
वीर बालक हरु सिंह हीत
(भाग-०३)कुमाऊँ की लोकप्रिय लोकगाथा पर आधारित खंडकाव्य
रचियता: खीमानंद
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उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ अंचल में समय समय पर कई वीर-वीरांगनाओं ने जन्म लिया है जिनके सम्बन्ध में कई लोकगाथाएँ प्रचलित हैं। कुमाऊँ की प्रमुख लोकगाथाओं में कत्यूरी जिया राणि, राजुला मालूशाही तथा हरु सिंह हीत आदि शामिल हैं। यहां हम सल्ट परगने के एक शूरवीर राजा हरु सिंह हीत की वीरगाथा के बारे में जानेंगे, जिनका जीवन काल आज से लगभग २०० वर्ष पूर्व १७९० ई० से १८२० ई० के आसपास का माना जाता है। यह उन दिनों का समय है जब अल्मोड़ा के सल्ट परगने में राजा समर सिंह (शायद वह कुमाऊँ के राजा के स्थानीय प्रतिनिधि होंगे, जिन्हें स्थानीय प्रजा राजा ही मानती है) का राज था।
राजा समर सिंह के सात पुत्र थे और सातों एक से बढ़कर एक बलशाली शूरवीर थे। कहा जाता है तब सल्ट बहुत संम्पन्न राज्य था जिस कारण उनको मन में अहंकार आ गया था और वह भी आक्रमणकारी गोरखो की राह पर चल पड़े और प्रजा पर अत्याचार करने लगे। प्रजा उनके अत्याचार से त्रस्त होकर हाहाकार करने लगी और तभी क्षेत्र में अचानक एक महामारी ने दस्तक दे दी। इस भयंकर महामारी के प्रकोप से राजा समर सिंह के के सातो पुत्रो का क्रमबद्ध सात दिन में निधन हो गया और आठवे दिन राजा समर सिंह भी चल बसा।
सात शूरवीर भाइयो और पिता समर सिंह की मृत्यु के समय बालक हरु सिंह हीत माता के गर्भ में था। जब उस वीर बालक का जन्म हुआ तो उसकी माँ सात विधवा भाभियाँ ही उसके परिवार में जीवित थी। कवि द्वारा लोकगाथा में हरू सिंह हीत के माता व भाभियों द्वारा लालन पालन किये जाने, उसकी किशोरावस्था के वीरता के किस्सों और पिता के राज्य को स्थापित किये जाने से लेकर युवक हरू सिंह हीत के प्रति भाभियों की ईर्ष्या, उसके तिब्बत (भोट देश) की राजकुमारी मालू के सौंदर्य से प्रभावित होने पर वहां जाकर तिब्बत से राजकुमारी मालू को जीतकर उसके साथ वापस सल्ट आने, भाभियों द्वारा मालू की धोखे से हत्या करने, उसके बाद विरह में हरू सिंह हीत द्वारा माता के प्राण त्याग देने पर स्वयं की भी जीवन लीला समाप्त कर देने का किस्सा कुमाऊँनी भाषा में काव्य रूप में दिया गया है।
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मैं मरूला भोट जब बंश मिटि जालो।
गुज्डकोट रोजै हणि बांज हई जालो।।
तीथाण मैं ढाढ मारी याद आनी भाई।
ज्योंन हना म्यर ददा करना सहाई।।
फुटिया करम म्यरा आड़ नै आधार।
भोट में आफत आली सुणिया पुकार।।
सांच जै तिथाण हलौ पितरों क येती।
मैं मरूला भोट ज़ब क्यैल ऐजै येती।।
