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बाईस भाई ऐड़ी राजाओं की लोकगाथा

कुमाऊँ के लोकप्रिय लोकदेवता ऐड़ी देव -  बाईस भाई ऐड़ी राजाओं की लोकगाथा Folk tale of Kumauni deity Aidi Dev

बाईस भाई ऐड़ी राजाओं की लोकगाथा

(लेखक: अमित नाथ)

ऐड़़ी राजा के बारे में कहा जाता है की वे धनुर्विद्या में महारत प्राप्त थे तथा उनका धनुष सौ मन और बाण अस्सी मन के होते थे।   धनुष की कमान छह मुट्ठी और डोर नौ मुट्ठी की होती थी, उनके धनुष से छूटे बाण बाईस प्रकार की व्याधियों का निवारण करने में सक्षम थे।  इन बाणों के नाम भी इनके उद्देश्य को प्रकट करते थे, जैसे लूला बाण, लंगड़ा बाण, खाना बाण, चिड़कना बाण, हौलपट वाण, धूलपट नाण, तात (गरम) बाण, स्यला(शीतल) बाण, आदि।  ऐड़ी राजाओं की राजधानी चौदह लाख डोटी थी और उनके राजमहल में प्रतिदिन बाइस बीसी डोटियालों की बारह कचहरियां लगती थी।  ये राजा, जानकार को दस पैसे का और अनजान को पांच पैसे का दण्ड  देते थे, लेकिन कोई भी अपराधी दंड से अछूता न था।

ऐड़ी राजा अपने शासन में कमजोर गरीब को भूखा नहीं छोड़ते थे व मजबूत अमीर को अकड़ में नहीं रहने देते थे।  केसिया डोटियाल जो ऐड़ी राजकुल का पुरोहित था, अपने ही यजमान राजाओं की ख्याति और ठाट-बाट से ईर्ष्या करने लगा था।  केसिया बामण अब मन-ही-मन सोचने लगा था कि कैसे ही ऐड़ी राजा से मुक्ति मिल जाती तो मैं अपना राज चलाता।  एक दिन कचहरी छूटते ही केसिया बामण घर तो चला गया लेकिन उसे रात की नींद और दिन की भूख हराम हो गयी।   वह सोचने लगा की अब कल बड़े दिन (उत्तरायणी) का त्यौहार आ रहा है, उस दिन में सब भाई इकट्ठे होंगे और इसी अच्छे मौके पर उन्हें कोई मद सुंघा दिया जाता या जहर दे दिया जाता तो ठीक रहता।  अब केसिया बामण का दिल कपट रुपी विष से भर गया था और वह ठीक-ठाक वस्त्र पहनकर राजमहल पहुंच गया।

कुमाऊँ के लोकप्रिय लोकदेवता ऐड़ी देव -  बाईस भाई ऐड़ी राजाओं की लोकगाथा Folk tale of Kumauni deity Aidi Dev

राजमहल में केसिया बामण ने देखा कि बाईस बौराणियां छत्तीस हांडियों में छत्तीस प्रकार का ज्योनार (व्यंजन) बनाने में जुटी थी। जब केसिया डोटियाल राजमहल पहुंचा तो उस समय बाईस ऐड़ी भाई अपनी कचहरी में बैठे थे। केसिया बामण ने बाईस भाई राजाओं की कुशल पूछी, उन्हें दरी में बैठाया गया और उपले की आग की तंबाकू दी गयी। ऐड़ी राजाओं ने बाईस बौराणियों को जो नौखोली महल में थी आवाज लगाई कि तुम बाह्रर हो या भीतर! उन्होने बौराणियों को बताया कि आज हमारे गुरु महराज आए हैं अत: आज का त्योहर बड़ा सफल होगा, इनको सात प्रकार के गर्म तथा सात प्रकार के शीतल पानी से स्नान कराओ। केसिया डोटियाल ने "हर-हर महादेव" मन्त्रोचारण के साथ स्नान किया और तैयार हो गये। एक साफ सुधरी चौकी में बैठकर संध्या पूजा करने लगे, बाईस बौराणियों ने उनसे कहा, आप "चुल्हे चौकियों में पहुंचिये, ऊपरी मंजिल में पूर्व की ओर झराखे के पास बत्तीस प्रकार के व्यंजन बनाकर रखे हैं"। केसिया बामण भोजन ग्रहण करने के उपरांत नीचे के मंजिल में बनी कंचन नौली (बावड़ी) में पहुंच गया और ईर्ष्यालु बामण ने कंचन नौली में जहर मिला दिया।

कुमाऊँ के लोकप्रिय लोकदेवता ऐड़ी देव -  बाईस भाई ऐड़ी राजाओं की लोकगाथा Folk tale of Kumauni deity Aidi Dev

बाइस भाई ऐड़ी भोजन करने के बाद कंचन नौली का पानी पीकर सोने के लिए बाईस दरवाजों वाले महल के आने-अपने कमरों में चले गये सोने के लिए लेटते ही सभी भाईयों के सिर चकराने लगे, उल्टियां होने लगी, सभी के कमरे भीतर से बंद थे, एक एक दिन बीतता गया, राजमहल में नगाड़े की गर्जना होनी बंद को गयी और कचहरी भी नहीं चली। प्रजा में हाहाकार मच गया, पर प्रजा में किसी को हिम्मत नही हुई कि क्या करें, राजाओं के महल के दरवाजे तोड़कर भीतर जाकर ऐड़ी राजाओं का हाल जानने की हिम्मत किसी को न पड़ी। एक-दो दिन में ही राजाओं के शरीर में चीटिंयां लग गई, और तीसरे दिन से मक्खियां भिनभिनाने लगी। इस प्रकार सात दिन बीत गये और ऐड़ी भाईयों के शरीर सर्वथा निर्जीव हो गये।

