सुनिए सुर सम्राट गोपाल बाबू गोस्वामी जी के सुमधुर गीत
कुमाऊँ की लोकगाथा "राजुला मालूशाही"
प्रस्तुति एवं गायन: गोपाल बाबू गोस्वामी जी
मित्रो,
जैसा कि हम सब जानते हैं कि उत्तराखण्ड और कुमाऊँ में कई महान लोकगायक हुये हैं लेकिन गोपाल बाबू गोस्वामी एक ऐसे संगीत साधक हैं जिनकी पहचान ऊंचे पिच की वोईस क्वालिटी के कारण सबसे अलग है। गोस्वामी जी की इस सुरीली आवाज का ही जादू है कि कुमाऊँनी ही नही अन्य भाषा-भाषी भी एक बार उनका गीत सुनने के बाद उनके गीतों को बार-बार सुनकर खुद गुनगुनाने को विवश हो जाता है। गोपाल बाबू गोस्वामी जी ने विभिन्न प्रकार के गीत गाये हैं जैसे श्रंगार गीत, भक्ति गीत, पहाड़ के सौन्दर्य और पहाड़ के जन-जीवन से सम्बंधित गीत आदि। आज हम गोस्वामी जी द्वारा प्रस्तुत कुमाऊँ वीरगाथा "राजुला मालूशाही... " को सुनेंगे।
उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ अंचल में समय समय पर कई वीर-वीरांगनाओं ने जन्म लिया है जिनके सम्बन्ध में कई लोकगाथाएँ प्रचलित हैं। कुमाऊँ की प्रमुख लोकगाथाओं में कत्यूरी जिया राणि, राजुला मालूशाही तथा हरु सिंह हीत आदि शामिल हैं। यहां हम कुमाऊँ के कत्यूर परगने की लोकगाथा (प्रेम कथा) "राजुला मालूशाही" की गाथा के बारे में गोपाल बाबू गोस्वामी जी के स्वर में सुनेंगे।
प्रस्तुत कथा का संकलन, गीतांकन, संगीत और गायन सब गोपाल बाबू गोस्वामी जी द्वारा स्वयं किया गया है। उनके द्वारा लोकगाथा की कथावस्तु में भी सामयिक बदलाव किये गए हैं जिस कारण यह लोकगाथा आपको इसे परम्परिक रूप से बहुत भिन्न लग सकती है। वैसे भी लोकगाथाओं के अलग अलग रूप हमें अलग कवियों द्वारा व अलग-अलग क्षेत्रों में दिखाई देते हैं। गोस्वामी जी द्वारा प्रस्तुत राजुला मालूशाही की कथावस्तु चाहे आपको परम्परिक ना लगे पर इसके बावजूद भी आप एक लोकगाथा की संगीतमय प्रस्तुति को सुनकर अवश्य ही आनंदित होंगे ऐसा हमारा विश्वास है।
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