सवौ कौले नाम जपी जतु छी मरीया।
बटलागी गय हरू विरोध भरिया।।
दुड़ बुड़ी चाल लैरे मालूक छ ध्यान।
व्याल क बखत न्हैगौ भगौती दुकान।।
बजारा ढांकरी ऐरे घर का ले आया।
सब वो ढाँकरों औती जम हैई गया।।
हरुवा वो हीत कोंछ सुणों सब झण।
जणी लोग रट दिया अणी गुण चण।।
गूड़ चण खाया सब खाई हैली रौट।
उज्याव हणम हरू लागी गोय बट।।
आखरी खवै छ मेरी नक झन माना।
बिखिलौ मुलुक जान ज्येकौला भगवाना।।
घ्वड़म सवार हय गाड़ी है मुरुली।
विरोधी बांसुई हरु कलेजी कोरली।।
हरुवे वांशुई बाजी डौणिया का आम।
बगड़ा में चारों गौका सैणी लैरै काम।।
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विरोधी बांशुई बाजी कानों पड़ी रैण।
सब सैणो धोक लैमी राड़ छोडी देंण।।
औरत का धन-२ बिचरा तू धन माई बाब।
कलेजी विरोध लैंगौ कसी रनु आब।।
हरुवा यो हीत कौंछ सुणौ मेरी बात।
बिख की भरिया रैछ तिरिय की जात।।
हरू का दोहा तिरिया ऐसी मोहनी,अवगुण हैं ये तीन।
पर मन पर धन हरन को तिरिया बड़ी प्रवीन।।
यतु कई बेर हरु ध्वड़ लै दौड़ायो।
कढोई का तला पना हरूवा ऐ गयो।।
कवि का भिकुवा मंच्याड़ी छीय भिक्यासैण मज।
चार पट्टी मालिक छा भिक्यासैंण मज।।
घट तक बोंया हल कुकुर खात्खुली।
सात छैं बैशुवा तैंक जतिया मारखुली।।
हरुवै की घोंडी न्हैगे कढोई तल पन।
खल बली मची रैछ भिक्यासैंण पन।।
दौड़नै एगय तब जतिया मारखूली।
भुकण भी गय तब कुकर खात्कूली।।
हरुवै की घोड़ी ऐगे भिक्यासैण पार।
तब तक द्वीये ऐगी गगासा किनारा।।
हरुवे नजीक तब द्वीये आई गया।
घोड़ी में वे तब हरु समजण मैं गया।।
हरू का निकय कसूर मैंले निकय अनाण।
निओं तेरा भिकयासैण नितरु में गाण।।
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कतुक समझाय हरु निमानना बात।
जै लागौ जतिया तब असुरै की जात।।
गुस्स मज हरूवै लै उठाई तलवार।
मारौछा जतिया तब टुकड़ा लै चार।।
चारौ दिशा हंणो फैका टुकड़ा ले चार।
कुत्ता मारी बेर फेकौ भेकुवा का द्वार।।
आघिन ले जाई बेर घट जो तिड़छा।
हरु कणि देख बेर वैलै तिडफिड़ कौछा।।
जै लागौ हरुवा तब घट पाट फोड़ौ।
टोड़ी टोड़ी बेर वैलै बगाय फितड़ौ।।
भिकुवा भंच्याडि कणि पुजिगे खबर।
मार मार कनै न्हैगौ बैसुओं का घर।।
भिकुवा मंच्याडि कौछ सात वेस्यों हैती।
कसा बैठी रजा तुम क्य बिगड़ी मति।।
शतुरै लै येती अब करि है चौपट।
जतिया कुकुरै मारी फोड़ि हैछ घट।।
यतु बात सुणी सात न्है गई बटम।
बाटौ रोकी बात कनी अटम सटम।।
भिकुवा भिकुवा ले धाद मारी चारों पट्टी मज।
येती आई रौछ आज गुज्डकोट रज।।
बजा गजा लिई वेर लठ बल्टा ल्यायो।
ऐतो पाई हरुवै की बुति करि जावो।
भिकुवै की बात सुणी सब जिमीदार।
बड़ा गजा लीई बेर है गया तैयार।।
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हरु का कहना आपण मनम हरु करुछा विचार।
