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शकुनाखर - वर कैं अर्घ दिणौं (धूलिअर्घ) गीत

कुमाऊँनी शकुनाखर- ब्या में वर कैं अर्घ दिणौं (धूलिअर्घ) गीत - Kumaoni Shakunakhar  Dhuli arghya geet in marriage

शकुनाखर-वर कैं अर्घ दिणौं (धूलिअर्घ) गीत

तारा पाठक (आमा कोचिंग सैंटर)

अरघ दे बाबुल ,अरघ दे अरघयइया।
कै दे धूली अरघ को रे बेवइया,
जैका सिर ही मकुट होलो,
कानन कुण्डल होला मनरइया।
जैका पीताम्बर पैरी होलो,
अंग बागा होलो मनरइया।
पाँवों खडा़ऊं होला मनरइया।

वी दियो धूली अरघ ,वी रे बेइया।
पैंल अरघ पाँवों देला मनरइया।
दुसरी अरघ जंघा देला मनरइया।
तिहरी अरघ नाभी देला मनरइया।
चौथी अरघ हस्त देला मनरइया।
पाँचवी अरघ कंठ देला मनरइया।
छटवी अरघ कंधा देला मनरइया।
सातवी अरघ शीश देला मनरइया।
वी दियो धूली अरघ वी रे बेवइया।

(चेली यां जब बर्यात ऐं त यो गीत ब्योलि और बाबुक संवाद रूप में छ ,ब्योली बाब पुछं,कै कैं अर्घ द्यूं ,को बेवै ल्हिजाल।  ब्योलि वरक पैरावक् वर्णन करिबेर कैं- जैक् ख्वार मकुट छ ,कानन कुंडल ,गाव हार ,कमर तगडी़,खुटन खडा़ऊं छन उ कैं अर्घ दियो ,वी बेवै बेर ल्हिजाल।  फिर कैं पैंल अर्घ खुटन में दियो,दुहर अर्घ जंघा में,ऐसिकै सात अर्घ दियो कैं। )

फोटो सोर्स गूगल

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