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भराड़ीसैंण गैरसैंण में - हलीहल चलीचल


भराड़ीसैंण गैरसैंण में! हलीहल चलीचल!

रचनाकार: श्री त्रिभुवन चन्द्र मठपाल
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अदवाई ( झाड़ा ) कवरमानो गैरसैंण में!
और जागर! फिर देरादूँन दे दनादन में!
सुणो रे! ह्योंन का कोटा है गो पूरा!
अब फिर मिलूल भराड़ीसैंण हम २०१९ जून में!!
भलीकै आँख खोलि बै पढ़ लिया!
दस एक दिनोंक कै बतै बेर!
ढ़ाई दिनम समेटि आयीं बल हमार सैप हमौर ह्यौंनौक बिकास!

साँचि कों तो हम ग्याडू/गंज्याणु ही ठैरे ! "तिर दा" लै "हर दा" हबै एक आँऊ बकाई निकल हो महाराज गैरसैंण राजधानी नाम और काम पारि ! एक बात साँचि बतों ! पै नौक झन मानिया ! धो धो बार पड़ी और आपुणि बाबुकि जागकणि नौकरी मिली लौंड हैं ! ब्या लिजी तम यु पी एस सी क्वालीफाइड क्लर्क या पिराईमरी इस्कूलेकि मास्टराणि नानि चहाँछा ! के तहीं तुमार मन में विचार नि आनौ कि क्वे गरीब दुवैकि चेलि पतेसि जाँण चैं ! जब तुम उनाहैं नि चाँण रया तो य नेता लोग देहरादूनौक सुख छोड़ि बै भराड़ीसैंण में हिसाउ काफोअ रुणिमैं खैंल !

यों ! हमार लै सुणी सुणाई बात कि कुछ नेता लोगुनौंक सूरज अस्त ! पहाड़ मस्त वाल क्वौट ख़त्म है गोछी बल तब दब्बड़ गैरसैंण बै धुरुकि आये बल ! और उ भचकाइयाँल सब दोष हल्दवाणि वालि इन्दिरा बुआ ख्वारम धरि दी कि उवीकि नानि ब्वारि नाचन कूदन है रै छी बल ! यै लिजी उकैं जल्दबाजी में वापस जांण पणंण रौ ! बल ! जब बुआ वापस नहै गेई तो द्यप्त पुजाई ! और बधाई क्यैकि ? होर होर कै बेर होरि आये सब नेता लोग गैरसैंण बटि ! क्वे हौलीकप्टर से और झुन्तुर कार में या कैंहैबति लिफट माँग बेर ! वापस देरादूँन में!

अब रुणिंम ! हिसाउ और काफल पाकने का इन्तजार करो!

(मेरा ये सब लिखने का इतना तात्यपर्य है ! कि जागो खांतोली का विनोद पंत ज्यू ! पनुवै कैं गैंरसैंण घुमाओ जोशी ज्यु ! भास्कर जोशी ज्युक आई ब्या नि है रौय ! बस उम्मीद उपारि छू ! हम लाट गिगाल यार डीयर डरन मरनैं य पोस्ट लिखण राय)
"त्रिचम" ( १०/१२/२०१७)

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