
कौसानी, भारत का मिनी स्विट्जरलैंड
कौसानी, उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा से लगभग ५५ किमी. उत्तर में स्थित भारत का ख़ूबसूरत पर्वतीय पर्यटक स्थल है। कौसानी हिमालय की ख़ूबसूरती के दर्शन कराता पिंगनाथ चोटी पर बसा है जहां से बर्फ़ से ढके हिमालय पर्वत माला की ऊँची चोटियों के भव्य दर्शन होते हैं। कौशिकी (कोसी) और गोमती गंगा नदी के बीच बसे कौसानी के बारे में प्रचलित है की इसको राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 'भारत का स्विट्जरलैंड' कहा था। यहां से पर्वतों की ऊंची चोटियां, देवदार के पेड़, घने जंगल और सुहाना मौसम पर्यटकों को स्वत: ही आकर्षित करता है। यहाँ के ख़ूबसूरत प्राकृतिक नज़ारे, खेल और धार्मिक स्थल पर्यटकों को ख़ास तौर पर अपनी ओर आकर्षित करते हैं। कुछ दिन की छुट्टियों में प्राकृतिक सौंदर्य और सुहाने मौसम का लुत्फ, शहरी वातावरण से दूर शांति से उठाना हो तो इस छोटे से हिल स्टेशन की सैर पर आ सकते हैं।
समुद्र के तल से लगभग ६००० फीट की ऊंचाई पर बसा कौसानी एक खूबसूरत पर्वतीय पर्यटक स्थल है। यहाँ से विशाल हिमालय की नंदाकोट, त्रिशूल और नंदा देवी पर्वत श्रेणियों का भव्य नज़ारा देखने को मिलता है। यह पर्वतीय शहर चीड़ के घने पेड़ों के बीच एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है और यहाँ से सोमेश्वर, गरुड़ और बैजनाथ की सुंदर कत्यूरी घाटियों का अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है। पहले कौसानी अल्मोड़ा ज़िले का हिस्सा था जिसे वलना के नाम से भी जाना जाता था। उस समय अल्मोड़ा ज़िला कत्यूरी के राजा बैचलदेव के क्षेत्राधिकार में आता था। कहते हैं कि बाद में राजा ने इसका काफ़ी बड़ा हिस्सा गुजरात के एक ब्राह्मण श्री चंद तिवारी को दे दिया था जो अब इतिहास की बातें हैं। वर्तमान के कौसानी उत्तराखंड राज्य के बागेश्वर जनपद का एक प्रसिद्ध पर्वतीय पर्यटक स्थल है।
किसी भी छोटे पर्वतीय स्थल की तरह ही कौसानी में भी पर्यटक मैदानों की गर्मी, नगरों की भागमभाग व प्रदूषण से त्रस्त हो कुछ समय शांत, शीतल व स्वच्छ वातावरण में बिताने आते हैं। कौसानी में प्रकृति वह सब प्रदान करती है जो किसी आम शहरी को प्रकृति से चाहिए, ऊँची पहाड़ी पर स्थित कौसानी से पर्यटकों को विशाल पर्वतराज हिमालय उनके सामने खड़ा नज़र आता है। पहाड़ी ढलानों पर हरे भरे खेत-मैदान, बाग़ बगीचे और घने जंगल पर्यटकों की सारी थकान, तनाव और परेशानियों को अपने सौंदर्य से दूर कर देते हैं।
कौसानी की ख़ूबसूरती ने कई लोगों यहाँ आने को आकर्षित किया ही, साथ ही महात्मा गांधी से जुड़ी ऐतिहासिकता ने भी बड़ी-बड़ी हस्तियों को यहाँ आने पर मजबूर किया। यहां आने प्रसिद्ध व्यक्तियों में गान्धी जी के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. कर्ण सिंह और प्रसिद्ध पत्रकार अरुण शौरी आदि प्रमुख हैं। डॉ. कर्ण सिंह और अरुण शौरी को यह जगह इतनी पसन्द है कि वे अक़्सर आकर यहाँ की शीतलता मे प्रवास करते रहे हैं। कौसानी का प्राकृतिक सौंदर्य ही इतना आकर्षण है जो इन बड़ी हस्तियों को भी दूर दूर से इस छोटे से दूरस्थ पहाड़ी स्थल पर आने को विवश कर देता है।

