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गौं बै शहर -यांकौ अगासै दुसौर छु (भाग-१०)

कुमाऊँनी नाटक, गौं बै शहर - यांकौ अगासै दुसौर छु, Kumaoni Play written by Arun Prabha Pant, Kumaoni language Play by Arun Prabha Pant, Play in Kumaoni

-:गौं बै शहर -यांकौ अगासै दुसौर छु:-

कुमाऊँनी नाटक
(लेखिका: अरुण प्रभा पंत)

->गतांक भाग-०९ बै अघिल->>

अंक २४-

नरैण - तू तो डबल बचूणांक चक्कर में रुंछै हमेशा, आज तौ नय नय टुकुड़ टाकुड़ जा के के शिणनै छै?
पद्मा - "तुमार लखनौ जैयी में, मैं तौं बगलवालनाक दगै एक जाग पैंठ लाग रैछी वां बै तौ कटपीस लैयू वीकै आपण बिलौज और फरौक शिण नैयूं।  रीता आपण सलवार और कुर्त देखा दैं बाबू कं।"
तब तक सुनीता आपण फरौक लिऐ-

सुनीता - "बाबू देखौ- यो लाल फरौक म्योर छु यमैं मैं सुनहरी बटन लगूंल।"
तब तक रीता फटाफट आपण सलवार कुर्त पैर बेर ठाड़ हैगे-
रीता - बाबू यो देखौ, हमरि इज कतु कारंद है गे, तुमूल भल करौ इजकं सिलाइक स्कूल भेज बेर।
नरैण - हाय और नीता लिजि?
पद्मा - यो शिण्णयुं तैक, तौ आपण दगड़ुऔक फरौक लै फिर उकं देख बेर मैं बणूणयू तबै आयतक पुर नि है सक।
रीता - बाबू इजैल आपण लिजी पेटीकोट, तुमार लिजि पैजामा कुर्त लै शिण राखौ।  मैल तुमौर कुर्त पैजामा नय प्रैसैल प्रैस कर बेर तुमरि इलमारि में धर हैलौ।
नीता - बाबू इज कं काज बणूण लै एगो, बेलि रीता दी कं सिखूणैछी।
नरैण - भागी त्वील तौ मकं खुश करदे, चलौ आज भ्यार जै बेर चाट खानुं, भौत दिन है गेयीं।
पद्मा - तुमन कं तो भ्यार खाणैकि नक आदत पड़ गे।
सुनीता - बाबू मैं रसगुल्ल खूंल हां, मकं झौई लाग जैं।
नरैण - देखौ सब ब्याल पांच बाजि तक फिट है जैया, पैदल जूंल पैदल वापस, सुनीता क्वे तुकं काखि में नि धरौल हां, हिट बेर जांण छु।
सुनीता - बाबू मकं आब भौत ताकत छु, मैं आब रात हुं द्वि र्वाट खानु।
पद्मा - भौत्तै बकबक करें तौ सुनीता, तकं जरा डांठि करौ, तुमुल भौत मुख लगै राखी तौ आपण चिहैड़ि।
नरैण - अरे बुढ़ियां काव तौई तो काम आलि, रीता नीता तो तब तक आपण घराक है जाल यां कैं नौकरी करणौं न्हाल।
पद्मा - सच्ची, कबै कबै मकं पेटक्यूड़ लागनी, हमार बुढ़ाप में को होल हमार दगै!
यो शुणते ही रीता, नीता, सुनीताल आपण इज बाबन कं पट्ट पकड़बेर अंग्वाल जै हाल दे, हम कभै आपण इज बाबू कं नि छाड़ू।
पद्माक आंखन बै टप्प आंस।

नरैण - कै आंस भर ल्यूणै छै, तबै तब देखीनी रौलि।  नानतिन भलीकै भया तो सब मैंबाबन कं सांति रैं और दिन काटि जानी,पिल्सन वालि नौकरी छु म्यार, भली कै रूंल और खूंल।    अरे भलि याद ऐ, शुण एक जाग यां जमीन बेचांणैबल देखण हुं हिटली!
पद्मा - पर डबल कां बै आल?
नरैण - हमर यां एक सोसाइटी बै डबल मिल जानी और हर म्हैण किश्त कटूनू हम सब जाणि जकं जब जरुरत भै उ उसमें बै डबल ल्हि सकूं पर फिर हर म्हैण दुगुणि किश्त कटें ऐल सौ रुपैं कटनीपछा द्विसौ कटैलि, मतलब त़ंखा द्वि सौ कम मिलैलि।  खर्च चलै ल्हेली?
पद्मा - मै तो सब चलै ल्ह्यूंल तुमै हाथ खोल बेर रुंछा।  रिटैर हैबेर आपण घर लै तो रै सकनूं।  मकं तो उ ठंड हौ ठंड पाणि डान कान याद उनी गौ भरि ऊं,निस्वास लागुं।
नरैण - देख भागी ऐल जमीन खरिद ल्हिनु, पछा देखीनी रौलि, जमीनाक  दाम बढ़लै सही।
पद्मा - तब तो भोल तुमरि छुट्टी छु भोल जै उनूं, भोल हुं तुम सबन कं चांट खवै लैया।
तब तक सुनीता नीता तैयार है बेर ऐग्याय, बाबू हम तंग्यार छां।

नरैण - देख भागी आब जाणैं पड़ौल
पद्मा - तुमूल सबन कं मुख लगै हालौ, आब भुगतौ।
नरैण - होय किलैनै, कमूंण कैक लिजि रैयूं, नंतर कैं जोगि ह्युन्यू, के जर्वत छी इतु दौड़ादौड़ करणैकि।

क्रमशः अघिल भाग-११->>


मौलिक
अरुण प्रभा पंत 

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