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शेर सिंह बिष्ट, शेरदा अनपढ़ - कुमाऊँनी कवि 16

शेरदा की कविता, "ढ्यांग जै रड़ै ल्याऊँ", Kumaoni Poem about bringing wife back from her home, Sherda ki Kavita Dhyang jai radai lyahun

शेरदा अनपढ़ का गीत "ढ्यांग जै रड़ै ल्याऊँ..."


शेरदा की रचनाओं कि सबसे बड़ी विशेषता उसका कुमाऊँ के पहाड़ी जनजीवन से जुड़ाव होना है साथ ही वह पारिवारिक सम्बन्धो और उनमें होने वाले सामान्य व्यवहार या दैनिक जीवन के पलों में होने वाले सुखद-दुखद अनुभवों को भी हास्य-व्यंग्य के माध्यम से प्रस्तुत कर देते हैं। शेरदा की सामाजिक एवं पति-पत्नी के पारिवारिक संबंधों के परिपेक्ष में एक छोटी से घटना को लेकर लोकप्रिय कुमाउँनी व्यंग्य रचना है, "ढ्यांग जै रड़ै ल्याऊँ":-

ह्यूनै कि छी कूंछा रात, और सौरासै कि छी बात।
अन्यारपट्ट कै मुख लै, पड़नै-पड़नै पुज्यूं सौरास
जाँ लै कूंछा सैणी हालनै, भैंस कैं घास 
अब हो कूंछ ऊ छू कै बेर मैल नी जांणि
और मी छूं कै बेर वील नी पछ्याणि
वील सोचो, हे भगवान् यौ अन्यारपट्ट में 
को हैरो हूनॉल ठाड़
और मैं कैं लै हो महाराज वीकैं देख बेर 
लागण फैटो मणि मणि जाड़ 
वील कौ तू को छै, मील कौ तू को छै 
वील कौ मैं सैणी छूं, मील कौ पै मैं मैंस छूं

एतुक में कूंछा वील मणि जाण ले, मील लै वीकैं पछ्याँण ले 
अब ऊ जरा शरमाण फैटि, मी लै ज़रा रिषाण फैटूं
ऊ भाजि बेर चुलयाँण फैटि, में रणकर भीतेर भैटूं
भीतेर चाँछि जाँलै कूंछा, सास पकुनै चाहा,
और सौर ज्यू कैं, पड़ रौ दहा
मैंहेति कूँण भैटि, जवैं किलै तुम कब आहा
मील कौ अल्लै ऊँन्यू 
हैं पै ज्यूँ जाग पैलाग है, आशव-कुशव है
सासुल कौ जवैं पै, घरै कि कुशल बात सब भलि छू
मील कौ नौ म्हैंण बटि मैत तुमरि चेलि छू
किलै क्ये कुशल बात भलि छू

सासुल कौ, जवैं ज्ये हैगो, हैगो पलि फूको
अब तै कैं पूजै द्युल, हाथ खुट ध्वे लियो 
र्वट पाक गयीं, र्वट खै ल्यहुल
एतुक में सैणी बुल्हाणि, कूँण फैटि तै दगै मी नी जांण 
मील कौ पै मी र्वट नी खांण
अब कूंछा पाई सासुल समझा और सौरेल लै धमका
पै हो सैणी ऊँ ण हुं तय्यार है ग्ये 
ओ बाज्यू मेरी लै बहार है ग्ये

सासुल कौ जवैं अब त खै लियो र्वट
मील कौ हिटो पै झटपट 
तीन दिन बै मील खाई नि भै, भूखैल म्यार बिडॉव हैई भै
आलू गडेरिक साग पकैयि भै खूब लटपट
मणि मणि मीठ हैई भै, मणि मणि खट्टखट
और बणैई भै खूब चटपट
आलूक खपिर बणैई भै एतुक म्वट 
ओ ईजा दगड़ हालि भै माँसा क बेड़ू र्वट
र्वाट जे क्ये भै सुदै घटा कस पाट

म्यार भूखैल म्यार बिडॉव हैई भै, मील र्वाट नेईं सटासट
अब सागै कि भदेयी कर ग्यूं चट्ट
र्वटाँकि छापरि कर ग्यूं पट्ट 
अब म्यर सूर्यावौक टूट गो नाड़, ओ ईजा कसिक उठूं ठाड़
अब मैं कैं मणि मणि हँसि ऊनै मणि मणि डाड
मणि मणि गुस्स चढ़ना, मणि मणि खार
सास कुनै जवाईं किलै जाना काना भ्यार 
अब कसिक उठूं ठाड़

एक तरफ बै कूंछा सासुल थामो एक तरफ बै सौरैल
और सैणिल सुर्याव बांदि, भैंसाक ज्यौड़ैल
अब सासुल कौ चेलि लगा बिछौण 
और मील क्ये सुणौ चेलि अब लगा सिसौंण 
द्वि खुट थामि म्यार, महाराज रघोड़ ली गईं 
कैक ढकींण कैक  बिछौण, सुदै गदू जस घुरयै दे 
अब रात कैं म्यर पेट रिटण फैटो, 
घट खुल बेर भ्यार ऐ ग्ये भटाभट

अब क्ये बतूं अणकसि है ग्ये, जाणि कौ चाँदमारी लाग ग्ये 
अब आदू रात कै उठूं ठाड़, खेड़ मील खताड़ 
भ्यार हुं लागूं बाट, भ्यार हैई है अन्यारपट्ट
खुट धरूं कुनौछी सीढ़ी में, खुट रड़ी पड़ो छिन में
ख्वार पड़ौ हो भैंसाक किल में, ढ्यांग पड़ा हो 
कैकि सैणि कैक सौरास, आपुण कौ मुख ल्ही बेर घर कैं आऊँ 
सैणि जै लिंण है गयूं, यौ बौं ढ्यांग रड़ै ल्याऊँ



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