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सगीना या सकीना (Himalayan Indigo)

सगीना या सकीना एक खाद्य व औषधीय वनस्पति, Indigofera pulchella is multiuse tree in kumaon, सगीना या सकीना का महत्व

सगीना या सकीना (Himalayan Indigo)


सगीना या सकीना, वानस्पतिक नाम Indigofera pulchella. (Syn. Indigofera heterantha. Indigofera cassioides). यह पादप कुल फैबेसी: Fabaceae अथवा लैग्युमिनेसी: Leguminoceae से संबंधित है। उत्तराखंड में इसे सकिना, सगीना, साकनिया कहीं कहीं साकनू या हाकनू व नेपाल में साखीनो, हिन्दी में फर्सी घास, कोकंणी में चिमनाती व दुर्ग मध्यप्रदेश में घिरघोली तथा अंग्रेजी में हिमालयन इंडिगो या केसिया इंडिगो कहते हैं।
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प्राप्ति स्थान:
हिमालय में पाकिस्तान, कश्मीर से लेकर भूटान तक व दक्षिण चीन यानी चीनी हिमालय में 300 से 1700 मीटर तक पायी जाने वाली झाड़ी। इसकी ऊंचाई 2 से 6 मीटर ऊंची होती है। इसके अतिरिक्त Indigofera cassioides (चिमनाती) कोंकण (महाराष्ट्र के समुद्र तटीय ), गोआ, व उत्तरी कनारा (कर्नाटक) की पहाड़ियों में भी उगता है। सकीना की झाड़ी मध्य प्रदेश के दुर्ग, छतीस गढ़, झारखंड में भी पाया जाता है।
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सगीना या सकीना के अर्क व जड़ों तने के कई भागों का खांसी, छाती के दर्द, आंत में सूजन में दवाई के रूप में भी प्रयोग होता है। इसके काढ़े का उपयोग खांसी के उपचार में किया जाता है। चरक संहिता में सकीना के औषधि विरोचन हेतु प्रयोग लिखा गया है। कैय्यदेव, भावप्रकाश, राज निघण्टुओं में सकीना के गुण व प्रयोग का उल्लेख मिलता है।

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सगीना या सकीना की मातृभूमि या जन्म स्थल North west Tibet हिमालय माना जाता है। अत: सकीना का प्रयोग उत्तराखंड मे तीन हजार साल के करीब या पहले हो चुका होगा। बसंत ऋतु में सकीना के फूलों या कलियों के परांठे और चटनी तथा रायता का आनंद भुलाये नहीं भूला सकते हैं।
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सगीना या सकीना की कलियों की सब्जी हेतु इसकी कलियों को तने से तोड़कर पानी से धो लेंनें के बाद कढ़ाई में तेल गरम करके जख्या या जीरा तड़का लगाया जाता है।  कलियों को थोड़ा भूनकर नमक, मसाले मिलकार थोड़ा  सा पानी मिलकार पकाते हैं। इसकी कलियों की तरीदार सब्जी भी बनती है।  कुछ लोग इसकी कलियों को आटे के साथ मिलाकर या उड़द के मस्यट के साथ मिलाकर पकोड़ी भी बनाते हैं।

 

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