
"कुमाऊँनी शायरी"
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(लेखक: दीपक चन्द्र सनवाल)
चहाइयै रै गोय मै ऊकेंणि
पैलि बार देखी जब किनारी बजार मे
ऊ लागी हय अपुण खरीदारी मे
और मै उइक रूपक दीदार मे
यौ ख्याल में कि अब ज चहालि म्यर तरूफ
और है जालि फिदा म्यर इंस्टैंट प्यार मे
चहाय लै म्यर तरूफ उइल जोरूल हसबै
पर जब मै घस्स रड़ू कच्यार मे
चहायौ-चितायौ के नि मिल
मजाक और बन गो किनारी बजार मे....

😀😀😀😀😉😉😉😉
---पहाड़ी 'दीप'....✒
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