
रानीखेत, कुमाऊँ का प्रमुख पर्यटक स्थल
रानीखेत उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा ज़िले के अंतर्गत एक पहाड़ी पर्यटन स्थल है। देवदार और बलूत के वृक्षों से घिरा रानीखेत बहुत ही रमणीक एक छोटा सा हिल स्टेशन है। रानीखेत में प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र की सबसे बड़ी सेना की छावनी स्थापित हैं, जहाँ सैनिकों को प्रशिक्षित किया जाता हैं। इस स्थान से हिमाच्छादित मध्य हिमालयी श्रेणियाँ स्पष्ट देखी जा सकती हैं। प्रकृति प्रेमियों का स्वर्ग रानीखेत समुद्र तल से १८२४ मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक छोटा लेकिन बेहद खूबसूरत पहाड़ी नगर है जो सेना की छावनी और आस-पास स्थित अपने पुराने मंदिरों के लिए मशहूर है। उत्तराखंड की कुमाऊं की पहाड़ियों के आंचल में बसा रानीखेत फ़िल्म निर्माताओं का भी पसन्दीदा स्थान रहा है। यहां दूर-दूर तक रजत मंडित सदृश हिमाच्छादित गगनचुंबी पर्वत, सुंदर घाटियां, चीड़ और देवदार के ऊंचे-ऊंचे पेड़, घना जंगल, फलों लताओं से ढके संकरे रास्ते, टेढ़ी-मेढ़ी जलधारा, सुंदर वास्तु कला वाले प्राचीन मंदिर, ऊंची उड़ान भर रहे तरह-तरह के पक्षी और शहरी कोलाहल तथा प्रदूषण से दूर ग्रामीण परिवेश का अद्भुत सौंदर्य आकर्षण का केन्द्र है।
एक किवदंती के अनुसार रानीखेत का नाम रानी पद्मिनी के कारण पड़ा जो रानी पद्मिनी पूर्व में इस राज्य के शासक राजा सुखदेव की पत्नी थीं। रानीखेत की सुंदरता देख राजा और रानी बेहद प्रभावित हुए और उन्होंने वहीं रहने का फैसला कर किया। रानीखेत के कई इलाकों पर कुमांऊनी राजाओं का शासन था पर बाद में यह ब्रिटिश शासकों के हाथ में चला गया। अंग्रेजों ने रानीखेत को छुट्टियों में मौज-मस्ती के लिए हिल स्टेशन के रूप में विकसित किया और १८६९ में यहां कई छावनियां बनवाईं जो अब 'कुमांऊ रेजीमेंटल सेंटर' के रूप में जाना जाता है। मनोरम पर्वतीय स्थल रानीखेत लगभग २५ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। कुमाऊं क्षेत्र में पड़ने वाले इस स्थान से हिमालय की लगभग ४०० किलोमीटर लंबी हिमाच्छादित पर्वत-श्रृंखला का ज़्यादातर भाग दिखता हैं। सितम्बर-अक्टूबर में जब आसमान साफ़ रहता है तो इन पर्वतों की चोटियां सुबह-दोपहर-शाम अलग-अलग रंग की मालूम पड़ती हैं। इस पूरे क्षेत्र की मोहक सुंदरता का अनुमान कभी नीदरलैण्ड के राजदूत रहे वान पैलेन्ट के इस कथन से लगाया जा सकता है- जिसने रानीखेत को नहीं देखा, उसने भारत को नहीं देखा।

ऐतिहासिक रूप से रानीखेत हिमालय की किंवदंतियों से संबंधित एक जगह है। ऐतिहासिक वृत्तांत बताते हैं कि कुमाऊं की रानी पद्मिनी इस छोटे से पहाड़ी स्वर्ग से मुग्ध थी। राजा सुधादेव ने रानी के लिए यहाँ एक महल का निर्माण करवाकर, रानीखेत (रानी के खेत) का नाम रखा। कुछ लोगों द्वारा यह भी कहा जाता है कि रानी अपनी यात्रा पर निकली हुई थीं तो इस क्षेत्र से गुजरते समय वह यहां के प्राकृतिक सौंदर्य से मोहित होकर रात्रि-विश्राम के लिए रुकीं। बाद में उन्हें यह स्थान इतना अच्छा लगा कि उन्होंने यहीं पर अपना स्थायी निवास बना लिया। चूंकि तब इस स्थान पर छोटे-छोटे खेत थे, इसलिए इस स्थान का नाम 'रानीखेत' पड़ गया। अंग्रेज़ों के शासनकाल में सैनिकों की छावनी के लिए इस क्षेत्र का विकास किया गया। क्योंकि रानीखेत "कुमाऊं रेजिमेन्ट" का मुख्यालय है, इसलिए यह पूरा क्षेत्र काफ़ी साफ-सुथरा रहता है। यहां का बाज़ार भी अद्भुत है, जो पहाड़ के उतार (यानी खड़ी चढ़ाई) पर बना हुआ है जिस कारण इसे 'खड़ा बाज़ार' कहा जाता है।