तब एक दिन स्वप्न में बड़े व छोटे ऐड़ी राजा अपने दासों - धर्मदास, बिन्नीदास राईदास, बेनीदास, खेकलीदास, मेकलीदास, कालिदास, बीरदास आदि बाईस दासों में से सबसे बड़े दास, धर्मदास को अपनी दशा तथा सभी की मृत्यु की जानकारी देते हैं और बताते हैं कि उन्हें कुछ भी पता नही है कि यह सब किस और कैसे किया। धर्मदास आदर के पात्र तथा प्रजापालक ऐड़ी राजाओं की दुर्दशा की बात स्वप्न में जानकर अन्य दासों से विचार-विमर्श कर ऐड़ी राजाओं का हालचाल जानने और यथाशक्ति जो भी हो सके, करने के विचार से महल में गए। महल में जाकर उन्होंने भीतर से बंद मजबूत अर्गलाओं को तुड़वाया तो अपने कमरों के अंदर ऐड़ी भाईयों की मरणासन्न दशा देखकर वह अत्यधिक दु:खी हो गये। धर्मदास को अब यह जानने में देर नहीं लगी कि राआओं की ऐसी दशा विष देने से हुई।

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इसके बाद धर्मदास ने अपनी शक्ति और ज्ञान के अनुसार राजाओं की निरंतर झाड़-फूंक करनी शुरू की, सात- तक अनवरत झाड़-फूंक के बाद ऐड़ी राजाओं की चेतना धीरे धीरे लौटने लगी। लेकिन अब भी विष का प्रभाव पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ था, धर्मदास जानते थे कि विष का पूरा प्रभाव समाप्त करने के लिए संजीवनी बूटी अथवा अन्य कोई औषाधि आवश्यक है। संजीवनी बूटी या अन्य प्राणवर्धक औषधि के जानकार सेली सौकान, वाली-भूटान, काहरदेश, लाहुरदेश, बंगाल, गैली गैराड़ में रहते थे। ऐसे समय पर ऐड़ी राजाओं के साथ रहने वाला उनके कुल पुरोहित का अनाथ बेटा सिद्ध धर्मदास के बताए के अनुसार रंगीली बैराठ गया और वहां से एक औषधि के जानकार को अपने साथ लेकर आया। अंतत: वैद्य की औषधि व धर्मदास के निरंतर प्रयास से ऐड़ी राजा जीवित हो गये।

कुमाऊँ के लोकप्रिय लोकदेवता ऐड़ी देव -  बाईस भाई ऐड़ी राजाओं की लोकगाथा Folk tale of Kumauni deity Aidi Dev

लम्बे समय तक अचेत अवस्था में रहे बाईस भाई एड़ी राजा जीवित तो हो गये परंतु उनका मन टूट गया कि अपने ही लोग षडयंत्र कर रहे हैं। ऐड़ी राजा ने सन्यासी रूप में कांकरघाट पर काली नदी पार कर कुमाऊं में प्रवेश किया और ब्यानधुरा में आकर तपस्या शुरू कर दी। कहते हैं की वर्षो की घोर तपस्या के परिणाम स्वरूप उनको तपोबल से देवत्व की प्राप्ति हुई। ऐतिहासिक रूप से यह बात कथनों अनुसार मुग़ल काल के समकालीन प्रतीत होती है जब मुग़ल साम्राज्य पूरे भारतवर्ष में फैल चुका था।

माना जाता है कि मुगलों ने कुमाऊँ को भी अपने अधिकार में लेने का प्रयास किया लेकिन ऐड़ी देव की कृपा से देवभूमि में मुगलों का प्रवेश नहीं हो पाया। मुग़लों के साथ ऐड़ी देव के युद्ध का वर्णन भी ऐड़ी देव की लोकगाथा में आता है। ऐड़ी देवता का वास ब्यानधुरा (चंपावत) के उच्च शैल शिखर पर था। कलुआ कसाई और तुआ पठान की सहायता से पठानों को इस मंडप का भेद मिल गया और वे सोलह सौ सैनिकों को लेकर यहां आ गए। गुरु गोरखनाथ ने स्वप्न में ऐड़ी देव को षड्यंत्र की सूचना पहले ही दे दी। ऐड़ी देव ने जागकर गोरिलचौड़ से तुरंत अपने वीर भानिज (भांजे) गोरिया को बुलाया। ऐड़ी एवं गोरिया ने अपने बावन वीरों के साथ पठानों की टुकड़ी को वहां से मार भगाया।  ऐड़ी देवता की फाग में माल के भराड़े के साथ युद्ध का वर्णन भी आता है।

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ऐड़ी देव की वीरता व क्षेत्र के लिए किये गए उनके योगदान के आधार पर एड़ी देव संपूर्ण उत्तराखंड के पूज्य होने चाहिए थे, क्योंकि उनकी छत्र छाया में उत्तराखंड मुगलों के आक्रमण से बच पाया। मगर जमीनी हकीकत यह है एड़ी देव के बारे में कुछ भ्रांतिया भी लोगो के बीच में पैदा कर देने के कारण उनकी महत्ता काम कर दी गयी। शायद यही एक कारण है कि एड़ी देव के वास स्थल एड़ी मंदिर, ब्यानधूरा धाम का कुछ भी विकास नहीं हुआ है। आज भी देव शक्ति के रूप में ब्यान्धुरा ऐड़ी साक्षात शक्ति है यहाँ पर ऐसे कई उदाहरण देखने को मिल जाएंगे जो बाँझ जोड़े उम्र के अंतिम पड़ाव तक औलाद का ख्वाब देखते हैं उनकी मनोकामना यहां अवश्य पूरी होती है।

अमित नाथ

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