
रचनाकार: घनश्याम अण्डोला
अहा!उ मैती मुलुक,
म्यर मैती मुलुक।
कतुप भल दिन छिया,
अहा! कतुप भल दगड़
दिनभरि ख्यलन,
झिटघड़ि में लड़न।
इज'क प्यार,
भै'क दुलार,
बाबु'क धमक,
उ हमरि चमक,
गोर-बाछौं'क बागुड़,
उ मोव'क थुपुड़,
बकर'क पा्ठ,
दिगौ!
उ म्याल'क गा'ट,
घ्यु दगै खीर,
ओहो!
द्योक धीsर,
छीड़'क ठंड पाणिनि,
इजा दगै बुति- धाणि,
आहा!
उ हिसाव काफोव,
घिगारु-किलमड़
दगड़ियां दगड़,
तिमिल खाण में झगड़।
अहा!
उ मैती मुलुक,
म्यर मैती मुलुक।
©घनश्याम अण्डोला, 14-12-2018
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