हिंदी छायावादी परम्परा के प्रतिनिधि कवि सुमित्रानन्दन पंत की जन्म स्थली कौसानी ही है जहाँ पर कवि ने अपना बचपन व्यतीत किया था। पंत जी यहाँ जिस घर में पैदा हुए थे, अब उस घर को संग्रहालय बना दिया गया है। सुमित्रानन्दन पंत जिस स्कूल में पढ़ते थे, वह आज भी उसी तरह चल रहा है। कवि सुमित्रानन्दन पंत जी की जन्मस्थली होने के साथ ही यह कई कलाकारों व साहित्यकारों का यह प्रमुख भ्रमण व विश्राम स्थल रहा है। प्रख्यात साहित्यकार निर्मल वर्मा को कौसानी की शान्त वादियां बहुत पसंद थी और उन्होंने भी कई बार यहाँ की यात्राएँ कीं। प्रसिद्ध कवि और साहित्यकार पंडित नरेंद्र शर्मा ने कौसानी का परिचय इन पक्तियों से किया है:
यह नई धरा, आकाश नया, यह नया लोक मिल गया मुझे।
थी आत्मा जिसके हित अशांत, वह शांत लोक मिल गया मुझे।
कौसानी की अद्भुत सुन्दरता से प्रभावित होकर अन्य कवियों ने भी कौसानी की सुन्दरता को अपनी कविता के रूप में लोगों के सामने प्रस्तुत किया है। हिन्दी के कवि रमेश कौशिक ने भी कौसानी की सुन्दरता को देखकर एक कविता कह डाली।
पर्वत की पेशानी, चीड़, बुराँस, अखरोट, अलूचा
देवदार, मीठा पांगर और खूबानी
दो-चार घरों की, छिटपुट-सी बस्ती- यह कौसानी
तासीर हवा में ऐसी, अपने आप लोग बन जाते इसमें
कवि, वैरागी, सेनानी, बाक़ी सब बातें बेमानी
हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार स्व. धर्मवीर भारती को ठेले पर बिकती बर्फ़ को देखकर कौसानी की याद दिला दी और उन्हें अपने प्रसिद्ध लेख ‘ठेले पर हिमालय’ को लिखने के लिए मजबूर कर दिया जिसमें कौसानी के सौन्दर्य के बारे में काफ़ी कुछ लिखा है।
कौसानी की सुन्दरता को देख कर गांधी जी ने कहा था,
'इन पहाड़ों में प्राकृतिक सौंदर्य की मेहमाननवाज़ी के आगे मानव द्वारा किया गया कोई भी सत्कार फीका है। मैं आश्चर्य के साथ सोचता हूँ कि इन पर्वतों के सौंदर्य और जलवायु से बढ़ कर किसी और जगह का होना तो दूर, इनकी बराबरी भी संसार का कोई सौंदर्य स्थल नहीं कर सकता। अल्मोड़ा के पहाड़ों में क़रीब तीन सप्ताह का समय बिताने के बाद मैं बहुत ज़्यादा आश्चर्यचकित हूँ कि हमारे यहाँ के लोग बेहतर स्वास्थ्य की चाह में यूरोप क्यों जाते हैं।'
कौसानी में घूमने के लिए कुछ मुख्य स्थल निम्न प्रकार हैं:-
गांधी जी की विश्राम स्थली अनासक्ति आश्रम
यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य की मिसाल इस तथ्य से समझी जा सकती है कि वर्ष १९२९ में जब महात्मा गांधी भारत भ्रमण पर निकले थे तब अपनी थकान मिटाने के उद्देश्य से यहां के चाय बागान के मालिक के अतिथि गृह में दो दिवसीय विश्राम हेतु आये परन्तु यहाँ आने के बाद कौसानी के उस पार हिममंडित पर्वतमालाओं पर पड़ती सूर्य की स्वर्णमयी किरणों को देखकर इतना मुग्ध हो गये कि अपने दो दिन के प्रवास को भूलकर लगातार चौदह दिन तक यहाँ रुके रहे। अपने इस प्रवास के दौरान ही उन्होंने गीता पर आधारित अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘अनासक्ति योग’ का प्रारंभिक चरण पूरा कर डाला।

सुमित्रानंदन पंत स्मृति राजकीय संग्रहालय