आज महल का कोई निशान नहीं पाया जा सकता है, लेकिन यह स्थान वैसा ही बना रहा: स्वर्गीय हिमालयी परिवेश के बीच में फूलों, पेड़ों और हरी घास के मैदानों के साथ यह स्थान लंबे समय के लिए गुमनामी में खो गया, बाद में इस सुरम्य हिल स्टेशन को अंग्रेजों द्वारा फिर से खोजा गया। उन्होंने देशी ग्रामीणों से जमीन खरीदी और सेना भर्ती केंद्र की स्थापना के अलावा एक ग्रीष्मकालीन रिसॉर्ट का निर्माण किया। रानीखेत अभी भी भारतीय सेना की कुमाऊं रेजिमेंट का मुख्यालय है। २१.७६ वर्ग किमी के क्षेत्र के साथ, रानीखेत में आगंतुकों के लिए बहुत कुछ है- जैसे एक स्वस्थ जलवायु, लंबे शंकुधारी पेड़, विशाल हरे घास के मैदान, शांत वातावरण, उत्तम शांति और खुले दिल वाले लोग। यहां हर मौसम का अपना एक अलग आकर्षण होता है, जो रानीखेत को एक पूरे सीजन का गंतव्य बनाता है। रानीखेत का गोल्फ़ का मैदान देश के सर्वश्रेष्ठ हिल गोल्फ ग्रीन्स (९ होल गोल्फ़ कोर्स) में से एक माना जाता है।

रानीखेत की सुंदरता को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। दूर-दूर तक फैली घाटियां, घने जंगलों में सरसराते चीड़ के पेड़ यहां की सुंदरता में चार चांद लगते हैं। दुनिया भर से हर साल लाखों की संख्या में सैलानी यहां मौज-मस्ती करने के लिए आते हैं। रानीखेत से ६ किलोमीटर की दूरी पर गोल्फ का विशाल मैदान है जिसके पास ही कलिका में कालीदेवी का प्रसिद्ध मंदिर भी है। रानीखेत से कुछ दूरी पर स्थित द्वाराहाट के आस-पास ६५ मंदिर बने हुए हैं, जो कि तत्कालीन कला के बेजोड़ नमूनों के रुप में विख्यात हैं। बद्रीकेदार मंदिर, गूजरदेव का कलात्मक मंदिर, दूनागिरि मंदिर, पाषाण मंदिर और बावड़िया यहां के प्रसिद्ध मंदिर हैं। द्वाराहाट से १४ किलोमीटर की दूरी पर माँ दूनागिरी का प्रसिद्ध मंदिर है जहां से आप बर्फ से ढकी चोटियों को भी देख सकते हैं। दूनागिरी पर्वत में चोटी पर दुर्गाजी समेत कई अन्य मंदिर भी हैं, जहां पर आसपास के लोग बड़ी संख्या में आते हैं। इसके कुछ ही दूरी पर शीतलाखेत है, जो पर्यटक गांव के नाम से जाना जाता है जिसकी खूबसूरती देखते ही बनती है। यहां पर दिखने वाले खूबसूरत नज़ारे पर्यटकों को खूब भाते हैं।
रानीखेत में इसके अलावा और भी मनोरम स्थल है जैसे यहां का बालू बांध मछली पकड़ने के लिए प्रसिद्ध है। रानीखेत से थोड़ी-थोड़ी दूरी पर भ्रमण करने की भी कई जगह हैं जैसे अल्मोड़ा जहां हिमालय पहाड़ों का सुंदर दृश्य मन को मोह लेता है। रानीखेत के पास ही स्थित चौबटिया गार्डन पर्यटकों के घूमने के लिए पहली पसंद है जहां पर सरकारी उद्यान और फल अनुसंधान केंद्र भी देखे जा सकता है और इनके पास में ही एक वाटर फॉल भी है। कम भीड़-भाड़ और शान्त माहौल रानीखेत को और भी ख़ास बना देता है। रानीखेत क्षेत्र में पर्यटकों के घुमने के लिए निम्न स्थान प्रमुख हैं:-

कुमाऊँ रेजिमेंट संग्रहालय