वार पार सब आज क्या है रै तयार।।
भिक्यासैण मज अाज के कौतिक हल।
हल चल मचो रैछ पड़ी रैछ रौल।।
वार पार लोग सब जम हई गया।
हरू कणि मारो कनो चिलाण भ गया।।
सब लोग देखी जब आवाज लै सुणी।
मन मज हरू कौछ आई गेछ हुणि।।
ऐसी सोची मन मज कस हय हाल।
कसि जान भोट हणि ऐती ऐगो काल।।
अपण मनम हरू सोचण भै गया।
यों ऐ रयीं निरा निरी चुपाण के हय।।
देवी क सुमिरण करि गोरियक ध्यान।
मेरी लै मदद कय मांगनू वरदान।।
दुधारी तलवार थामी गैड वाली ढाल।
गुस्सा मजि हरुवे की आंख हैगी लाल।।
सातै वेसु मारी हैलो घुसि गो बाजार।
खटा खट हरुवै लै चलै दी तलवार।।
लड़ना चौतरफा घोड़ी नाची हैगो हाहाकार।
लाशों की त ढेर लागे खून की लै धार।।
आधा जिमीदार मरा आधा भाजि गया।
मंच्वाड़ि का वंश मज एक लै निरया।।
भिकुवा मंच्वाड़ि छोड़ी चौपट है सब।
करिये आखर गोछा लौटि योला जब।।
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सब को मारना घोड़ी का सिरम पड़ै महांकाली जाप।
गगासा का बट हरु नसी गय साफ।।
मार मार कनै हरु लुत लेख गया।
हाथ जोडि हरुवे लै गौरिये हैं कया।।
हरू को भोट जिति वेर जब मालु ब्यवे ल्योंला।
द्वी जोंवा हिनोला तब ते कणि चड़ोला।।
हरुवै की घोडी न्हैगे वागेश्वर जब।
हाथ जोड़ि अराधना हरु कोंछ तब।।
मालु जिति राजी खुशी लौटि बेर ओला।
सुन क कलश स्वामी जरूरै चड़ोंला।।
आराधना करी हरू बट लागी गयो।
दान पुर जुहार बटि तक्लाकोट गयो।।
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हरूवा तल्लाकोट में
तक्लाकोट बटी लैगी विदेशी मुलुक।
अब छुटी गोछ घोड़ी आपण मुलुक।।
तुई मैरौ इजा, बबा तेरा छा भरोसौ।
जती जाली मेरी घोडी विख न बरसौ।।
एतु वात कण मज घ्वड़ ठि गय।
घ्वड़ कै बैठण मज भारी दुख हय।।
किस्मत के बिगड़ी जो तू है बीमार।
भारो साँच पढ़ हरु मन में विचार।।
बाता बातों मज हर पड़ि गेछ रात।
ईश्वर को आघिन यो कसि रचि बात।।
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रात देखि बेर हरू घोडी है तैयार।
ईश्वरौ को नाम लिनै हरूवा सवार।।
पैली रात चीन कूद दूसरी कोचीन।
तिसरी व् रात घोड़ि लख महाचीन।।
येतो बटि लैगो घोड़ि हुणियों को देश।
दिन हुणो छिपी जानी रात परवेश।।
चौथी रात हुणियाँ का पांचों घ्वड़ मुख।
परदेशी जीव छिय भारी मिल दुख।।
छटों रात घोड़ी न्हैगे खास ओ भोटम।
बस्ती छोड़ि बेर भाई जंगल बीचम।।
वोती लक हलो हरू देवीक भवन।
देवीको भवन देखी खुशी हैगों मन।।
हरू का भवन भीतेर हरू लागिगे नजर।
अरघ धूपाण हैरौ फूलों झर फर।।
अरघ धुपाण कय हाथ जोड़ि ध्यान।
>परदेशी जीव छौं मैं, मांगनू वरदान।।
मेरो रक्षा करि दिये भोटियों-बीचम।
विलिख मुलुक माता रहिये संगम।।
अष्टबली देई जोंला वचनो आघीन।
