
"गैरसैंण" ! आँखिर कधिन तक ? भाग (१)
लेखक: श्री त्रिभुवन चन्द्र मठपालहम ठगियनैं रया हो दाज्यू !
हम आजि लै ठगियनैं रौंला?
आज रात्ति बयांण बटी लाल दा चमिकि रौ! पाँच बजि अन्यार पट्टै गगासम
नै बेर घर ऐ गोय! य ह्यौंनाक ठण्ड में तहिं बै बटि बाटि चौंथरम भै रौछ !
बस एक बार ठुलइजैकि देई चहा पी उवील ! नजर उवीक सिद्द पार च्योनीकि धार
पारि हई ! कि कहीं गाड़ि ( मोटर बस ) च्योनीकि धार बै हौरन देलि! और मैं
सड़कम हैं धुरुकि लगों ! आज उनसठ वर्षोक लाल दा अठार बीस वर्षाक लौंड
मोंडुकि जस फुर्ती दिखाण रौ!
बात आघिन सुणाण हबै पैली लाल दा परिचय सुणि लियो! आपुण टैंमौक बी ए पढी लाल सिंह ज्यूल आपुणि पुरि जवानि उत्तराखंड आँदोलन में गुजारि दी! लाल दा ब्या १९८७ में हौय मकणि भलीकै याद छू म्यार बौज्यू आचार्य बामण हाय उधिन और मैं बरेती न्योंतौक बरेती हौय! लाल दाक बौज्यू १९९० में कुमाऊँ रेजीमेन्ट बै हौलदारि करि बै रिटायरमैंट ऐ गआय! लाल दा उनौर द्विय चेलियाँक बाद एक च्यल हौय उ लै उनुल उत्तराखंड आन्दोलन कैं सौंपि दी ! और खुद लै हर आन्दोलन मैं लाल दाक दगै बाट लै जानेर हाय! लाल दाक लै द्वीय नान छैं जेठि चेलि घुड़दौड़ी (पौडी) बै बी टैक करि बै गुडगॉँव मेँ नौकरी करीं! उवीक लै पराडबेर ब्या है गो एक चेली छू नानिनानि छः महिणेकि! लाल दाक च्यल परबेर इण्टर कौलेज में लैक्चरर लै गो बल गणितौक़ ! दूर दुर्गम में ! महिणम एक चक्कर घर आँ बल! लाल दा आपुण खर्चपर्च मरचौक और गौहतौक व्योंपार और नानिनानि ठेकदारी करि बै चलै लिनेर हौय!
बाँकि तीन चार साल पैली तक लाल दाकि बाज्यूकि पिल्सनैल भलि पत्ति धरि हई ! अब च्यलैकि नौकरी लागि बाद लाल फिर फौटफौट चिताण भै गयीं!
कतु दिनां बै हमेशा गैरसैंण आंदोलनैकि खबर पारि टक्क नजर गडै बै भै रछी !
आज फिर द्विय जोड़ी लुकुड़ झवालम धरि बै गैरसैंण लिजी फिर से एक आन्दोलन करणाक लिजी चौंथरम भै बेर राणिखेत हैं जाँणि बसैकि इंतजार में छैं!
एतुकै में च्योनिकि धार बै टिटीट ... कवाँ कवाँ कनै गाड़ीक हौरन सुणाई दी!
क्रमश :

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