कुमाऊँ रेजिमेंट भारतीय सेना की सबसे पुरानी रेजिमेंट में से एक मानी जाती है भारतीय सेना से सम्बंधित जानकारी के लिए आप यहाँ जरूर जाएं। प्रवेश शुल्क देकर आप अंदर आ सकते हैं अंदर फोटोग्राफी की अनुमति नहीं है। यहाँ पर आपको विश्वयुद्ध में पकडी गई चीनी राईफल, जापानी वायरलेस व गोले, बंदुके आदि कई दुर्लभ चीजे देखी जा सकती है, जिससे हमे हमारी सेना पर गर्व का अनुभव होता है। यहां पर कुछ युद्घपोतो के छोटे प्रारूप भी रखे हैं जिसके अतिरिक्त सीमा पर तैनात जवानो के लिए दी गई मशीनगन व बंदुको के बारे में यहां जानने मिलता है। समय के साथ सेना की वर्दी में क्रमवार हुए बदलाव भी आपको यहाँ पर देखने को मिलते हैं। यहां पर झांसी की रानी का राज दंड और शहीद हुए सैनिको के ताबुत भी देखे जा सकते हैं। जब आप संग्रहालय घुम कर बाहर आएंगे तो बाहर दो एंटी एयरक्राफ्ट गन की अनुकृति आपको देखने को मिलेगी।

गोल्फ़ कोर्स, रानीखेत
रानीखेत बाजार से लगभग ६ किलोमीटर की दूरी पर गोल्फ़ का विशाल मैदान है जो गोल्फ़ कोर्स के नाम से प्रसिद्ध है। रानीखेत में शहर से (अल्मोड़ा जाने वाले रास्ते में) चीड़ के घने जंगल के बीच (६००० फुट की ऊंचाई पर) उपट नामक स्थान पर यह विश्व प्रसिद्ध गोल्फ़ मैदान है। यह एक सेना का गोल्फ कोर्स है, लेकिन नागरिक इसे मामूली शुल्क देकर भी एक्सेस कर सकते हैं। कोमल हरी घास का गोल्फ का यह सुंदर मैदान नौ छेदों वाला (नाइन होल गोल्फ कोर्स) है। ऊँचे पहाड़ी स्थान पर ऐसा मैदान बहुत कम देखने को मिलता है। यहां खिलाड़ियों के रहने के लिए एक सुंदर बंगला बना हुआ है, जहां से दूर तक फैले हिमाच्छादित पर्वतों को देखना बहुत ही अच्छा लगता हैं। यह साल भर खुला रहता है और यहां प्राय: फ़िल्मों की शूटिंग भी होती रहती हैं। प्राकृतिक सुषमा के कारण यह स्थान पिकनिक और ट्रैकिंग के लिए काफ़ी उपयुक्त है। साथ ही स्थित फूलों के सुंदर बाग के कारण यहां की रमणीयता और भी बढ़ जाती हैं।

माँ कलिका मंदिर, रानीखेत
घने वृक्षों के मध्य एक छोटी से पहाड़ी की चोटी पर स्थित यह एक प्रसिद्ध मंदिर है। प्रवेश द्वार पर ही कुछ दुकानदार अपनी अस्थाई दुकान लगाये हुए स्थानीय फल आडू, नख आदि बेचते हुए मिलते हैं। इस द्वार से माँ कालिका का मंदिर तक जाने के लिए सीढ़िया बनी हुई हैं। इन सीढ़ियों से घने वृक्षों के मध्य से होते हुए मंदिर पहुँचा जा सकता है। तेज हवा चलने के कारण सीढ़ियों के दोनो तरफ के पेड़-पौधे जोर-जोर से आवाज़ करते हैं तो बहुत ही अच्छा लगता है। रानीखेत का प्रसिद्ध गोल्फ़ का विशाल मैदान भी इस मंदिर के समीप ही स्थित है।
मनकामेश्वर मंदिर
मनकामेश्वर मंदिर रानीखेत बस स्टैंड से ५०० मीटर की दूरी पर स्थित एक धार्मिक एवम् पवित्र मंदिर है। यह एक प्राचीन मंदिर है जो देवी काली, भगवान शिव और राधा-कृष्ण को समर्पित है। सेना नरसिंह मैदान के बगल में स्थित होने के कारन सटे इस खूबसूरत मंदिर का पुनर्निर्माण कुमाऊं रेजिमेंट के सैनिकों द्वारा किया गया है। स्थानीय लोगो के अनुसार मनकामेश्वर मंदिर का निर्माण कुमाऊ रेजिमेंटल सेण्टर के द्वारा किया गया था और यह स्थान रानीझील के निकट सेना की छावनी क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर में भगवान शिव, माँ कालिका एवम् राधा कृष्ण की मूर्ति स्थापित है एवम् देवदार और चीड़ के पेड़ो से घिरा होने के कारण मंदिर की