देवी पूजा करि बेर पड़ि गई नीन।।
नेमधारी चेलियों क रोजै छिय नेम।
नाण धुण देवी पूजा रातो पर टेम।।
मालू का पूरव उज्याई मजि मालु है तयार।
नाइ धौई बेर मालू करो बै शृंगार।।
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अरघ धुपाण लिबै मालु नसी गेछ।
देवी का भवन मज अराधना कैंछ।
मैं कौंछिय सांचि हली तू रहैछ झुठि।।
बार वर्ष पूजा केबे तु क्य लक रूठि।।
आखिरी की पूजा मेरी सुणिये अरज।
मन कसौ बर दिये य तेरौ फरज।।
पाली पछौं रज हवो भारी बलवान।
तीन दिनैं माल हैंछा जाती बै निदान।।
मालुकी लै ध्यान वैरों देवी पूजा मजा।
बचनों आज न्हैगे हरू कानों मजा।।
हरू का खड़ौ हुई गयो हरू वांई यो बुरज।
पूजा करी मालु लौटि जसी उ सूरज।।
मालु का मालु को नजर लैगे हरू पर जब।
चक्कित है गिरि गेछ मन्दिर में तब।।
हरू का मालु की हालत हरू देखीये रैगयो।
मालु पतौल्यूल कौछी ये कणी क्य हयो।।
मालु की सूरत हरू देखिये रैगया।
आंखो में चक्कर आय आफू गिरी गयो।
थोड़ी देर मज हरू होश आई गई।
इतर सुगन्ध छड़ी मालु होश आई।।
मालु का-हरू कणि देखि मालु बड़े हर्ष हयो।
फिर लै मरद छिय हरूवै लै कयो।।
हरू का-कोछे त्यर मैंति गीति क्यछ तेरौ नाम।
देवी का भवन मज क्यछ तेरौ काम।।
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मालु का-मालु कैछ सुणि लिया बात लै निदान।
बार वर्ष पूजा करी देवी है बेमान।।
भारी खानदान की छौ कालु सौके चेली।
दुनि मेरौ नाम जाणू ओ मालु रौतेली।।
आपण लै पतौ सब बतै दियो नाम।
पड़ि हलौ जादू मालु चलात मन्तर।
मखो बने हरू धरौ डिबिया भितेर।।
भवर बनाय घ्वड़ आकाश उड़रय।
स्वामी का डिविया मालु धमेली दबाय॥
घर बाई बेर, माबू सचेत बनाय।
आपण ले दुख सुख द्वियै लै लगाय।।
कसी बात कनी तब हरूवा का संग।।
गंगला कौ नाम भुला मालू घर गया।
मालु घर क्यलै गया कैल बहकाय।।
तुमरा कारण न्हैगे जवानी हामरी।
मैं हबेर बान अब को हली दूसरी।।
हरू का- गंगला हैं हरू कौंच सुणौ मेरी बात।
मकणि तू क्य छलली तिरिया की जात।।
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मेरी लै सामणी तेरी निचली अकल।
मालु हैबै और कैकी निदेखु सकल।।
गंगला का-गुस्स मजि भरि बेर गंगला नसीगे भितेर।
बंगालौ को चेड़ा लिवै मन्त्र पढ़ि बेर।।
नंग छड़ जादू हरू नसीगो सिराण ।
सतुरों का घर गग झन होयो चोट।।
तेरा लै बगीच मज खड़े रयू खाड़।
अन्न खये पाणि पिये झन मारे डाड़।।
तेरो मेरो आपस में द्वि दिनो क योग।
मरै हँणि भोटा आयौ झन कये सोग।।
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मालु का-झट स्वीण मज मालु एक दम जागी।
फावड़ कुटव लिबै बगीचा जैलागी।।
खड्ड खनी बेर मालु खौलछा बगश।
घोई कसि फाट तब देखि हैछ लाश।।
