
-:घुघुत पक्षी - हमरि पछ्याण:-
लेखिका: अरुण प्रभा पंत
हिमालयी क्षेत्रन में पायी जा़णी वाल यो चौड़ कबूतर परिवारौ'क भौय जो पाकिस्तान में और हमार देशाक और प्रांतन में लै दिखींछ। यैक रंग भुर हुं और जो ठुल जौ हुं वीक गर्दन में द्वि काल रेखाड़ हुनी जकं गढ़वाल और कुछ कुमाऊं क्षेत्र में 'माल्या घुघुति' कुनी। अंग्रेजी में यकं Eurasian collared Dove कुनन बल। एक घुघुति कुछ नानि जै है और वीक गरदन और पुठ में काल दाण जा हुनी उकं 'मसुर्याली घुघुति' कुनी। अंग्रेजी में यकं laughing Dove कुनी बल।
हम तो चौड़ कं 'घुघुति' यैक वजैल कुनु किलैकी यो जो स्वर निकालुं उ"घु घू थी" जौ शुभी, तबै यथै 'घुघूती' कूण लागन्हाल। घुघूति चौड़ हमौर पुर उत्तराखंडैक पछ्याण छु।हमौर गीत संगीत, रीति-रिवाज बै ल्हिबेर संपूर्ण वांग्मय में बसी हुई छु। चैत बैसाखैक बात हो और घुघूतिक जिकर नि हौ ऐस हैयी नि सकन।एक बिना हमर गौं ग्वैठैक कल्पना लै नि कर सकना।कभै उखलाक पास कभै पागलपन,कभै बोटाक डावन घुघूति दिखि जानेरै भै। आब उनूं गीत संगीत में--"घुघूती बासुति खा दुदू भाति"
"ना बासा घुघूति चैत में"
"आमा की डायी मां घुघूति न बासा"
श्री गोपाल बाबू गोस्वामी ज्यू'कं उनर प्रतिभाक साथ साथ घुघूति'ल लै कुमाऊनी गीतनौ'क ध्वज वाहक बणै दे।
गढ़वाल गौरव नरेंद्र सिंह नेगी ज्यूल
"घुघूती घुराण लागि म्यारा मैत की" को, कोभुल सकूं।
नेगीज्यूल तो घुघूतिक सुराहीदार सांकी(गर्दन) कं ऐस अपना आपण संगीत में कि पुर उत्तराखंड गढ़वाल बै ल्हिबेर कुमाऊं तक एकसाथ एकसार मै हैगो।
"कख बटि ल्है होली घुघूती सी सांकी,
कख पायी होली स्या छुंयाल आंखी"
ऐं तरिकैल यो चौड़ घुघूति पुर हिमालय क्षेत्र कं जोड़नी वाल बण गोय। गढवालि कुमाऊनी गीदन और साहित्य में घुघूति स्वयं संदेशवाहक छु। "उड़ि जा ऐ घुघूति न्हैजा लदाख हाल म्यारा बतै दिया म्यारा स्वामी पास"
"मेरी प्यारी घुघूति जैली, मेरी मांजी तैं पुछी ऐली"
लेखक देवेश जोशी ज्यूल तौ आपण एक पुस्तकौक नाम "घुघूति ना बास" धर राखौ।
मुंबई निवासिनी एक शैणिल आपण ब्लागौ'क नाम'घुघूति बासुती" धर राखौ।
कूर्मांचल सांस्कृतिक परिषद देहरादूनैल आपण स्मारिकाक नाम "घुघूति" दि राखौ।
हमौर मकर संक्रान्तिक त्यौहारौक मूलनाम 'उत्तरैणिक' साथ साथ घुघुतिया लै भौय, जमैं मकर संक्रान्तिक पैल दिन या संक्रांति दिन गुड़ाक या चिनिक शकरपाव और लै कुछआकृति जैसी-- दाड़िम ,पान ,ढाल ,तलवार बणै बेर माव गछ्यूनी उमें बड़ नारिंग,म्याव लै गछ्यूनीऔर दुसार दिन रत्तै नानतिन उ माल पैर पिठ्या लगै "काले कव्वा" कूण शुरू कर दिनी,यो त्यारौक नामै घुघुतिया छु।
आब बताओ तो चौड़ क्वे मामूली चड़ जै के भौय। हमरि पछ्याण यो चौड 'घुघूति'कं हम आपण पुरखनाक समान नमन करनू।
मौलिक
अरुण प्रभा पंत, 18-08-2020
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