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अपामार्ग, चिरचिटा या लटजीरा (Achyranthes Aspera L.)

चिरचिटा के फूल हरी गुलाबी कलियों युक्त तथा बीज चावल जैसे होते हैं। Achyranthes Aspera L is a common grass known as chirchitta also a medicinal plant

अपामार्ग, चिरचिटा या लटजीरा (Achyranthes Aspera L.)

लेखक: शम्भू नौटियाल

अपामार्ग, चिरचिटा, लटजीरा या गढवाल में उल्टा, बुड़िला (उल्टा काँटा) इसका वानस्पतिक नाम एकायरेन्थिस् एस्पेरा (Achyranthes aspera L., Syn-Achyranthes australis R. Br.) है। यह एमारेन्थेसी (Amaranthaceae) कुल से सम्बन्धित है।  भारत के प्रायः सभी जंगली इलाकों, शहरों तथा गांवों में अपामार्ग पाया जाता है।  जहाँ वर्षा ऋतू के साथ ही बहुत सी वनौषधियाँ पनपने लगती है वहीं बारिश की शुरुवाती मौसम से ही अपामार्ग के पौधे भी अंकुरित होने लगते हैं। ठंड के मौसम में फलते-फूलते हैं और गर्मी के मौसम में पूरी तरह बड़े हो जाते हैं और इसी मौसम में फलों के साथ पौधा भी सूख जाता है।

इसके फूल हरी गुलाबी कलियों से युक्त तथा बीज चावल जैसे होते हैं। जिन्हें अपामार्ग तंडुल कहते हैं। इसके पत्ते बहुत ही छोटे और सफेद रोमों से ढके होते हैं। ये अण्डाकार एवं कुछ नुकीले से होते हैं। यह एक बहुत ही गुणी औषधीय पौधा है जिसका बरसों से आयुर्वेदिक दवाओं के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। अपामार्ग के उपयोग से विकारों को ठीक किया जाता है, बीमारियों की रोकथाम की जाती है। दांतों के रोग, घाव सुखाने, पाचनतंत्र विकार, खांसी, मूत्र रोग, चर्म रोग सहित अन्य कई बीमारियों में अपामार्ग का लाभ ले सकते हैं। अपामार्ग की दो प्रजातियां होती है:
1- सफेद अपामार्ग व 2-लाल अपामार्ग।

वैसे गुणों में इन दोनों ही को समान माना जाता है। सिर्फ पौधे के रंग के आधार पर इन्हें सफेद और लाल इन दो प्रकारों में बाँट दिया गया है। सफेद अपामार्ग का तना, शाखा एवं पते हरे और सफेदी युक्त होते है एवं दूसरे प्रकार में तना एवं शाखाओं पर हल्की लालिमा होती है। लाल एवं सफेद अपामार्ग में रंग के भेद के अलावा बीजों में मुख्य अंतर देखा जा सकता है। लाल अपामार्ग के बीजों पर ऊपर की तरफ कांटे (नुकीले) युक्त होते है, जबकि श्वेत अपामार्ग के बीज जौ के बीजों के समान लम्बे होते है।

इसकी राख में विशेषत: पोटाश होता है। इसके अलावा चुना, लौह, क्षार आदि भी कुछ मात्रा में मिलते है। ये सभी तत्व इसकी जड़ की राख में सर्वाधिक पाए जाते है।पौधे की पतियों में भी मिलते है लेकिन इनका अनुपात जड़ की अपेक्षा कम होता है। बाजार में विभिन्न कम्पनियां इसके योग से अपामार्ग क्षार एवं तेल का निर्माण करती है। जिसका आयुर्वेद में चिकित्सकीय उपयोग किया जाता है।

सफेद अपामार्ग को हिन्दी में चिरचिटा, लटजीरा, चिरचिरा, चिचड़ा, अग्रेंजी में वाशरमैन्स प्लान्ट, रफ चाफ फ्लॉवर; दी प्रिक्ली-चाफ फ्लॉवर तथा संस्कृत में इसे अपामार्ग, शिखरी, अधशल्य, मयूरक, मर्कटी, दुर्ग्रहा, किणिही, खरमंजरी, प्रत्यक्फूली कहते हैं।

लाल अपामार्ग (Cyathula prostrata (Linn.) को हिन्दी में लाल चिरचिटा, लाल-चिचींडा, संस्कृत में रक्तापामार्ग, वृन्तफल, वशिर, मरकटपिप्पली, कपिपिप्पली तथा अंग्रेजी में परपल प्रिंसेस, पाश्चुरवीड, प्रोस्ट्रेट पाश्चुर वीड कहते हैं।

सफेद और लाल दोनों प्रकार के अपामार्ग की मंजरियां पत्तों के डण्ठलों के बीच से निकलती हैं। ये लंबे, कर्कश, कंटीली सी होती है। इनमें ही सूक्ष्म और कांटे-युक्त बीज होते हैं। ये बीज हल्के काले रंग के छोटे चावल के दाने जैसे और स्वाद में कुछ तीखे होते हैं। फूल छोटे, कुछ लाल हरे या बैंगनी रंग के होते हैं। लाल अपामार्ग की डण्डियां तथा मजंरियां कुछ लाल रंग की तथा पत्तों पर लाल-लाल सूक्ष्म दाग होते हैं।

