मकोय (American black nightshade)
लेखक: शम्भू नौटियाल
मकोय वानस्पतिक नाम सोलॅनम अमेरिकेनम या सोलेलम नाइग्रम (Solanum americanum Mill., Syn-Solanum nigrum Linn.) है। और यह Solanaceae (सोलेनेसी) कुल का पौधा है। यह दिव्य औषधि है जिसे संस्कृत में काक्माची कहते हैं। मकोय प्रजाति उत्तराखंड व लगभग सम्पूर्ण भारत में पायी जाने वाली वनस्पति है। जो अधिकतर आद्र और छायादार जगहों पर उगती है। इसके पौधे की अधिकतम लम्बाई 2 से 2.5 फीट तक हो सकती है।

मकोय के पत्ते लाल मिर्च के पत्तों की तरह तथा हरे रंग के होते हैं। इसके फूल आकार में छोटे और सफेद रंग के होते हैं। इसके फल आकार में लगभग 5-8 मिमीमीटर व्यास के होते हैं। इसमें सालों भर फूल और फल देखे जा सकते हैं। फल कच्चा होने पर हरे तथा पकने पर लाल, पीला या बैंगनी काले रंग के और रसदार होते हैं। इसके बीज बहुत सारे, छोटे, चिकने और टमाटर के बीच जैसे होते हैं।
यह खरपतवार के रूप में पैदा होता है इसलिए आमतौर पर लोग मकोय के प्रयोग के बारे में अपरचित होते हैं इसलिए मकोया का उपयोग नहीं कर पाते। इसके फल जिसे रसभरी भी कह सकते हैं। यह 1/4 इंच के व्यास में छोटे और गोल होते है। पकने पर ये लाल, नीले या पीले रंग के हो जाते है। एक कुंतल ताजी मकोय से लगभग 25 किलो सूखा माल निकलता है। इस तरह लगभग रोज 300 से 400 रुपए तक काम हो जाता है। मकोय का प्रयोग इंजाइम बनाने वाली सीरप में अधिक किया जाता है।

मकोय पञ्चाङ्ग (जड़, तना, पत्ता, फूल और फल) के काढ़े का सेवन गठिया का दर्द, सूजन, खांसी, घाव, पेट फूलने, अपच, मूत्र रोग में फायदा पहुंचाता है। कान दर्द, हिचकी, जुकाम, आंखों के रोग, उल्टी, और शारीरिक कमजोरी में भी लाभ होता है। इसके पत्ते एवं एवं फल का सेवन से पेट का अल्सर ठीक होता है। इसके बीज भ्रम, बार बार प्यास लगने, सूचन और त्वचा रोग में फायदेमंद है व आयुर्वेदिक तथा अंग्रेजी दवाइयों को बनाने में होता है। इसके साथ ही इसका साग बना कर खाने से पेट से सम्बंधित सभी बीमारियों का खात्मा हो जाता है।

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