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कुणौक घर भाग-२

कुमाऊँनी कहानी-म्यार घराक अघिल, गुलबांक, सदाबहार, गुलाब, बेला, चांदनी और हजारिक फूल तुमन कं मिल जाल। Kumauni story about social inequality

--:कुणौक घर भाग-२:--
(कोने का घर)
लेखिका: अरुण प्रभा पंत
मंक आपण घर कं किस्म किसमांक फूलनैल सजूणौक पुराण शौक छु, म्यार घराक अघिल, गुलबांक, सदाबहार, गुलाब, बेला, चांदनी और हजारिक फूल तुमन कं मिल जाल।
मैं रत्तै रत्तै उठ सफाय कर और नैध्वे बेर आपण बालन में फूल जरूर लगूनू हमार यां क्वे साससौर तो न्हांतन और म्यार दुल्हौ कं सिर्फ पुजपाठ में और रंग्वालिक पिछौड़ौक घुघुंट(घूंघट) भल लागु तो मैं आपण घर में कभै ख्वारन घुंघुट नि गाड़न्यू (घूंघट नहीं निकालती हूं।
सब लोग जो मकं जाणनी म्यार फूलनाक कारण भलीकै पछ्याणन लाग गेयीं।

सब कुनी कि मैं देखणचाण छुं (खूबसूरत हूं) और तीन नानतिनैक मस्तारि जै नि लागन्यू, म्योर ठुल च्योल ऐल १६बर्सौक हैगो और उ बिल्कुल आपण बड़बाज्यूक जै डील-डौल वाल छु, सब कुनी कि ठुल घर और होटलवालनौक घरौक नानतिन छु, म्यार सौरास्सी यां भीमताल में 'ठुल घर' वाल या 'होटल वाल राठ' नामैल पहचांणी जानी।

उनार होटल और रेस्टोरेंट छन यां जनन कं म्यार दुल्हौक भाई हौर (लोग) चलूंनी, उनार नानतिन ठुल स्कूलन में पढ़नी, उनार पास तीन चार गाड़ि और फटफटी छन।
ठुल मैसन में उनौर उठण बैठण छु।पर म्यार सबै नानतिन देखण और कद-काठी में आपण बाबुक तरफाक जा लागनी बस मेरि चेलिक आखनौक रंग म्योर जौ छु और घुंघराल बाल लै म्यार जा छन।
हमार दिन लै ठीकै बितणयी हम मेहनत करनूं और हमन कं सबकुछ मिल जां ,सबन है ठुल बात यो छू कि हम सब आपण जीवन में संतुष्ट छांऔर हम आपणि तुलना कै दगै नि करना पर म्योर नानच्योल कूं कि उ एक दिन आपण होटल खोलौल और चार पांचेक ठुल्ली गाड़ि खरिदौल।

नानतिनी (बचपना) बात भै। मैं हंस बेर वीक ख्वार में आपणहाथ पलास दिनूंऔर म्यार दुल्हौ एक जोरैकि स्वास ल्हिबेर आपण गिज(गाल) तांण दिनी।
हम सब एक्कै दगाड़ खाण खानु और हमार घर में सबनथैंपुछ बेर खाण पाकूं और फिर जेपाकिभौय उ सबन कं खाण पड़ूं,हम कौतिकन(मेलों) में घुंमण हुं लै जानू और जब म्यार दुल्हौ भली कै तैयार है बेर उनी तो मैं आय लै उनन कं चाईचाइयै रै जानू उन लै मकं उसी रै देखनी जैसी शैद पैल बखत मकं देखन्हौल।
बस योयी हमरि अमीरी छु।

एक दिन मैल आपण सास कं लमालम (जल्दी जल्दी) पार डानाक मंदिरैक सिढ़ि नांगड़ खुटैल (नंगेपैर) और हाथन में दि(दिया) ल्हिबेर जाते देखौ तो मकं हक्क (डर घबराहट) जै हैगे कि आखिर म्यार सौरास में को बिमार भौन्हौल (कौन बीमार हुआ होगा)!
मैल पत्त लगूणैक कोशिश करी तो पछा मालूम भौ कि म्योर ठुल ज्याठज्यू कं कोई भारि बीमारी छु।

मौलिक
अरुण प्रभा पंत 
अरुण प्रभा पंत जी द्वारा फ़ेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी शब्द सम्पदा पर पोस्ट

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