
मातृभाषा ‘दुधबोलि’ दिवस पर
"जां कुमुं गढ़वाला मैं वां क रौणि छूं।”
अनेक भाषा बोलनी‚भारता रौंणीयाँ।
के भला लागनी बोलि‚ आपणी कौंणियाँ।।
हर साल 21 फरवरी तारीख अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दुधबोली दिवस मानि जां। हम उत्तराखंडी लोग ‘मातृभाषा’ शब्दा लिजि ‘दुधबोलि’ शब्द क प्रयोग करनू। यौ ‘दुधबोलि’ भाषा हमुकें अपणी मां क मुखबेटि सुणि या बोलि भाषा छू।या लीजि हम पर्वतीय लोग आपण आपण इलाकों क अनुसार कुमाऊंनी, गढ़वाली या जौनसारी आदि नामूं क व्यवहार करनूं। यौ ‘दुधबोलि’ मातृभाषा हमरी थात विरासत और लोकसंस्कृति कि पहचाण लै छू। हमूं कैं याद रहौण चैं कि हमौर राज्यकि स्थापनाक मुख्य आधार लै हमरि ‘दुधबोलि’ भाषा और लोकसंस्कृति ही छैं। हमरि यौ ‘दुधबोलि’ भाषा हमार त्यौहार, पुज-पाठ, धार्मिक संस्कारों आदि में मजि रची बसी छू और हमार बाब-बूबू बखत बे हमूं कैं विरासत में मिली छू।
म्याल-त्यौहार, गीत-जागरि, झ्वाड़ भगनौल,आदि जतुक लै लोक साहित्याक रंग-ढंग छैं इनरि सबूंकि अभिव्यक्ति लै हमरि ‘दुधबोलि’ मातृभाषा जरियेल हैं छ। हम सबूं कैं जन्म दिणी, दूध पिवै बे हमरि जड़ सिचणी, दुख-सुख बांटणि, हंसि-मजाक करणि, झगौड़-मार कराणि, नवाणि-धवाणि, तौर-तरीक सिखाणि, इस्कुल है बे लै पैलि हमुं कैं अआ-कख सिखौंणि, उजाड़ करण पार सिसौणक सट्टाक लगाणि, रुण बखत पुचकारणि, इजा-बाज्यू कै बे मौकाणि और अकल सिखौंणि जतुक लै कामधाम हमरि ‘इज’ या ‘ब्वे’ हमर लिजि करें वी काम हमरि ‘दुधबोलि’ भाषा हमरि लोकसंस्कृति कि पहचाण बनाण लिजी करैं।हमर देश भारत में यौ बखत 1652 मातृभाषाएं बोलि जानि। इनुमें केवल 22 भाषाएं आठवीं अनुसूची में शामिल छें और इनुकें संवैधानिक मान्यता प्राप्त छू।

उत्तराखण्ड कि राजभाषा हिन्दी छू और द्वितीय भाषा छू संस्कृत।येति कुमाऊनी, गढ़वाली और जौनसारी, मुख्य मातृभाषाएं छें।इनर अलावा कुछ इलाकों में बुक्सा,थारू, राजी, भोटिया भाषा लै बोलि जैं।आजादी मिलि 72 साल है गई मगर 'साहित्य एकैडमी' ल आज तक कुमाऊनी और गढ़वाली कें मान्यता नि दी। राज्य सरकार कें द्वितीय भाषाक दर्ज ऊं स्थानीय भाषाओं कें दिण चें जो कुमाऊं-गढ़वाल और जौनसार इलाकों में 'दुधबोली' भाषा तौर पर बोलि और समझि जानि। यानी राज्य प्रशासन यों तीनों भाषाओं कें 'उत्तराखंडी' भाषा रूप में राज्यभाषा क मान्यता दि बेर इन तीनों भाषाओं कें उपबोलियों क तौर पर स्कूली पाठ्यक्रम में पढ़ण-पढ़ाण क प्रावधान करण चें ताकि सब उत्तराखंडी स्कूली नान आपणि आपणि दुधबोली भाषाक जानकारी प्राप्त कर सकें।लेकिन हमार कुछ जानी मानी उत्तराखंडी विद्वान छें,जो कभें मानक भाषाक नाम पारि, कभें लिपि नाम पारि, तो कभें क्षेत्रीयवाद क तर्क दि बेर कुमाऊंनी- गढ़वाली और जौनसारी आदि उत्तराखंडी भाषाक भाषाई विकास में बाधक बनि छें।
जरा सोचो जब राज्य सरकार उत्तराखंड की भाषाओं कें मान्यता नि देलि तो आठवीं अनुसूची में स्थान मिलण लै मुश्किल छू।पर यौ एक भलि बात लै छू कि आज दुधबोली उत्तराखण्डी भाषाओं का ज्यादातर कवि, गीतकार, गायक, लेखक साहित्यकार और पत्रकार सब लोग आपणी आपणी तरफ बेटि मातृभाषा और दुधबोली क प्रचार प्रसार और उंकें समृद्ध करणा लीजि भौते प्रयासरत छें।हमुंकें अपणी भाषा बोलण मा शरम नि करण चैं।यौ क विकास और संवर्धना लीजि सदा आघिन रौण चैं।

हमरी पहचाण क्वे विदेशी भाषाल नि बन सकिन। हम अगर कुमैया छों तो हमुकैं कुमाऊंनी भाषा आणि चैं। हम अगर गढ़वाली छों तो हमुकैं गढ़वाली भाषा ज्ञान होंण चैं। किलैकि यों हमरि ‘दुधबोलि’ भाषा छें। हमुकैं जमानक साथ चलण लिजि संसारक अंगरेजी,जापानी आदि सब भाषाओंक ज्ञान होंण चैं, मगर आपणि मातृभूमि कि धरोहर ‘दुधबोलि’ मातृभाषा कभैं नि भुलण चैं। मातृभाषा कें बढ़ावा दिणा लीजि आपणि घर परिवार में जागरूकता ल्याण ल भौत जरूरी छू।
उत्तराखंडाक सब भै-बैणियों !आघिन आओ! आपणी दूधबोली भाषा गढवाली, कुमाऊँनी, जौनसारी जो लै तुमरि घर परिवार में बोलि जैं उकें आघिन बढ़ाओ !
आपणि बोलि आपणि पछ्याण!
आओ बनौंल उत्तराखंड महान!!
आज मातृभाषा दिवसाक मौक पर मैं आपणि देवभूमि, मातृभूमि कैं नमन करनूं और
आपूं सब मातृभूमि और मातृभाषा समाराधक मित्रों कैं आपणि शुभकामना लै दिनूं
और आजै कि युवा पीढ़ी हांय कौण चानूं कि आपणि दुधबोली कैं कभैं झन भुलिया।
अन्त में मैं कुमाऊंनी काव्य ‘हरुहीत मालू’ क लेखक श्री केशर सिंह डंग्सेरा बिष्ट ज्यू शब्दोंक साथ आपणि भावना प्रकट करण चानूं -
“अनेक भाषा बोलनी‚ भारता रौंणीयाँ।
के भला लागनी बोलि‚ आपणी कौंणियाँ।।
और भाषा साथ मंजी‚ य भाषा लै कया।
कुमाउँनी भाषा मंजी‚ पालि पोषी रया।।”
सभी मित्रों कें मातृभाषा-दुधबोली दिवस पर हार्दिक शुभकामना।
-© डा.मोहन चंद तिवारी

डा.मोहन चन्द तिवारी द्वारा फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी शब्द सम्पदा पर पोस्ट
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