अपामार्ग का औषधीय प्रयोग:-

1- सफेद अपामार्ग के उपयोग:
अपामार्ग के 2-3 पत्तों के रस में रूई को डुबाकर फोया बना लें। इसे दांतों में लगाने से दांत का दर्द ठीक हो जाता है। अपामार्ग के गुण की ताजी जड़ से रोजाना दातून करने से दांत के दर्द तो ठीक होते ही हैं साथ ही दाँतों का हिलना, मसूड़ों की कमजोरी और मुंह से बदबू आने की परेशानी भी ठीक होती है। इस दातून के प्रयोग से दांत अच्छी तरह साफ हो जाते हैं। दातुन का प्रयोग करने वाले बहुत से लोगों के वृद्धावस्था में भी दांतों की मजबूती बनी रहती है। जब अपामार्ग ताजा नहीं मिलता है तो सूखी हुई अपामार्ग कांड को पानी में भिगोकर दातुन कर सकते हैं।

इसके पत्तों को पीसकर लगाने से फोड़े-फुन्सी आदि चर्म रोग तथा गांठ के रोग भी ठीक होते हैं।
अपामार्ग के गुण मुँह संबंधी रोगों में फायदेमंद होता है। इसके लिए अपामार्ग के पत्तों का काढ़ा बनाकर गरारा करने से मुखपाक या मुंह के छाले की परेशानी ठीक होती है।
अपामार्ग के इस्तेमाल से भूख अधिक लगने की समस्या में लाभ : भस्मक रोग बहुत अधिक भूख लगने की बीमारी को कहते हैं। इसमें खाया हुआ अन्न भस्म हो जाता है और शरीर एक जैसा ही रहता है। अपामार्ग के बीजों का चूर्ण 3 ग्राम दिन में दो बार लगभग एक सप्ताह तक सेवन करें। इससे या अपामार्ग के 5-10 ग्राम बीजों को पीसकर खीर बनाकर खिला देने से भस्मक रोग अथवा अधिक भूख लगने की समस्या ठीक होती है। इसके बीजों को खाने से अधिक भूख लगना बन्द हो जाती है।
2 ग्राम अपामार्ग की जड़ के चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करने से पेट के दर्द ठीक होते हैं।
आई-फ्लू, आंखों में होने वाला दर्द, आंख से पानी बहने, आंखें लाल होना, रतौंधी आदि विकारों में अपामार्ग का प्रयोग करना उत्तम परिणाम देता है। अपामार्ग की साफ जड़ को साफ थोड़ा-सा सेंधा नमक मिले हुए दही के पानी के साथ घिसें। ध्यान रखना है कि तांबे के बर्तन में घिसें। इसे काजल की तरह लगाने से इन रोगों में लाभ होता है।
अपामार्ग के 2-3 पत्तों को हाथ से मसलकर या कूटकर रस निकाल लें। उसके रस को कटने या छिलने वाले लगाने पर खून का बहना रुक जाता है।अपामार्ग की जड़ को तिल के तेल में पकाकर छान लें। इसे कटने या छिलने वाले जगह पर लगाएं। आराम मिलता है।
अपामार्ग की जड़ को तिल के तेल में पकाकर छान लें। इसे घाव पर लगाएं। इससे घाव का दर्द कम हो जाता है और घाव ठीक हो जाता है। इसके अलावा जड़ का काढ़ा बनाकर घाव को धोने से भी घाव ठोक हो जाता है।
#अपामार्ग पचांग से बने काढ़ा को जल में मिलाकर स्नान करने पर खुजली ठीक हो जाती है।
दमा को ठीक करने के लिए अपामार्ग की की जड़ चमत्कारिक रूप से काम करता है। इसके 8-10 सूखे पत्तों को हुक्के में रखकर पीने से श्वसनतंत्र के विकारों में लाभ होता है।
लगभग 125 मिग्रा अपामार्ग क्षार में मधु मिलाएं। इसे सुबह और शाम चटाने से बच्चों की श्वास नली तथा वक्ष स्थल में जमा कफ दूर होता है। बच्चों की खांसी ठीक होती है।
खांसी बार-बार परेशान करती हो और कफ निकलने में कष्ट हो साथ ही कफ गाढ़ा हो गया हो तो अपामार्ग का इस्तेमाल अच्छा परिणाम देता है। इस अवस्था में या न्यूमोनिया की अवस्था में 125-250 मिग्रा अपामार्ग क्षार और 125-250 मिग्रा चीनी को 50 मिली गुनगुने जल में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से 7 दिन में लाभ हो जाता है।
6 मिली अपामार्ग की जड़ का चूर्ण और 7 काली मिर्च चूर्ण को मिलाएं। सुबह-शाम ताजे जल के साथ सेवन करने से खांसी में लाभ होता है।
अपामार्ग पञ्चाङ्ग की भस्म बनाएं। 500 मिग्रा भस्म में शहद मिलाकर सेवन करने से कुक्कुर खांसी ठीक होती है।
बलगम वाली खासी को ठीक करने के लिए अपामार्ग की की जड़ चमत्कारिक रूप से काम करता है। इसके 8-10 सूखे पत्तों को हुक्के में रखकर पीने से खांसी ठीक हो जाती है।
अपामार्ग के 10-20 पत्तों को 5-10 नग काली मिर्च और 5-10 ग्राम लहसुन के साथ पीसकर 5 गोली बना लें। 1-1 गोली लेने से बुखार आने से दो घंटे पहले देने से सर्दी से आने वाला बुखार छूटता है।
अपामार्ग की 6 पत्तियां तथा 5 नग काली मिर्च को जल के साथ पीस लें। इसे छानकर सुबह और शाम सेवन करने से बवासीर में लाभ हो जाता है और उससे खून बहना रुक जाता है।
अपामार्ग के बीजों को कूट छानकर महीन चूर्ण बना लें। इसमें बराबर मात्रा में मिश्री मिलाएं। इसे 3-6 ग्राम तक सुबह-शाम जल के साथ प्रयोग करें। इससे बवासीर में फायदा होता है।
10-20 ग्राम अपामार्ग की जड़ के चूर्ण को चावल के धोवन के साथ पीस-छान लें। उसमें दो चम्मच शहद मिलाकर पिलाने से पित्तज या कफज विकारों के कारण होने वाली खूनी बवासीर की बीमारी में लाभ होता है।
अपामार्ग की 5-10 ग्राम ताजी की जड़ को पानी में पीस लें। इसे घोलकर पिलाने से पथरी की बीमारी में बहुत लाभ होता है। यह औषधि किडनी की पथरी को टुकडे-टुकड़े करके निकाल देती है। किडनी में दर्द के लिए यह औषधि बहुत काम करता है।