लाश लैं पकड़ि मालु लिन्है गेछ घर।
जादू पढ़ि बेर मालु उतार जहर।।
जादू का बटुव लिबै घोड़ी में सवार।।
भोटियों पै लागी गेछ मालु की नजर।
तब हैगे मालु कणि स्वामी की फिकर।।
मालु का-मालु कौंछ मेरौ स्वामी यौ हैगै अन्धेर।
म्यर वाव आई गोछा फौज सजै बेर।।
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तुम थामो तलवार मैं पढ़न जादू।
तब कयो कालु च्येलो जब भोट सादू।।
घबराया भन तुम धरिया धीरज।
स्वामी की मदद कणी नारी को फरज।।
हरु का लड़ना-छत्री बंशी च्यलौ छियो पड़िगो रणम।
शेर जसौ, पड़ि जांछा हिरणों बणम।।
गुज्डूकोट जाई मालू इजा सेवा कोंला।।
मालु का-मालु कैछ मैंति बिना है गाय अनाथ।
भोटक लै धन माल लादौ सब साथ।।
हरु का-घ्वडों लै बकरौ मज़ करि है लदान।
भोट को लै धन माल लादौछा समान।।
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यात धन भोट मजि या तलि बतानी।
य देश निर्धन भया रंगीलौ बतानी।।
द्विय झण नहै गया देवीक भवन।
हाथ जोड़ि हरूवै लै करी अराधना।।
लुतालेख-डिबरा बकरा न्हैगी बाँसुई का स्यरा।
पदुवा द्वर्याव कणि मिलिगे खबरा।।
पदुवा का पदुवे लै धाद मारि चारों पट्टी मजा।
स्यर म्यर बांज कहै कैकी ऐ जा कजा।।
चारों पट्टी लोग ऐगी पदुवा का संग।
बाँसुई का स्यर तब उठ गयो दंग।।
हरु का-मालू लैंत जादू पड़ हरूली तलवार।
लाशों की तौ ढेर लागे खून की लै धार।।
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आधु मरा आधु भाजा पदुवा रै गयो।
कुला का कुल बान पर पदुवा दबायो।।
मार मार कनै तबा आया भिक्यासैण।
भिकुवा का कानों मंज पड़ि गई रैण।।
भिकु का हाथ जोड़ि कोंछ धन मेरा भाई।
सात राजों मज फिरी य तेरा दुहाई।।
भुलि गेछ दुःख सुख भुलि गेछ काल।।
ढिबरा बकरा छोड़ि दिय अया घर।
च्याला ब्वारी पर आब लागि गे नजर ।।
च्यला ब्वारी भूकि लिबै मां करीछ प्यार।
दुनिया में नाम रैजो धरती की चार।।
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घ्वड़ौ व बकरा का लै उतरौ लदान।
गुज्डुकोट जम कय भोटो को समान।।
राजी खुशी भादों न्हैगो असौज लै गयो।
कातिक महैन अब माता हैती कोय।।
मालू झन जाण दिये भौजियों दगड़।
भोट की रणिया हई निदेखा ओ मंछा।
कस हनी-मिरगा यां कस हनी मछा।।
आई जैंछ हुणि जब बैठि जें कुमति।
अंबाई का पंख बटि माल ऐगै वोति।।
मछ जै चहौंल कछी सातों लै पकड़ी।
मन मनै मालु कैँछ ऐगे मेरी घड़ी।।
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मैं माफी मांगनु कैछ सुणौ मेरी दिदी।
छोड़ो कनै रामा मालु पर विति।।
भाभियों का-निरद्ई भौजियों लै रौउ डुबै हैछा।
हंस उड़ि गयो मालु लाश पड़ी रैछ।।
भाबर बै घ्वड़ा मज हरू हो सवार।
मार मार कनैं हरू आयो कोसी पार।।
हरु का-हरुवै लै गाड़ी तब विरोधी बांसुई।