कौसानी को महान् साहित्यकारों की जन्म भूमि के रूप में भी जाना जाता है। कौसानी का एक और साहित्यिक परिचय यह भी है कि कौसानी प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत की जन्मस्थली है। महाकवि सुमित्रानंदन पंत को श्रद्धांजलि स्वरूप समर्पित इस स्थल पर महाकवि की मूर्ति स्थापित है। वर्ष १९९० में स्थापित इस मूर्ति का का अनावरण वयोवृद्ध साहित्यकार तथा इतिहासवेत्ता पंडित नित्यनंद मिश्र द्वारा उनके जन्म दिवस २० मई को किया गया था। लेकिन मूर्ति की स्थापना और उत्तरखंड राज्य बनने के बाद भी खुले आसमान के नीचे इस मूर्ति का होना थोड़ा अखरता है इसके उपर कैनोपी लगाकर उसे वर्षा आदि से बचाने का प्रबन्ध किया जाना चाहिए। महाकवि का पैत्रक ग्राम भी यहां से कुछ ही दूरी पर ही है परन्तु वह आज भी अन्य गांवों की तरह एक अनजाना साधारण पहाड़ी गांव है। संग्रहालय में महाकवि द्वारा उपयोग में लायी गयी दैनिक वस्तुयें यथा शॉल, दीपक, पुस्तकों की अलमारी तथा महाकवि को समर्पित कुछ सम्मान-पत्र एवं पुस्तकें तथा हस्तलिपि सुरक्षित हैं। वैसे कौसानी सिर्फ साहित्य के लिए ही महत्त्वपूर्ण जगह नहीं है, कौसानी की गिनती कुमाऊँ के सबसे सुंदर पर्यटन स्थलों में होती है।

लक्ष्मी आश्रम
कौसानी में एक लक्ष्मी आश्रम (सरला देवी आश्रम) भी है। जो कौसानी के बस स्टेशन से लगभग १किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह आश्रम एक अंग्रेज़ औरत 'कैथरीन मेरी हेल्वमन' ने बनाया था जो लन्दन की मूल निवासी थी। वह गांधी जी से प्रभावित थी जब १९४८ में वह भारत भ्रमण आई तो गाँधी जी से प्रभावित होकर भारत में ही रहने का निर्णय किया जिसके लिए कौसानी को उन्होंने अपने कर्म स्थली के रूप में चुना। यहाँ उन्होंने लक्ष्मी आश्रम के नाम से एक बोर्डिंग स्कूल चलाया जिस में लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने हेतु सिलाई, कढ़ाई, बुनाई आदि सिखाया जाता है। लक्ष्मी आश्रम में श्री कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव विशेष महत्व का है और उस दिन यहां पर एक मेले का आयोजन किया जाता है।
चाय के बागान
कौसानी और आसपास के क्षेत्र में चाय के बागान भी ऐसी हरियाली का आनन्द देते हैं, मानो ईश्वर ने हरा कालीन बिछा दिया हो। चाय बागानों में घूमने के साथ-साथ फैक्ट्रियों में चाय को तैयार होते देख सकते हैं। कौसानी में एक चाय का बागान भी है, जो यहाँ से लगभग छ: किलोमीटर की दूरी पर बैजनाथ की तरफ़ है। यहाँ की चाय बहुत ही खुशबूदार और स्वादिष्ट होती है। बड़ी मात्रा में यहाँ की चाय विदेशों को भेजी जाती है, जिसकी विदेशों में काफ़ी मांग है। आम चाय की तुलना में यहाँ की चाय की कीमत उसकी बेहतर गुणवत्ता के कारण बहुत ज़्यादा है।

कौसानी के आस-पास घूमने वाले स्थान निम्न हैं:-
पिनाकेश्वर
कौसानी से लगभग ८ किमी. की दूरी पर कुमाऊं की पिनाथ पहाड़ी पर स्थित पिनाकेश्वर महादेव नाम से एक प्रसिद्ध प्राचीन शिव मन्दिर स्थित है जो इस क्षेत्र के लोगों की आस्था का केन्द्र है। साथ ही यह स्थान कौसानी आने वाले पर्यटकों के लिए एक बेहतरीन पिकनिक स्पॉट भी है। विशेष ऊंचे पहाड़ों पर ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए यह बहुत उपयुक्त स्थान है। पिनाकेश्वर के पास ही में एक गोपालकोट, हरिया तथा बूढा पिनाकेश्वर भी हैं जो प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है।
सोमेश्वर मंदिर
कौसानी से लगभग १५ किमी. की दूरी पर सोमेश्वर नामक एक प्रसिद्ध स्थान है जो यहां स्थित शिव के मंदिर के लिए जाना जाता है। यहां पर कत्युरी शैली में बना एक शिव मंदिर है जो देखने में बहुत ही आकर्षक लगता है। बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण कुमाऊँ के चंद साम्राज्य के संस्थापक राजा सोमचंद ने करवाया था। यह भी कहा जाता है कि इस जगह का नामकरण राजा सोम और भगवान महेश्वर के नामों को मिला कर किया गया है।