प्राकर्तिक सुन्दरता पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। यहाँ पर्यटक मंदिर के पास स्थित गुरुद्वारा और ऊनी वस्त्र कारखाने का भी दौरा कर सकते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार यदि जो कोई भक्त या श्रद्धालु इस मंदिर में सच्चे मन से मनोकामना करता है, उसी मनोकामना जल्द ही पूरी हो जाती है और भक्त मनोकामना पूरी होने के बाद मंदिर में भेट स्वरुप घंटी एवम् त्रिशूल आदि भेट करते है। हर साल जन्माष्टमी के पर्व पर मंदिर में कुमाऊ रेजिमेंटल के जवानो के द्वारा सुन्दर सुन्दर झांकियां प्रस्तुत की जाती है और मंदिर में विशाल भंडारे का आयोजन भी किया जाता है। मनकामेश्वर मंदिर आसानी से पहुंचा जा सकता है क्योंकि यह रानीखेत से केवल १ किमी से भी कम की दूरी में स्थित है।
झूला देवी और राम मंदिर
रानीखेत से लगभग ७ कि.मी. की दूरी पर मंदिरों की एक प्रसिद्ध जोड़ी जो देवी दुर्गा और भगवान राम को समर्पित है। देवी दुर्गा को समर्पित यह मंदिर रानीखेत से चौबटिया जाने वाले मार्ग पर स्थित है। मंदिर का मुख्य आकर्षण यहां लगी घंटियों का गुच्छा है जिसकी ध्वनि काफ़ी दूर से भी सुनी जा सकती है। झूला देवी मंदिर के समीप ही भगवान राम को समर्पित मंदिर भी है।

हैड़ाखान मंदिर
रानीखेत से क़रीब चार या पांच किमी सड़क मार्ग से कुछ हटकर एनएच-८७ पर यह प्रसिद्ध मंदिर/आश्रम स्थित है। यह सफ़ेद संगमरमर से निर्मित भव्य मंदिर हिमालय की सुरम्य वादियों में एक रमणीक पहाड़ी पर स्थित हैं। मंदिर परिसर से हिमालय का बड़ा ही शानदार नज़ारा नजर आता हैं, यदि आकाश साफ़ हो और धुंध न हो तो सैकड़ों किलोमीटर दूर हिमालय की बर्फ से ढकी मुख्य चोटियाँ जैसे पंचचुली, नंदादेवी, चौखम्बा आदि नजर आती हैं। समुद्र तल से यह मंदिर लगभग १८३५ मीटर ऊँचाई स्थित है। इस मंदिर की स्थापना प्रसिद्ध संत बाबा हेड़ाखान द्वारा जिन्होंने कई वर्षों तक इस स्थान पर ध्यान और तप किया था और स्थानीय लोगो द्वारा पूजे जाते थे। अब बाबा की मृत्यू के पश्चात् इस मंदिर में बाबा के मूर्ति रूप की पूजा की जाती है। यहाँ के निवासी और उनके असंख्य भक्त बाबा को भगवान शिव का अवतार मानते हैं और बाबा को श्री श्री १००८ बाबा हैड़ाखान महाराज के नाम से जाना जाता हैं। इस प्रकार यह मंदिर भगवान शिव और बाबा हेड़ाखान जी महाराज को समर्पित हैं।
चौबटिया गार्डन
रानीखेत से लगभग १० किमी दक्षिण में चौबटिया नामक प्रसिद्ध स्थान पर फलों से लदे बाग हैं। ये बाग कई विशिष्ट किस्मों की खुबानी, आड़ू, स्वादिष्ट सेब और विभिन्न अन्य अल्पाइन फलों के लिए जाने जाते हैं। यहां सरकार द्वारा स्थापित विशाल फल संरक्षण केंद्र भी देखने लायक हैं। यह स्थान मुख्य रूप से फलोद्यान, बग़ीचों और सरकारी फल अनुसंधान केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध है। लगभग २६५ एकड़ क्षेत्र में फैला यहां का होर्टीकल्चर गार्डन भारत के विशालतम होर्टीकल्चर गार्डन्स में एक है। हमें बताया गया कि इस गार्डन में ३६ किस्म के सेब उगाए जाते हैं जिनमें चार किस्मों का विदेशों को निर्यात भी किया जाता है। यहां दर्जनों तरह के फलों के सैकड़ो पेड़ हैं, जिन्हें देखकर पर्यटक गदगद हो उठते हैं। इस स्थान से विस्तृत हिमालय, नंदादेवी, त्रिशूल, नंदाघुन्टी और नीलकण्ठ के विहंगम दृश्य देखे जा सकते हैं। यह उद्यान पास में स्थित भालु डैम बांध द्वारा बनाई गई एक सुंदर झील की पृष्ठभूमि में है, जो पर्यटकों को साल भर आकर्षित करती है। यहां पर पिकनिक का आनंद लिया जा सकता है।