अपामार्ग पञ्चाङ्ग रस में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करने से मासिक धर्म विकार ठीक होता है।
प्रसव पीड़ा शुरू होने से पहले अपामार्ग की जड़ को एक धागे में कमर पर बांधें। इससे प्रसव आसानी से होता है। ध्यान रखना है कि प्रसव होते ही उसे तुरन्त हटा लेना चाहिए।
अपामार्ग फूलों का पेस्ट बनाकर सेवन करने से प्रजनन से जुड़े रोगों में लाभ होता है।
अपामार्ग रस में पिसे हुए मूली के बीज मिलाकर लेप करने से कुष्ठ रोग में फायदा होता है।
अपामार्ग के 10-12 पत्तों को पीसकर गर्म करके जोड़ों पर बांधें। इससे जोड़ों के दर्द से आराम मिलता है। जोड़ों के दर्द के साथ-साथ फोड़े-फुन्सी या गांठ वाली जगह पर अपामार्ग के पत्ते पीसकर लेप लगाने से गांठ धीरे-धीरे दूर हो जाती है।
अपामार्ग की जड़ को पीसकर लगाएं और जड़ का काढ़ा बनाकर सेवन करें। इससे कमर दर्द और जोड़ों के दर्द से आराम मिलता है।
ततैया, बिच्छू तथा अन्य जहरीले कीड़ों के काटने वाले स्थान पर अपामार्ग पत्ते के रस लगा देने से जहर उतर जाता है। इसके बाद 8-10 पत्तों को पीसकर लुगदी बांध दें। इससे घाव बढ़ता नहीं है।

2- लाल अपामार्ग के उपयोग :
लाल अपामार्ग की जड़ या पंचाग का काढ़ा बनाकर (10-30 मिली) मात्रा में सेवन करें। इससे भूख बढ़ती है।
1-2 ग्राम तने और पत्ते के चूर्ण का सेवन करने से कब्ज की बीमारी ठीक होती है।
लाल अपामार्ग के पत्ते से बने 10-30 मिली काढ़ा में चीनी मिलाकर सेवन करने से मूत्र रोग जैसे पेशाब में दर्द होना और पेशाब का रुक-रुक कर आना ठीक होता है।
लाल अपामार्ग की जड़ या पञ्चाङ्ग का काढ़ा बनाएं। इसे 10-30 मिली मात्रा में सेवन करने से पेचिश की बीमारी और हैजा ठीक होता है।

नोट:
आमाशय के विकारों पर इसका प्रयोग अत्यधिक मात्रा में नहीं करना चाहिए (अपामार्ग का इस्तेमाल इतनी मात्रा में कर सकते हैंः- रस- 10-20 मिली, जड़ का चूर्ण- 3-6 ग्राम, बीज- 3 ग्राम तथा क्षार- 1/2-2 ग्राम।) साथ ही उचित उपयोग हेतु आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह को जरूर लेना चाहिए।


श्री शम्भू नौटियाल जी के फेसबुक पोस्ट से साभार
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