
--:कुणौक घर भाग-१:--
(कोने का घर)
लेखिका: अरुण प्रभा पंत
भीमतालाक 'महार' गौंक कुणौक मकान हमौर छु। हमौर गौकं एक कुण बै दुसार कुणतक १५ मकान एक साथ छन। एक उज्याण (ओर) सैण सैम (कम चढ़ाव वाले) डान और एक कुण बटिक दुसर कुण जांलैं फैली हमौर भीमताल और फिर कुछ खेतन दगै लागि हुयी हमौर घर छु। मैं रमौली यो घरैक 'कर्ता धर्ता'छु। म्यार घर में म्यार दुल्हौ, म्यार द्वि च्याल और एक छः बर्सैक चेलि छू। हम सबन है अलग यां रुनूं, न हम कैकाक (किसी के) घर जानू न क्वे हमार घर उं। हमार कुछ खेत कुछ बाड़ और एक बोट छु। हम ताल बटिक माछ (मछली) पकड़बेर लै बेचनूं पर आब माछ पकड़न मैलै भौत्तै रोक-टोक हुण लाग गे।
साल में द्विबार सीजन में बोट (नाव) में मैस ताल घुमनी तो उमें लै कुछ आमदनी हैजैं। इथकै जेठबैसाख (मईजून) और उथकै असोज कार्तिक(अक्टूबर-नवम्बर) में सैलानी उनी तो कुछ कमै (कमाई) है जै। आब म्योर ठुल भाऊ (बड़ाबेटा) और म्योर दुल्हौ भौत काम संभाल ल्हिनी, नान नानतिन स्कूल जानी। हमार पास द्वि बोट (वृक्ष) काफलाक, एक आमौक और हिसालुक झाड़ और पछिन उज्याणि ठुल्ली केवाणि (केले के वृक्ष) छु। पाणिक हमर यां के समस्या न्हा एक हैंड पाइप छु और जरा दूर पर पाणिक धार छु, एकदम प्राकृतिक।
हम सब भली कै रुनूपर एक्कै दुख छु कि हमार परिवार वाल हमन दगै क्वे किस्मौक संबंध नि धरण चाण। (कोई किस्म का संबध नहीं रखना चाहते।) असल में मैं और इनुल पढ़ाय करते करते जब हम कक्षा दस में छियां एक दुसौर कं पसंद करबेर मंदिर में ब्या करण हुं गयां तो मंदिरौक पुजारिल इनौर बाबू थैं पुठ पिछाड़ि शिकैत (शिकायत) कर दे।
इनार परिवार वाल इनन कं जबरदस्ती पकड़बेर घर लि गेयीं जां इननकं इनार बाबुल कौ कि तु उ चेलि कं छाड़ दे। हम तुकों माफ कर द्यूंलपर जब इनूल म्योर साथ नि छाड़नैक बात कै तो इनार बाबूल इनन कं घर बै निकाय देऔर फिर से यौं म्यार इज बाबनाक पास ऐयीं। म्यार बाबुल यो कुण में हमन कं जाग दे जमै हमुल आपण घर बणा, यो पुर जाग खेत बाड़ और नौ (नाव) मेरे बाबुक छु।
असल में म्यार मैत वालन दगै इनैरि रिश्तेदारी नि है सकछी, मैं शिल्पकार परिवार बटिक छुं। म्यार घरवाल लै यो ब्या नि करण चांछी उनन कं लै आपणै लोगन में म्योर ब्या करण छी परंतु लोगनैल मेरि इतु बदनामी कर दे कि अब और कैं म्योर ब्या हैयी नि सकछी। तो फिर म्यार मैत में म्योर ब्या इनार दगै है गो और म्यार बाबुल इननकं नौ चलूण सिखा, मकं जमीन दे, घर बणूण हुं डबल दी। पर हमरि पढ़ाई लिखाई छुट गे और फिर हमन कं आपण जीवन यापनैक यात्रा मेहनतैल आफि शुरु करण पड़ी।
कृमशः कुणौक घर भाग-२
अरुण प्रभा पंत

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