ताडीखेत
ताडीखेत, रानीखेत से लगभग ८ किमी की दूरी पर स्थित एक छोटा सा गांव है। यह जगह 'गांधी कुटिया' के लिए प्रसिद्ध है, जो एक छोटी सी कुटिया है जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, एक बार रहे थे। इस प्रकार यह जगह भारत में ब्रिटिश राज के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रतीक और साथ ही प्रमुख पर्यटन स्थल है। गौरतलब है कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में रानीखेत क्षेत्र में भी आजादी का संघर्ष जोरों पर था। महात्मा गांधी आजादी के रणबांकुरों में जोश भरने १९२९ में तीन दिन के प्रवास पर ताड़ीखेत आए थे। गांधी के आगमन से उत्साहित क्षेत्रवासियों ने ताड़ीखेत में उनके ठहरने के लिए मात्र ढाई दिन में यह कुटिया बना डाली थी। १७ से १९ जून तक ताड़ीखेत में प्रवास के दौरान गांधी जी ने आंदोलनकारियों में जोश भर ऊर्जा का संचार किया था। यह जगह यहां के निकट क्षेत्र में स्थित गोलू देवता मंदिर में आने का एक अवसर भी प्रदान करती है। यह मंदिर कुमाऊं क्षेत्र के पौराणिक और ऐतिहासिक लोकदेवता गोलू देवता को समर्पित है।

द्वारहाट
रानीखेत से कर्णप्रयाग जाने वाली सड़क पर लगभग ३७ किमी पर स्थित कत्यूरी शासकों का केंद्र, द्वाराहाट ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व का स्थान है, जो बाद में यह चंद शासकों के साथ जुड़ गया। यह स्थान यहां पर स्थित प्राचीन मंदिरों के समूह के लिए प्रसिद्ध है। ह र साल विषुवति संक्रांति के अवसर पर यहां भव्य मेला लगता है जिसे स्याल्दे-बिखौती मेला के रूप में जाना जाता है।
शीतला खेत
रानीखेत से लगभग ३५ किमी की दूरी पर शीतलाखेत एक बहुत ही दर्शनीय स्थान है, जहां हिमालय के शानदार दृश्य, शानदार जंगलों और सेब के बागों के बीच है। साईं देवी का प्रसिद्ध मंदिर भी यही पास में स्थित है।
रानीखेत से सुविधापूर्वक भ्रमण के लिए आगे कौसानी, बागेश्वर, बैजनाथ और पिण्डारी ग्लेशियर आदि स्थानों तक भी पहुँचा जा सकता है। रानीखेत में गर्मी के दिनों में मौसम सामान्य, जुलाई से लेकर सितम्बर तक का मौसम बरसात का और फिर नवंबर से फरवरी तक बर्फबारी और ठंड वाला होता है। रानीखेत आप हर मौसम में घूमने का आनंद उठा सकते हैं। इस प्रकार आप रानीखेत साल में कभी भी जा सकते हैं लेकिन सबसे अच्छा समय है मार्च से जून तक का होता है। अगर आप ठंड में जाना चाहें तो सितम्बर से नवंबर के बीच जाएं, तब भीड़-भाड़ थोड़ा कम तथा मौसम सबसे बढ़िया और आसमान भी साफ़ होता है।
निकटतम काठगोदाम रेलवे स्टेशन से ८५ किमी. की दूरी पर स्थित यह पक्की सड़क से अच्छी तरह से जुड़ा है। रानीखेत की दूरी नैनीताल से ६३ किमी, अल्मोड़ा से ५० किमी, कौसानी से ८५ किमी और कुमाऊं के प्रवेश द्वार हल्द्वानी से लगभग ९० किमी हैं। हल्द्वानी, काठगोदाम, नैनीताल या अल्मोड़ा से आप सार्वजनिक वाहन या टैक्सी से रानीखेत पहुंच सकते हैं।
फोटो सोर्स: गूगल तथा सचिन त्यागी का ब्लॉग से
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