रुद्रधारी प्रपात और गुफा
रुद्रधारी जलप्रपात व गुफाएं सोमेश्वर शिव मंदिर के पास ही कौसानी से लगभग १२ किमी. की दूरी पर कौसानी-अल्मोड़ा मार्ग पर स्थित हैं। ऐसा माना जाता है कि यह जगह भागवान शिव (रुद्र) और भगवान विष्णु (हरि) से संबद्ध है। यह एक छोटा सा झरना कुछ मीटर की ऊंचाई से पहाड़ी से नीचे गिरता है जिसके कुछ दूरी पर एक प्राचीन गुफ़ा भी है।

कौसानी से आगे आप बागेश्वर या दूसरी तरफ़ बैजनाथ और आगे ग्वालदम भी जा सकते जिसे उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ और गढ़वाल मंडलों का मिलन स्थल कहा जा सकता है। इस क्षेत्र के आस-पास बहुत से सेब और अन्य पहाड़ी फलों के बागान हैं। यहां से ही चमोली गढ़वाल क्षेत्र में स्थित स्वर्ग से भी सुंदर कहे जाने वाले बेदनी बुग्याल और रूपकुंड तक जाने का रास्ता भी शुरू होता है। अगर आप ज्यादा घूमने-फ़िरने की बजाय सिर्फ कुदरत की गोद में आराम करना चाहते हैं तो कौसानी से बेहतर शायद कोई और जगह नहीं है।
कौसानी आने के लिए नज़दीकी हवाई अड्डा पंतनगर में है, जो कौसानी से १७५ किलोमीटर है पर यहां से नियमित उड़ानें उपलब्ध नहीं हैं। देश के अन्य स्थानों और विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए दिल्ली तक ही नियमित वायु सेवा उपलब्ध है। वैसे अगर आप पंतनगर तक हवाई सेवा से आते हैं तो २५ किमी. दूर हल्द्वानी से हर तरह के प्राइवेट वाहन कौसानी के लिए उपलब्ध हैं।
कौसानी का नज़दीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है, जो कौसानी से लगभग १४० किलोमीटर की दूरी पर है। दिल्ली से उत्तराखंड संपर्क क्रांति और रानीखेत एक्सप्रेस से काठगोदाम तक पहुँच सकते हैं। काठगोदाम से सुबह के समय सामान्य स्थानीय बस या टैक्सी की सेवा ली जा सकती है जिससे आप अल्मोड़ा होते लगभग ४-५ घंटे में कौसानी पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग दिल्ली से हल्द्वानी, अल्मोड़ा होते हुए कौसानी की दूरी लगभग ४३० किमी. के आस-पास है। दिल्ली के आनन्द विहार बस अड्डे से उत्तराखंड रोडवेज की कुछ बसें सीधा कौसानी तक जाती हैं। वैसे हल्द्वानी/नैनीताल के लिए साधारण बसें दिन भर चलती रहती हैं और सुबह और शाम को लक्जरी वॉल्वो बसों की सुविधा भी उपलब्ध है। हल्द्वानी से आप स्थानीय बस या टैक्सी सेवा से अल्मोड़ा होते हुए कौसानी तक जा सकते हैं।

कौसानी अब एक स्थापित प्रसिद्ध सैलानी स्थल है और यहाँ पर ठहरने के लिए भी कई अच्छे विकल्प हैं। दिसंबर से फ़रवरी के मध्य तक कौसानी में खूब बर्फ गिरती है जिस कारण मौसम काफी ठण्डा होत है वैसे यात्री यहाँ पूरे साल भर आ सकते हैं। मार्च-अप्रैल और फिर सितंबर-अक्टूबर के महीने खुले आसमान वाले होते हैं, जिनमें हिमालय के शानदार नज़ारों का खूबसूरती से अवलोकन किया जा सकता है। आज कौसानी ने विश्व पर्यटन के क्षेत्र में एक ख़ास स्थान बना लिया है और यहाँ आने वाले पर्यटक फिर से यहाँ आने का सपना लिये यहां से वापस जाते हैं। आप जब कभी काम के दवाब से थक जाएं और रिलैक्स करने का मूड हो, तो कौसानी की सैर कर आएं। यहां की कुदरती खूबसूरती आपका तनाव पल में छूमंतर कर देगी।
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