खट खट खट खट लागि गे भांदुई।।
भादुई लागण मज माल ऐगे याद।
बांयी आँख फड़िक गे मन में बिखाद।।
माम-२ कनै हरू प्राय गोय घर।
हाथ जोडि माता हणि पूछुछ खबर।।
भौजी सातै आगी इजा मालु कती गई।
दिन यो आखरी ऐगो मालु लै निअई।।
मालु की खोज घोड़ोम बैठुछ हरू न्हैगो खोजण।
बार बांट बकरौ का हइ रइ वण।।
हरुवै मन मज लगायं विचार।
मालु मन नियाय कि म्यर घर वार।।
मालु न्है गेछ जाणी आपण लै मैत।
लौटै बैर ल्यौल कौंछ यौं घड़ी सैत।।
मार-२ कनै न्हैगो भगोती दुकान।
रात पड़ि गेछ तब धरि लिया ध्यान।।
हरू कणि नीन पड़ि उज्याव हणम।
सिराण में मालू बैठि स्वपना रथमा।।
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मालु का स्वप्न में हरू हति मालु कैछा हाथ जोड़ि बेर।
कती जोंला भोट हणि मैत मरी बेर।।
मैति गोति मारी बेर है गोयु अनाथ।
अब छुटि गौछ स्वामी तुमरौ लै साथ।।
निगय मैं मैत हणि निछै मैति गोति।
रोका तवा डुबै हैलू तिथाण छ जति।।
सातौ लै ओ मत करो मैं डुबाय गाड़।
झन कया म्यर शोक झन मारा डाड़।।
उड़ि गय म्यर भोग मरी गया खैर।
म्यर लै कारण स्वामी झन करा बैर।।
ब्या करिया म्यर स्वामी करि लिया ऐस।
म्यर शोक झन कनय नौ धरीला मैस।।
हरु का जागना यतु बात सुणि हरु टुटि गेछ नीन।।
हरूवा व हीत अब क्य करु आघिन।।
हाय मालु-२ कनै घ्वड़ा लै लौटाय।
मार-२ कनै अब हंसि ढुंग आय।।
हरुवै नजर लैगे रौका तला हना।
मुखड़ी क तप मालू पुन्यों कसी जून।
हरू का हरुवै डुब मारी मालू गाड़ी भ्यार।
हरु कीछा हाय मालू बिन मौतै मरी।।
विलाप यो म्यर लिजिया मालु त्वीले कसी करी।
तु म्यर कारण माल बिन मौत मरी ।।
मारी बेर गङ्गला लें में खड़यै दो खाड़।
मारिया कौ ज्यौन कय मारी भारी डाड़।।
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जादू पड़ि बेर मालु भोटियों बीचम।
म्यर लै कारण त्वीलै मैति कै खतम।।
मै मरनौ जब मालु तू बचानी आज।
तू मरीगे गुजडुकोट करी गेछै बांजि।।
एक ओ घागरी मिजि दूसरो छी कोरी।
मिजिया घागरी खोली छाती पीटी खोरी।।
हंसी ढुंगा मज हरू धरीछ सुकाण।
घागरी का छाप ओति आजि ले पछाड़।।
हरुवा बदन मजि लागि गेछ आग।
सबों मारी बैर गिनाय सानण।।
जंगल में जाई बेर गिनाय सानण।
जम करी आय हरु जां छिय तिथाण।।
मार-२ कनै, हरू गुजडुकोट आय।
कलेजी में लागी रैछ बिरह की चोट।।
सातों धम्योंली धामी खींची ल्याय घाट।
ज्योंन धरि चित्त मजि पड़ीगो चिचाट।।
सातै कैं भसम कै लै घर कणि आय।
हाथ जोड़ि माता हति हरुवै लै कोय।।
हरु का-सांची जै महेड़ी हली छोड़िये पराण।
तेरी गत मैं कें जोला जां मेरी तिथाण।।
मालु मरी गेछ इजा मैंले जानु सात।
पछिन मरली जब है जाली कुगत।।
सतवन्ती हाई कै बे छोड़िछ पराण।
माता कणि सिर धरी लोगयो तिथाण।।
