कुमाऊँनी शेर
लेखक: आनंद मेहरा
-1-
खुट उदेगे फैलूंण चैनी ज्यदु चद्दर छू।
नंगेड़े खुटो को ठण्ड बहुत लागू।
-2-
मैस पाख मी चढ़नी तो आपुण धुरी मी नि चड़न चे।
चड़न तो आसान हूँ हुलेरण फगे भोते दिक्कत है जे।
-3-
पहाड़ जय्दू भाल देखनि भतेर उदुके दर्द छिपे रूनी।
आपुण पीड़ दर्द ऊ फिर गाड़ गधेरो कुणी बतनुहि।।
-4
जो पहाड़ ज्यदु ठुल हूँ विक गहराई ले उदेगु हूँ।
आसमां हू बात करछो पाताल तक टिकी हूँ।।
-5-
नि छेड़ ला -सीध साध हुनि पहाड़ी शेणी मैस।
छेड़ी गया फिर भैंस की तीस वाई उनेर रीस।
जय देवभूमि, जय उत्तराखंड।
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