
-:'कौतिक' शब्दौक प्रयोग देखौ:-
लेखिका: अरुण प्रभा पंत
ओ इजा कस कौतिक कर राखौ त्वील, बिल्कुल आपण यो हुनरैल त्वील सबन कं उछाहैल भर दे भाऊ। आज तौ नंदादेविक म्याल भौय पुर पांच दिन गजबौक कौतिक हुनेरभौय, सबनाक लिजि देखणी,खरीदणी और खाणी चीजनैक इफरात। अहा कां ऐगेया हम दुसरै अगास जौ लागणौ जां देखौ मैस,मनखी ,ओबबा हो इतु मैंसन में बिन कौतिकै कौतिक भौय।
यो त्यार शहर में तो रात में लै मैंस उठियै रूनन। बेलि द्वि बाजी जांलै आंख नि लाग भ्यार चा तो औरि बात मैस लमालम जाण ऊणें में भ्या,रात में लै जगमग जगमग। आज तो तेर वां तेर पुर परिवार पुज लौ सबै नानतिन लै ऐ रैयीं पुर कौतिक है लौ त्यार घर में वाह जी रैली चैंनी सबै। भोल है कफकोटाक पाम पोथिंगौग कौतिक शुरू है जाल ,नानंछिना जै रैयू एक द्वि बेर।
आज यां देशन में (मैदान में) रावण जलूंनी अणकस्सै कौतिक हुं खूब भीड़ हैं 'दशहरा का मेला' कुनी।
म्योर तो नानतिन और धौ धिनाय वाल घर भौय 'रोजै कौतिक रोजै त्यार'।
कठिन लुप्तप्राय शब्द:-
१. धौ धिनाय - दूध दही घीवाला घर
२. अणकस्सै - अजघब सा ,अनैखा
३. देशन में - मैदानी इलाकों के लिए प्रयुक्त शब्द
४. नानछिना - बचपन में
५. लमालम - सरपट,जल्दी जल्दी
६. ओ बबा - अरे बाबा, विस्मय बोधक संबोधन।
मौलिक
अरुण प्रभा पंत
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