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लिसोड़ा या लसोड़ा (Indian Cherry or Glue Berry)

आयुर्वेद में लसोड़ा को कृमिनाशक और ताकतवर फल है। Cordia dichotoma or Indian Cherry is a wild fruit in Kumaun

लिसोड़ा या लसोड़ा (Indian Cherry or Glue Berry)
लेखक: शम्भू नौटियाल

लिसोड़ा या लसोड़ा वानस्पतिक नाम Cordia dichotoma; Syn. Cordia indica, Cordia ixiocarpa, Cordia domestica कुल: Boraginaceae (Forget-me-not family) से संबंधित।  हिन्दी में इसे लसोड़ा, लसोड़ा टेंटी ,गुंदा; संस्कृत में श्लेषमातक, बहुवारा, सेलु व अंग्रेजी में भारतीय चेरी (Indian Cherry or Glue Berry) कहते हैं। लिसोड़ा या लिसोड़ा नम और सूखे जंगलों में बढ़ता है। यह एक पेड़ का नाम है।  इस पर लगने वाले फलों को गुँदे कहा जाता है।  ये छोटे मीठे तथा गोंददार होते हैं। इसे 'डेला' भी कहते हैं।  इसकी जन्मभूमि दक्षिण पूर्व चीन, भारत, हिमालय, हिन्द चीन आदि स्थल। इससे जाहिर होता है कि लसोड़ा उत्तराखंड में हजारों साल से पाया जाता है। यह हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, राजस्थान आदि में होता है।

लिसोड़ा या भारतीय चेरी उप-हिमालयी पथ और बाहरी श्रेणियों में बढ़ती है, लगभग 1500 मीटर की ऊंचाई तक चढ़ती है। यह राजस्थान के शुष्क पर्णपाती जंगलों से लेकर पश्चिमी घाटों के नम पर्णपाती वनों और म्यांमार में ज्वारीय वनों तक के विविध वनों में पाया जाता है। महाराष्ट्र में, यह नम मानसून वन में बढ़ता है।कुछ जगहों पर जंगल के अलावा लोग अपने खेतों के किनारे पर भी इसे तैयार करते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण इसके पेड़ लुप्त हो रहे हैं।  इसके बीज से पेड़ तैयार करना लगभग असंभव है।

औषधीय गुणों से भरपूर इस प्रजाति के संरक्षण की जरूरत है। इसका पेड़ मध्य ऊंचाई वाला पेड़ है। इसकी ठूंठ 25 -50 सेंटीमीटर की होती है और ऊंचाई 10 मीटर तक हो जाती है। पत्तियों से यह छत जैसा दीखता है। यह भूरे रंग की छाल वाला पेड़ है। इसके फूल सफेद होते हैं और केवल रात को ही खिलते हैं। लिसोड़ा, लसोड़ा , गुंदा के फल पहले गुलाबी पीले होते हैं जो पककर काले हो जाते हैं। सुश्रुत ने लसोड़ा, लिसोड़ा, गुंदा के औषधीय उपयोग के बारे में उल्लेख किया है। इसका सेवन शरीर के लिए बहुत ही उत्तम और ताकत से भरपूर होता है। आयुर्वेद में लसोड़ा को कृमिनाशक और ताकतवर फल माना गया है। लसोड़ा में भरपूर मात्रा में कैल्शियम और फास्फोरस होता हैं जो हड्डियों को मजबूत बनाता है और शरीर को ताकत प्रदान करता हैं। इस फल को खाने से शरीर में ताकत आती है और शरीर को कई अन्य बीमारियों से राहत मिलती है।

लसोड़ा में पान की तरह ही स्वाद होता है। इसके पेड़ की तीन से चार जातियां होती है पर मुख्य दो हैं जिन्हें लमेड़ा और लसोड़ा कहते हैं। छोटे और बड़े लसोडे़ के नाम से भी यह काफी प्रसिद्ध है। इसके फल सुपारी के बराबर होते हैं। कच्चे लसोड़े का साग और आचार भी बनाया जाता है। पके हुए लसोड़े मीठे होते हैं तथा इसके अंदर गोंद की तरह चिकना और मीठा रस होता है। लसोड़ा की लकड़ी बड़ी चिकनी और मजबूत होती है। इमारती काम के लिए इसके तख्ते बनाये जाते हैं और बन्दूक के कुन्दे में भी इसका प्रयोग होता है। इसके साथ ही अन्य कई उपयोगी वस्तुएं बनायी जाती हैं।

संक्षिप्तता:
* लिसोड़ा या लसोड़ा पोषक तत्व और औषधीय गुणों से भरपूर होता है
* देश के कई जगह पर इसे गोंदी और निसोरा भी कहा जाता है
* इसके फल सुपारी के बराबर होते हैं
* कच्चे लसोड़े का साग और आचार भी बनाया जाता है
* पके हुए लसोड़े मीठे होते हैं तथा इसके अंदर गोद की तरह चिकना और मीठा रस होता है
* इसको कॉर्डियो मायक्सा भी कहते हैं।
* तेजी से बदलते खान-पान की वजह से यह लोगों से दूर होता जा रहा है।
* लसोड़े के पेड़ की छाल को पानी में उबालकर छानकर पिलाने से खराब गला भी ठीक हो जाता है।
* इसके पेड़ की छाल का काढ़ा और कपूर का मिश्रण तैयार कर सूजन वाले हिस्सों में मालिश करने से आराम मिलता है।
* इसके बीज को पीसकर दाद खाज और खुजली वाले स्थान पर लगाने से आराम मिलता है।
* लसोड़ा में 2 फ़ीसदी प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट वसा फाइबर आयरन फास्फोरस व कैल्शियम मौजूद होते हैं।
* जब आधुनिक स्वास्थ्य सुविधा नहीं थी तो लसोड़े के प्रयोग से ही कई बीमारियां दूर की जाती थी।
* लगभग हर घर में लसोड़े के बीज चूर्ण आदि रखा जाता था जिसे जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल किया जाता था।
* लसोड़ा नम और सूखे जंगलों में बढ़ता है यह हिमाचल प्रदेश पंजाब उत्तराखंड महाराष्ट्र राजस्थान आदि में होता है

* जंगल के अलावा लोग अपने खेतों के किनारों पर भी इसे तैयार करते हैं।
* जलवायु परिवर्तन के कारण इसके पेड़ लुप्त हो रहे हैं
* इसके बीज से पेड़ तैयार करना लगभग असंभव है।
* औषधीय गुणों से भरपूर इस प्रजाति के संरक्षण की जरूरत है।

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