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भोजपत्र (Himalayn Birch)


भोजपत्र (Himalayn Birch)
लेखक: शम्भू नौटियाल

उच्च हिमालयी क्षेत्रों में उगने वाला दुर्लभ वृक्ष भोजपत्र (वानस्पतिक नाम: बेटुला युटलिस (Betula utilis ) जो समुद्रतल से लगभग 4,500 मीटर की ऊँचाई तक पाया जाता है, ठंडे वातावरण में उगने वाला पतझड़ी वृक्ष है, जो लगभग 20 मीटर तक ऊंचा हो सकता है। भोज को संस्कृत में भूर्ज या बहुवल्कल कहा गया है। बहुवल्कल यानी बहुत सारे वस्त्रों या छाल वाला वृक्ष। भोज को अंग्रेजी में हिमालयन सिल्वर बर्च कहते हैं। वृक्ष बहुउपयोगी भोजपत्र के पत्ते छोटे और किनारे दांतेदार होते है। 

वृक्ष पर शहतूत जैसी नर और मादा रचनाएं लगती है, जिन्हे मंजरी कहा जाता है। छाल पतली, कागजनुमा होती है, जिस पर आड़ी धारियों के रूप में तने पर मिलने वाले वायुरंध्र बहुत ही साफ गहरे रंग में नजर आते है। यह लगभग खराब न होने वाली होती है, क्योंकि इसमें रेजिनयुक्त तेल पाया जाता है। छाल के रंग से ही इसके विभिन्न नाम लाल, सफेद, सिल्वर और पीला वर्च कहते हैं। सफेद बर्च पर उगने वाला मशरूम कैंसर के उपचार में उपयोग में लाया जाता है। बर्च की छाल में बेटूलिन और बेटुलिनिक एसिड और अन्य रसायन मिले है, जो दवा उद्योग में उपयोगी पाए गए है।

भोजपत्र पर प्राचीन पांडुलिपियां लिखी जाती थी। कागज की खोज से पूर्व हमारे देश में लिखने का काम भोजपत्र पर ही किया जाता था। हमारे देश के कई पुरातत्व संग्रहालयों में भोजपत्र पर लिखी गई सैकड़ों पांडुलिपियां सुरक्षित रखी है। जैसे हरिद्वार में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय का संग्रहालय। कालीदास ने भी अपनी कृतियों में भोज-पत्र का उल्लेख कई स्थानों पर किया है। उनकी कृति कुमारसंभवम् में तो भोजपत्र को वस्त्र के रूप में उपयोग करने का जिक्र भी है। 

इसका उपयोग सजावटी वस्तुओं और चरण पादुकाओं जिन्हें लाप्ती कहते थे, के निर्माण में भी किया जाता था। भोजपत्र भोज नाम के वृक्ष की छाल का नाम है, पत्ते का नहीं। इस वृक्ष की छाल ही सर्दियों में पतली-पतली परतों के रूप में निकलती हैं, जिन्हे मुख्य रूप से कागज की तरह इस्तेमाल किया जाता था। भोज के पेड़ हल्की, अच्छी पानी की निकासी वाली अम्लीय मिट्टी में अच्छी तरह पनपते है। 

भोजपत्र का उपयोग दमा और मिर्गी जैसे रोगों के इलाज में भी किया जाता है। इसकी छाल बहुत उत्तम एस्ट्रिंजेट यानी कसावट लाने वाली मानी जाती है। छाल का उपयोग कामला, रक्तस्राव और घावों को साफ करने में इसका प्रयोग होता है। गंगोत्री से गोमुख के रास्ते में एक जगह आती है, भोजपत्र के पेड़ों की अधिकता के कारण ही इस स्थान का नाम भोजवासा है किंतु यात्री यहाँ से भोजपत्र को अपने साथ ले जाना शुभ समझने के कारण भोज पत्रों को नुकसान भी पहुँचाते हैं।

भोजवृक्षों के वृक्षों के घटने का कारण पर पर्यावरण से जुड़े लोगों का कहना है कि इसकी सबसे बड़ी वजह उच्च हिमालय क्षेत्र में मानवीय हस्तक्षेप है। भोज हमारी प्राचीन संस्कृति का परिचायक वृक्ष है। यह हिमालयीन वनस्पतियों का एक प्रतिनिधि वृक्ष है। अति महत्वपूर्ण औषधीय गुणों से भरपूर इस वृक्ष को बचाना जरूरी है। डेढ़ दशक पूर्व श्रद्धेया डाॅ. हर्षवंती बिष्ट, (वर्तमान में सेवानिवृत्त प्राचार्या राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय उत्तरकाशी) द्वारा भोजवृक्षों को बचाने हेतु भोजबासा के पास बकायदा नर्सरी स्थापित कर इस क्षेत्र में व्यापक स्तर पर भोज वृक्षों को रोपित करने का कार्य पूरे विश्व के लिए प्रेरणादायक है।
शम्भू नौटियाल
 

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