रोगी व्यग्रता में वस्त्र उतार देता है। सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाडू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं। नीम के पत्ते फोडों को सड़ने नहीं देते। रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है अत: कलश का महत्व है। गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं। शीतला-मंदिरों में प्राय: माता शीतला को गर्दभ पर ही आसीन दिखाया गया है। शीतला माता के संग ज्वरासुर-ज्वर का दैत्य, ओलै चंडी बीबी - हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण- त्वचा-रोग के देवता एवं रक्तवती - रक्त संक्रमण की देवी होते हैं। इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणु नाशक जल होता है।
(यहां पर यह उल्लेख करना आवश्यक है कि चिकित्सा शास्त्र में प्रगति के बाद अब यह सब मान्यताऐं समाप्त हो चु्की हैं और इस सब बिमारियों के लिए चिकित्सा शास्त्र में निदान मौजूद हैं और अब भक्त मां के मन्दिर अपने स्वस्थ रहने की मनोकामनाओं और पूजन हेतु आते हैं।)है।

स्कन्द पुराण में शीतला माता की अर्चना का स्तोत्र शीतलाष्टक के रूप में प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर ने लोकहित में की थी। शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा गान करता है, साथ ही उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित भी करता है। शास्त्रों में भगवती शीतला की वंदना के लिए यह मंत्र बताया गया है:
“वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।।
मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।
अर्थात

गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की मैं वंदना करता हूं। शीतला माता के इस वंदना मंत्र से यह पूर्णत: स्पष्ट हो जाता है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। हाथ में मार्जनी झाडू होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश से हमारा तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही स्वास्थ्य रूपी समृद्धि आती है।

शीतलाष्टमी का व्रत-पूजन:

शीतला माता की उपासना का मुख्य पर्व शीतलाष्टमी है चैत्र महीने के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि के दिन शीतला माता की पूजा और व्रत किया जाता है।  वैसे कुछ भक्तगण इस व्रत को सप्तमी के दिन भी मनाते हैं, दोनों ही दिन माता शीतला को समर्पित हैं। पौराणिक मान्यता है के अनुसार शीतलाष्टमी का व्रत स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है और इससे बीमारियां नहीं होती और शरीर को होने वाले वाह्य संक्रमण से भी बचाव होता है।  व्रत की परंपरा के अनुसार, शीतला माता के व्रत दिन भोजन पकाने के लिए अग्नि नहीं जलाई जाती। इसलिए अधिकतर महिलाएं शीतला अष्टमी के एक दिन पहले भोजन पका लेती हैं और व्रत वाले दिन घर के सभी सदस्य इसी ठंडे भोजन का सेवन करते हैं।  माना जाता है शीतला माता चेचक रोग, खसरा आदि बीमारियों से बचाती हैं और अगर हो भी जाए तो उससे जल्दी ही छुटकारा मिलता है।

शीतलाष्टमी के दिन महिलाएं ठंडे पानी से नहाती हैं और उसके बाद पूजा की सभी सामग्री के साथ रात में बनाए गए भोजन को लेकर पूजा करती हैं। इस दिन व्रत किया जाता है तथा माता की कथा सुनी जाती है और बाद में शीतलाष्टक स्तोत्र पढ़ा जाता है। शीतला माता की वंदना के बाद उनके मंत्र पढ़ें जाते हैं। पूजा को विधि विधान के साथ पूर्ण करने पर सभी भक्तों के बीच मां के प्रसाद को बांटा जाता है। इस प्रकार पूजन समाप्त होने पर भक्त माता से अच्छे स्वास्थ्य और सुख शांति की कामना करता है।  मान्यता अनुसार इस व्रत को करने से शीतला देवी प्रसन्न होती हैं और व्रती के कुल में दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गन्धयुक्त फोडे, नेत्रों के समस्त रोग, शीतला की फुंसियों के चिन्ह तथा शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं।

माता शीतला देवी का मंदिर, कुमाऊँ के नैनीताल जनपद के हल्द्वानी नगर के समीप रानीबाग़ में है। Sheetla Devi mata mandir, ranibagh, Nainital, Mata Sheetla Devi ka mandir

रानीबाग का इतिहास:

