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शेरदा की कविता - एक थाई खाओ सबै


एक थाई खाओ सबै
लेखक: चारु तिवारी

य टैम म जब पुर देशम सबुकं आपण जस बडोनक और आपुकणि सबूहै भल मैस, सबूहै ठुल धरम, सबूहै ठुलि जाति, सबूहै ठुल राष्ट्रभक्त बतौण लिजी कतुक काव-बिकाउ करी जांणि, यस बखत पर शेरदा 'अनपढ़' ज्यू याद औंनी-
रंग-बिरंगी पंछी छा
एक डाई रवौ सबै।
दुख-सुख, लड्डू-प्याड़
एक थाई खाओ सबै।

धरती में जदूरों मनकी, उदू दिल म ठौर धरो।
सागर में जदू पांणि, उदू मन म प्यार भरो।
स्यू-बाकरी प्रेम जोड़ो, जोड़ो मुस-बिराऊ म।
दगौड़ नि छुटौ कै को, हुलार-उकाव म।
डाई-डाई फूल एक
माव म गछ्यावो सबै।
काव-ग्वोर रंग एक
रंग म रंग्यावौ सबै।

बोली-भाषा चाहे अलग, अलग लै पैराउ हो।
टोपि-टांक-पाग अलग, अलग धौति सुरयाव हो।
गीता अलग, बाइबिल अलग, ग्रंथ कैं कुरान हो।
हो सरीर लाख मगर, एक हमर प्राण हो।
द्वि हाथों लै भाग बणू
दुनि कैं दिखाओ सबै।
जो भागक भरौस भै रूं
लाट कैं गिज्याओ सबै।

आज प्यार कैं पुजो, प्रेमौक परसाद बांटौ।
आज ज्ञानौ दी जगै, कुण-कुण उज्याव बांटौ।
दिल भितैर बसै ल्हियौ, धरती-आसमान कैं।
प्रीति लगै जीति ल्हियौ, यो सार जहान कैं।
यो एक मंतर छू
घर-घर पुजाओ सबै।
दुख-सुख, लड्डू-प्याड़
एक थाई खाओ सबै।

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