
बेडू (बेड़ू) या फेडू(>Himalayan wild Fig)
लेखक: शम्भू नौटियालबेडू (बेड़ू) या फेडू का (वानस्पतिक नाम 'फाइकस केनयाटा)' है)। बेडू मध्य हिमालयी क्षेत्र के जंगली फलों में से एक है। यह समुद्र के स्तर से 700 से लेकर 1800 मीटर ऊपर स्थानों पर पाये जाते हैं। यह गढ़वाल और कुमाऊँ के क्षेत्रों में इनका सबसे अच्छे से उपयोग किया जाता है। बेडू के पेड़ों में हर समय छोटे-छोटे फल लगे होते हैं। अच्छी तरह पकने पर इसका स्वाद मीठा हो जाता है। पक्षियों और जंगली जानवरों को यह काफी पसंद आता है। गर्मियों में लोग इसकी पत्तियों को जानवरों के चारे के लिए उपयोग करते हैं।
यह बात अलग है कि पहाड़ में पलायन की मार से गांवों और खेत खलिहानों में अब बेडू के पेड़ कम होते जा रहे हैं। बेडू केवल फल ही नही बल्कि औषधि का काम भी करता है।गांव की स्थानीय दिनचर्या में बेडू के अनेक चिकित्सकीय प्रयोग प्रचलित हैं। जैसे कि इसकी पत्तियों से निकलने वाले दूध (बेडू चोप) को कांटा चुभने वाली जगह पर लगाने से कांटा तुरंत निकल जाता है। बेडू एक हाजमेदार ऋतुफल है, जिससे कब्ज और गैस जैसी बीमारियां भी दूर होती है।

पादप विशेषज्ञ बताते हैं कि बेडू का औषधीय महत्व अंजीर की तरह है कि इसमें विटामिन ए व सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। ये पेड़ जंगलों में बहुत कम पाए जाते हैं, लेकिन गाँवों के आसपास, बंजर भूमि, खेतों आदि में उगते हैं। फल लोगों को बहुत पसंद आते हैं। और इन्हे बिक्री के लिए भी प्रयोग किया जाता है। यह मीठा और रसदार होता है, जिसमें कुछ कसैलापन होता है, इसके समग्र फल की गुणवत्ता उत्कृष्ट है। बेडू में फल जून जुलाई में लगता है एक पूर्ण विकसित जंगली अंजीर का पेड़ अनुकूलित मौसम में 25 किलोग्राम के आस पास फल देता है। बीज सहित संपूर्ण फल खाने योग्य होता है।
बेडू के पत्ते जानवरों के लिए चारे का काम करती है यह दुधारू पशुओं के लिए काफी अच्छी मानी जाती हैं कहा जाता है कि बेडू के पत्ते दुधारू पशुओं को खिलाने से दूध में बढोतरी होती है। यह उत्तराखण्ड के अलावा पंजाब, कश्मीर, हिमाचल, नेपाल, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, सोमानिया, इथीयोपिया तथा सुडान में भी पाया जाता है। विश्व में बेडू की लगभग 800 प्रजातियां पाई जाती है। वैसे तो बेडु का सम्पूर्ण पौधा ही उपयोग में लाया जाता है जिसमें छाल, जड़, पत्तियां, फल तथा चोप औषधियों के गुणो से भरपूर होता है। हाथ पांव में चोट लगने पर इसका चोप (बेडू पौधे से निकलने वाला सफेद दूध जैसा) लगाने से चोट ठीक हो जाती है।

बेडू एक बहुत ही स्वादिष्ट फल है। पहाड़ी क्षेत्रों में सभी के द्वारा बहुत पसंद किया जाता है। बेडू फल पकने के बाद एक रसदार फल की भाती होता है। इस फल से विभिन्न उत्पादों, जैसे स्क्वैश, जैम और जेली बनाने के काम भी आता है। इसमें मुख्य रूप से शर्करा और श्लेष्मा गुण होते हैं और, तदनुसार कब्ज के समस्याओ में भी काफी फायदेमंद होती है। बेडु के फल सर्वाधिक मात्रा में कार्बनिक पदार्थ होने के साथ-साथ इसमें बेहतर एंटीऑक्सीडेंट गुण भी पाये जाते हैं जिसकी वजह से बेडु को कई बिमारियों जैसे: तंत्रिका तंत्र विकार तथा जिगर की बिमारियों के निवारण में भी प्रयुक्त किया जाता है।
इसके उपयोग वसंत की प्रारंभिक सब्जी के रूप में किया जाता है। उन्हें पहले उबाला जाता है और फिर निचोड़ कर पानी निकाला जाता है। फिर उनसे एक अच्छी हरी सब्जी तैयार की जाती है। इसका फल कच्चा मीठा रसीला होता है । बिना फलों और युवा अंकुरों को पकाया जाता है और सब्जी के रूप में भी खाया जाता है। बेडू के पेड़ की एक खासियत है कि यह सालभर हरा रहता है।

बेडू स्थानीय जलवायु और तापमान के हिसाब से कभी भी पक जाता है और इसमें बारह मास फल लगते हैं। शायद इसीलिए देश विदेश में 'बेडू पाको बारमासा' गीत के रूप में इस सदाबहार फल ने उत्तराखंड को एक सांस्कृतिक पहचान भी दी है। बेडू पाको बारमासा, उत्तराखण्ड का एक प्रसिद्ध कुमाऊँनी लोकगीत है, जिसके रचयिता तथा लेखक बृजेन्द्र लाल साह हैं। मोहन उप्रेती तथा बृजमोहन साह द्वारा संगीतबद्ध यह गीत दुनिया भर में उत्तराखण्डियों द्वारा सुना जाता है। बाद में जाने माने लोक गायक गोपाल बाबू गोस्वामी ने अपने सुरीले स्वर से इस गीत को गाकर न केवल उत्तराखंड में, बल्कि देश-विदेश में भी लोकप्रिय बना दिया। यह गीत जीआईसी नैनीताल में पहली बार मंचित किया गया था और तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी इस गीत से बेहद प्रभावित हुए थे।

श्री शम्भू नौटियाल जी के फेसबुक पोस्ट से साभार
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