इतिहासकारों के अनुसार उल्लेख किया गया है कि रानीबाग पहाड़ो को जाने वाले यात्रियों-भक्तो पर्यटकों के लिए एक विश्राम स्थल के रूप में जाना जाता था।  मैदानी क्षेत्र के इस स्थान पर समाप्त होकर आगे पहाड़ी क्षेत्र शुरू हो जाता है, साथ ही नीचे नदी स्थित होने के कारण यह एक उपयुक्त विश्राम स्थल के रूप में विकसित था। इस प्रकार तब दक्षिण पूर्वी क्षेत्रों एवं मैदानी क्षेत्रों से बद्रीनाथ, केदारनाथ, जागेश्वर, बागेश्वर की यात्रा करने वाले यात्री इसी मार्ग से होकर जाया करते थे। मंदिर के पीछे की ओर चंद राजाओं के समय में(12वीं से 17वीं सदी) में हाट (बाज़ार) भी लगाई जाती थी जहां लोग दूर-दराज से यहां सामान खरीदने पहुंचते थे। मंदिर के पास ही बदरखरी गढ़ (किला) था जिसे बाद में गोरखा राजाओं द्वारा हमले में ध्वस्त कर दिया गया। आज भी यहां ध्वस्त दीवारों और पत्थरों में ओखली आदि के अवशेष प्राप्त होते हैं। यहां पर हाट होने के चलते ही मंदिर के इस स्थान का नाम शीतला हाट भी प्रचलित हो गया था।

यहाँ पर एक बात का और उल्लेख करना आवश्यक है कि ऐतिहासिक रूप से हल्द्वानी और नैनीताल का एक नगर के रूप में र्अंग्रेजों के कुमाऊँ में अधिकार करने से पूर्व कोई अस्तित्व नहीं था।  जबकि रानीबाग, भीमताल, अल्मोड़ा आदि का पूर्व से ही ऐतिहासिक विवरण मौजूद है।  अंग्रेजो द्वारा पहले काठगोदाम में रेलवे स्टेशन बनाने और सन १८९२ में हल्द्वानी, अल्मोड़ा मोटर मार्ग के निर्माण के बाद रानीबाग, भीमताल और रामगढ जैसे स्थानों का महत्व सभ्रान्त यात्रियों के लिए धीरे धीरे कम होने लगा। क्योंकि पहले जहां पैदल, बैलगाड़ी व खच्चरों से लोग तीन दिन में रानीबाग से अल्मोड़ा पहुँचते थे अब एक दिन में ही हल्द्वानी-काठगोदाम से अल्मोड़ा पहुँचने लगे।

माता शीतला देवी का मंदिर, कुमाऊँ के नैनीताल जनपद के हल्द्वानी नगर के समीप रानीबाग़ में है। Sheetla Devi mata mandir, ranibagh, Nainital, Mata Sheetla Devi ka mandir

शीतला माता मंदिर एक पहाड़ी पर होने के कारण पहले मंदिर तक पहुंचने का मार्ग पहाड़ काट कर बनाया गया था और वह काफी पथरीला था। धीरे धीरे इस मार्ग को पक्का कर अब खड़ंजा लगा कर काफी सुगम्य बना दिया गया है जिससे अब पहाड़ की चढ़ाई सुगम हो गयी है। पहले ढलान की तरफ खुली खाई नजर आती थी जिसे जिसे अब रेलिंग के द्वारा सुरक्षित बना दिया गया है। पहले मंदिर खुले जंगल के स्थित था जिस कारण कभी-कभी खूंखार जंगली जानवर जैसे गुलदार (पहाड़ी तेंदुआ) भी मंदिर परिसर तक पहुँच जाते थे। किसी दुर्घटना को रोकने के लिए अब मंदिर परिसर के चारो ओर से वन विभाग द्वारा तार बाड़ कर दी गयी है। इससे एक तो भक्तो को भी सुरक्षा प्राप्त हुयी है तो जंगली जानवर भी अपने क्षेत्र में अधिक स्वछन्द होकर विचरण कर सकते हैं। अभी भी कभी-कभी आप मंदिर परिसर के आस-पास के वन क्षेत्र में हिरनो या कुछ अन्य वन्य जीवों को विचरण करता देख सकते हैं।

क्योंकि यह स्थान नैनीताल जाने वाले मार्ग में ही स्थित है तो कोई भी पर्यटक कुछ देर यहां रुककर माता के दर्शन का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। जलवायु के अनुसार भी यह एक मनोरम स्थल है क्योंकि यहीं से पहाड़ियों का सिलसिला शुरू हो जाता है तो मौसम ज्यादा गर्म भी नहीं रहता और ज्यादा ठन्डा भी नही रहता। मन्दिर के आस पास ही कई ऐसे स्थान हैं, जो बेहद खूबसूरत हैं। ऐसे में नैनीताल जाने वाले पर्यटक या हल्द्वानी में रुकने वाले पर्यटक यहां पर कुछ आनन्द और भक्ति के पल व्यतीत कर सकते हैं।

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