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माता का-महेड़ी का चित्त साल लगें हैछ आग।
तिलाजली दिई वेर बने हैछ खाग।।
हरु का दक्षिण घवड़ो को चित्त आपण पूरब।
अपण हातलै हरु भस्मा के सब।।
सब का भस्म होना मालू गोदी थामी हरु हैगोछ भसम।
हाय राम हाय शिव सब है गय खतम।।
कवि का-मालू का कारण भया मरी मैं इगार।
गुज्डुकोट बांज हैगो लैगई दुहार।।
कैक झन हवौ भया यस निर भाग।
नारी लै पुरुष सब हैई गई खाग।।
नाम लै अमर हैजो धरती की चार।
महेड़ी वचन छियो करिया विचार।।
ज्योंन छियौ हरुवौ को बड़ नाम हय।
मरी बेर धन हरु कस नाम रय।।
जयोंन जिया हरु हय गुजडुकोट रजा।
मरी बेर हय हरु कोटनिकौ रजा।।
आपण इलाक मजे भिरुछ तमान।
फौज ओ फरहर संग सबै लै समान।।
जग-२ मन्दिर छैं घाट घाट पूजा।
न्याय को निसाप कौंछ काम निछ दूजा।।
सब जग बटि जब है जानि निरास।
अरज लिबेर तब आनी त्यर पास।।
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माता का-महेड़ी का चित्त साल लगें हैछ आग।
तिलाजली दिई वेर बने हैछ खाग।।
हरु का दक्षिण घवड़ो को चित्त आपण पूरब।
अपण हातलै हरु भस्मा के सब।।
सब का भस्म होना मालू गोदी थामी हरु हैगोछ भसम।
हाय राम हाय शिव सब है गय खतम।।
कवि का-मालू का कारण भया मरी मैं इगार।
गुज्डुकोट बांज हैगो लैगई दुहार।।
कैक झन हवौ भया यस निर भाग।
नारी लै पुरुष सब हैई गई खाग।।
नाम लै अमर हैजो धरती की चार।
महेड़ी वचन छियो करिया विचार।।
ज्योंन छियौ हरुवौ को बड़ नाम हय।
मरी बेर धन हरु कस नाम रय।।
जयोंन जिया हरु हय गुजडुकोट रजा।
मरी बेर हय हरु कोटनिकौ रजा।।
आपण इलाक मजे भिरुछ तमान।
फौज ओ फरहर संग सबै लै समान।।
जग-२ मन्दिर छैं घाट घाट पूजा।
न्याय को निसाप कौंछ काम निछ दूजा।।
सब जग बटि जब है जानि निरास।
अरज लिबेर तब आनी त्यर पास।।
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जैक लै कसूस देख जांछ तैका घर।
य त्वीले कसूर कौच दि द्य ला खबर।।
चौरी लै साबित कोंछ घर जाई बेर।
माल लै वापिस कोंछ धमकांई बैर।।
रिपोट करनी जब त्यर दरबार।
निशाप करछ रजा नाम छा संसार।।
धन-२ रजा तुम धन तेरी माया।
कसा कसा च्यला हया यसा क्बे निहया।।
अपण इलाक मजि फिरूछा निडर।
मेरो बाटो झन रोका दि द्यु छा खबर।।
कोटिन कौन गस्त त्यर भोट तक जांछ।
लौटि वेर कोस्यां नबा भावर लै आछ।।
आपण इलाक मजि हैरौ छ मशहूर।
निलागू कैपर कोंछे बिगर कसूर।।
कंतुकों ले जाई बेर अजमेस करी।
तेरी अजमत देखि लोग गया डरि।।
धन ओ महेड़ी जैलै दो दिया वचन।
दुनिया में नाम तेरो रैगो सनातन।।
हरूवै किताब सब पुरि हैगे भाई।
आघिना ओ सरस्वती है जये सहाई।।
म्यरा ओ बनाई तौन किताब तयार।
भारत क हरु हीत सतवंती बार।।
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