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गोपाल बाबू गोस्वामी जी - लोकगाथा हरु सिंह हीत

प्रसिद्ध ऐतिहासिक कुमाऊँनी लोकगाथा हरु सिंह हीत भाग-०१ Famous Kumauni Folk tale Haru Singh Heet Part-01

सुनिए सुर सम्राट गोपाल बाबू गोस्वामी जी के सुमधुर गीत

कुमाऊँ की लोकगाथा "हरु सिंह हीत"
प्रस्तुति एवं गायन: गोपाल बाबू गोस्वामी जी

मित्रो, जैसा कि हम सब जानते हैं कि उत्तराखण्ड और कुमाऊँ में कई महान लोकगायक हुये हैं लेकिन गोपाल बाबू गोस्वामी एक ऐसे संगीत साधक हैं जिनकी पहचान ऊंचे पिच की वोईस क्वालिटी के कारण सबसे अलग है। गोस्वामी जी की इस सुरीली आवाज का ही जादू है कि कुमाऊँनी ही नही अन्य भाषा-भाषी भी एक बार उनका गीत सुनने के बाद उनके गीतों को बार-बार सुनकर खुद गुनगुनाने को विवश हो जाता है।  गोपाल बाबू गोस्वामी जी ने विभिन्न प्रकार के गीत गाये हैं जैसे श्रंगार गीत, भक्ति गीत, पहाड़ के सौन्दर्य और पहाड़ के जन-जीवन से सम्बंधित गीत आदि।  आज हम गोस्वामी जी द्वारा प्रस्तुत कुमाऊँ वीरगाथा  "हरु सिंह हीत... " को सुनेंगे।

उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ अंचल में समय समय पर कई वीर-वीरांगनाओं ने जन्म लिया है जिनके सम्बन्ध में कई लोकगाथाएँ प्रचलित हैं।  कुमाऊँ की प्रमुख लोकगाथाओं में कत्यूरी जिया राणि, राजुला मालूशाही तथा हरु सिंह हीत आदि शामिल हैं।  यहां हम सल्ट परगने के एक शूरवीर राजा हरु सिंह हीत की वीरगाथा के बारे में गोपाल बाबू गोस्वामी जी के स्वर में सुनेंगे।  यहां हम सल्ट परगने के एक शूरवीर राजा हरु सिंह हीत की वीरगाथा के बारे में जानेंगे, जिनका जीवन काल आज से लगभग २०० वर्ष पूर्व १७९० ई० से १८२० ई० के आसपास का माना जाता है।  यह उन दिनों का समय है जब अल्मोड़ा के सल्ट परगने में राजा समर सिंह (शायद वह कुमाऊँ के राजा के स्थानीय प्रतिनिधि होंगे, जिन्हें स्थानीय प्रजा राजा ही मानती है) का राज था।

गाथा के पहले भाग में गोपाल बाबू गोस्वामी जी ने सल्ट परगने के बारे में वर्णन किया है कि राजा समर सिंह के सात पुत्र थे और सातों एक से बढ़कर एक बलशाली शूरवीर थे। कहा जाता है तब सल्ट बहुत संम्पन्न राज्य था जिस कारण उनको मन में अहंकार आ गया था और वह भी आक्रमणकारी गोरखो की राह पर चल पड़े और प्रजा पर अत्याचार करने लगे।  प्रजा उनके अत्याचार से त्रस्त होकर हाहाकार करने लगी और तभी क्षेत्र में अचानक एक महामारी ने दस्तक दे दी। इस भयंकर महामारी के प्रकोप से राजा समर सिंह के के सातो पुत्रो का क्रमबद्ध सात दिन में निधन हो गया और आठवे दिन राजा समर सिंह भी चल बसा।  सात शूरवीर भाइयो और पिता समर सिंह की मृत्यु के समय बालक हरु सिंह हीत माता के छह माह के गर्भ में था।

गाथा के दूसरे भाग में जब उस वीर बालक का जन्म हुआ तो उसकी माँ सात विधवा भाभियाँ ही उसके परिवार में जीवित थी। लोकगाथा में हरू सिंह हीत के माता व भाभियों द्वारा लालन पालन किये जाने, उसकी बाल्यावस्था से किशोरावस्था तक वीरता के वीरता के विभिन्न किस्सों और राज्य के जमींदारों से लगान की वसूली शुरू करने और स्वयं राजा के रूप में अपने पिता के राज्य को स्थापित किये जाने।  राजा हरू सिंह हीत के विवाह के योग्य होने तथा अपने विवाह हेतु योग्य वधु हेतु प्रजा तथा परिवार में बताने पर उसके प्रति उसकी सात भाभियों की ईर्ष्या और अपना भविष्य अनिश्चित जान भाभियों द्वारा घर से निकल जाने और हरु को कटुवचनो से कोसने तक की कहानी प्रस्तुत की गयी है।

गाथा के तीसरे भाग में वर्णन किया गया है की जब हरु की भाभियाँ घर से निकल जाती हैं तो वे दो वीर भाइयों हम और धम जो पेशे से भैंसिये (भैंस पालक) होते है के घर पर चली जाती हैं।  भाभियों की खोज में हरु वहां पहुँच जाता है तो हम और धम उसको वहां से चले जाने को कहते हैं विवाद होने पर दोनों भाई हरु को बुरी तरह घायल कर बेहोश कर देते हैं।  होश आने पर हरु पुन: युद्ध करता है और किसी प्रकार दोनों भाइयों को परास्त पर भाभियों की वापस घर ले आता है।  अब भाभियाँ एक नयी चाल चलते हुए उसे भोट देश की राजकुमारी को विवाह कर लाने को कहती हैं क्योंकि वह दूर और दुर्गम प्रदेश था और वहां से वापस आना मुश्किल था।

गाथा के चौथे व अंतिम भाग में हरु भिकियासैण से आगे विभिन्न कठिनाइयों का सामना करते हुए बागेश्वर से आगे भोट देश पहुँच जाता है।  जहां उसकी भेंट मालू से हो जाती है और दोनों का परिचय होता है।  लेकिन वहां पर उसे विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता  है और मालू की बहनों द्वारा  जादू के प्रभाव से मारा जाता है।  वह उसे मारकर उसकी लाश को जमीन ले अंदर गाड़ देती हैं लेकिन मालू को इस बात का पता चल जाता है और वह मन्त्रों के उसे दुबारा पुनर्जीवित कर देती है उसके बाद वह दोनों वापस सल्ट  पहुँच जाते हैं। लेकिन उनकी परेशानियों का अंत नहीं होता वापस सल्ट आने के बाद, भाभियों द्वारा षड्यंत्र रचकर मालू की धोखे से हत्या कर दी जाती है, उसके बाद विरह में हरू सिंह हीत द्वारा उसके आग्रह माता के प्राण त्याग देने उपरान्त वह स्वयं की भी जीवन लीला समाप्त करदेता है यह सारा किस्सा कुमाऊँनी भाषा में काव्य रूप में प्रस्तुत किया गया है।

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