कौंणी, कंगनी या काफनी (foxtail millet)
लेखक: शम्भू नौटियाल
कौंणी, कंगनी या काफनी वानस्पतिक नाम: सेटेरिया इटेलिका (Setaria italica. Synonym Panicum italicum) जो पोएसी (Poaceae) कुल से संबंधित है। कौणी या कंगनी एक महत्वपूर्ण पौष्टिक अनाज है। इसे अंग्रेजी में फोक्स टेल मिलेट (foxtail millet) कहते हैं। यह मोटे अनाजो में के रूप में बोई जाने वाली प्राचीन फसल है, खासतौर पर पूर्वी एशिया व चीन में तो इसे ईसा पूर्व 6000 वर्ष से उगाया जा रहा है, इसे 'चीनी बाजरा' भी कहते हैं।
यह एकवर्षीय फसल है जिसका पौधा 4-7 फीट ऊँचा होता है, बीज बहुत महीन लगभग 2 मिलीमीटर के होते हैं, इनका रंग किस्म किस्म में भिन्न होता है, जिन पर पतला छिलका होता है जो आसानी से उतर जाता है। उत्तराखंड में ओखली में इसका छिलका उतारकर स्थानीय लोग खास मौकों पर कौणी की खीर भी बनाते है। कौणी की रोटी, भात खीर एवं अन्य व्यंजन झंगोरे की तरह बनाये जाते हैं। आधुनिक तरीके से बिस्कुट, लड्डू इडली एवं मिठाइयां भी बनाई जा सकती है।
कौंणी या कंगनी का पशुओं के चारे में उपयोग:
कौणी की खेती उत्तराखण्ड में बहुत ही कम हो चुकी है, पहले इसकी खेती पशुओ के लिए भी की जाती थी क्योंकि कौणी पशुओ के लिए भी बहुत पौष्टिक होती है। दक्षिण भारत और छत्तीसगढ़ में कौणी को प्रमुख फसल के रूप में उगाया जाता है और यहाँ इसका भोजन भी किया जाता है। छत्तीसगढ़ में कौणी का उपयोग कई रोगों के उपचार हेतु भी किया जाता है जैसे, हड्डियों में सूजन व कमजोरी के लिये, अतिसार जैसे रोगों में कौणी फायदेमंद साबित हुई है। कौणी मिट्टी को बांधे रखने में भी काफी सक्षम पायी गयी है।
कौंणी या कंगनी का रोगों के उपचार में प्रयोग:
कौणी यानि फॉक्सटेल मिलेट्स मधुमेह के खतरे को कम करता है। यह शरीर के अन्दर रूधिर में शर्करा के लेवल को कम करने और शरीर में इंसुलिन प्रतिक्रिया को बेहतर बनाये रखने में सहायक है। इसमें मौजूद मैग्नीशियम तत्व इंसुलिन के स्रावण में सहायक है और शरीर में ग्लूकोज के चयापचय को नियंत्रित करता है। (Foxtail millet lowers the risk of diabetes. It helps to lower blood glucose levels and improve insulin response in the body. The magnesium content in it helps the secretion of insulin and manages metabolism of glucose in the body.) कौणी को पारंपरिक तरीकों के तहत उगने को जैविक खेती के भोजन की फसल भी कहा जा सकता है। प्रोटीन, खनिज और विटामिन के संदर्भ में व्यापक रूप से प्रचलित चावल और गेहूं के मुकाबले कौणी में पांच गुना पोषण से बेहतर है।
कौंणी या कंगनी के पौष्टिक तत्व:
कौणी में Alkaloid, Flavonoid, Phenolics, Tannins के अलावा Starch 57.57 mg Carbohydrates 67.68 mg, कैल्सियम 3.0 gm, iron 2.8 gm, Phosphorus 3.0 3.0mg प्रति ग्राम पाए जाते है। इसमें protein 13.81%, फाइबर 35.2%, fat 4.0% पाये जाते है। कौणी में low glycimic भी उपलब्ध है। कौणी हमारे रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को 70% तक कर देता है। कौणी में एमिनो अम्ल जैसे Lysine 233 mg, Methionine 296 mg, Tryptophan 103 mg, Phenylalanine 708 mg, thereonine 328 mg, Leucine 1764 mg, व Valine 728 mg प्रति 100 ग्राम तक पाये जाते है।
कौंणी या कंगनी के आटे के उपयोग:
कौणी का आटा काफी पौष्टिक होता है। हालांकि कौणी वर्तमान में उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में लोग अत्यंत ही कम उगा रहे हैं लेकिन नगालैंड व दक्षिणी भारत सहित छत्तीसगढ़ के जन जातीय क्षेत्रों में कौंणी प्रमुख रूप से उगायी तथा खायी जा रही है। प्राचीन समय से ही कौंणी को कई क्षेत्रो में खेतों में या खेतों की मेड़ पर भी उगाया जाता है। क्योंकि कौंणी में मिट्टी को बांधने की अदभुत क्षमता होती है तथा इसी वजह से FAO 2011 में कौंणी को “Forest reclamation approach” के लिये संस्तुत किया गया था।
अगर कौंणी के आटे को ब्रेड उद्योग में उपयोग किया जाता है तो न केवल ब्रेड पोष्टिक गुणवत्ता में बेहतर होगी बल्कि इस फसल जो असिंचित भू-भाग में उत्पादन देने की क्षमता रखती है, को बेहतर बाजार उपलब्ध हो जायेगा और समाप्ति की कगार पर पहुंच चुकी कौंणी को पुर्नजीवित कर जीविका उपार्जन हेतु आर्थिकी का स्रोत बन सकती है।
चीन में कौंणी से ब्रेड, नूडल्स, चिप्स तथा बेबी फूड बहुतायत उपयोग के साथ' साथ बीयर, एल्कोहल तथा सिरका बनाने में भी प्रयुक्त किया जाता है। कौंणी के अंकुरित बीज चीन में सब्जी के रूप में बडे़ चाव के साथ खाये जाते हैं। यूरोप तथा अमेरिका में कौंणी को मुख्यत चारे के रूप में उपयोग किया जाता है। चीन, अमेरिका एवं यूरोप में कौंणी को पशुचारे के रूप में भी बहुतायत में प्रयोग किया जाता है।
उत्तराखण्ड सरकार की ओर से फसलों की सुरक्षा के लिए स्थाई कदम उठाये गये तो आने वाले दिनों में स्थानीय व पारम्परिक फसलों के उत्पादन में भारी बढ़ोतरी हो सकती है। हमें खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाने के लिए कौणी की खेती पर ध्यान केंद्रित कर इसकी खेती पुनः शुरू करनी चाहिए। कौणी को बहुत कम पानी की जरूरत होती है, खराब मिट्टी पर अच्छी तरह से बढ़ता है, तेजी से बढ़ता है और बहुत कम बीमारियों से ग्रस्त होता है। एक बार कटाई के बाद इसे अनेकों वर्षों तक अच्छी तरह से भंडारित रखा जा सकता है। हम जलवायु परिवर्तन की स्थिति में स्थानीय महिलाओं व कास्तकार किसानों को सशक्त बनाने के लिए कौणी को उन्नत जैविक खेती के रूप में अपनाकर रोजगार सृजन भी कर सकते हैं।
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