
-:बुरूंशी का फूलों को कुमकुम मारो:-
(रचनाकार: चारु चंद्र पांडे)
बुरूंशी का फूलों को कुमकुम मारो,
डाना काना छाजी रै बसंती नारंगी।
पारबती ज्यू की झिलमिल चादर,
यूं की परिन लै रंगै सतरंगी।
लाल भई छै हिमाचल रेखा,
शिब ज्यू की शोभा पिंगली दनकारी,
सूरजै की बेटियों ने स्वर्ग बै रङ घोली।
सारी ही गागर ख्वारन खित डारी।
बुंरूशी का फूलों...
अबीर गुलालै कि धूल उड़ी गै,
लाल भई छन बादल सारा
घर-घर हो हो हो लक रे कुनी
घरवाइ जी रौ बरस हजारा।
खितकनी झमकनी ममकनी भौजो
मालिक दैण होयो भरिये भकारा
पूत कुटुंब नानतिन प्वाथ जी रौ
घर-बण सबकन होयो जै जै कारा।
बुरूंशी का फूलों को कुमकुम मारो
डाना काना छाजि गे बसंती नारंगी।

-चारु चंद्र पांडे
‘पहरू’ कुमाउनी मासिक पत्रिका फ़रवरी २०२० अंक में प्रकाशित
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