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ऐड़ी देव मंदिर, ब्यानधुरा धाम

कुमाऊँ के लोकदेवता, ऐड़ी देवता ब्यानधुरा धाम, चम्पावत - Kumauni Deity Aidi Devta, Aidi Dev Byandhura Dhaam, kumaoni lokdevta

ऐड़ी देव मंदिर, ब्यानधुरा धाम

(लेखक: अमित नाथ)

उत्तराखंड की देवभूमि में स्थापित लोक देवताओं के मंदिरों के बाबत जानने सुनने के बाद आश्चर्य ही नहीं होता बल्कि आस्था से सिर भी झुक जाते हैं।  श्री ब्यानधूरा बाबा ऐड़ी देवता मंदिर भी इन्हीं मंदिरों में एक है।  टनकपुर मुख्य सड़क से 35 किमी दूर इस मंदिर परिसर में अकूत लोहे के धनुष-वाण व अन्य अस्त्र-शस्त्र के साथ बड़े बड़े शंख व घंटियां चढ़ाये गये हैं।  आज भी मंदिर जाने वाले लोग धनुष-वाण व घंटियां चढ़ाते हैं।  ऐड़ी देवता के इस मंदिर को देवताओं की विधान सभा भी माना जाता है, जबकि ऐड़ी देव को महाभारत के अर्जुन के स्वरूप भी माना जाता है।  ब्यानधूरा में यह मंदिर कितना पुराना है इसकी पुष्टि नहीं हो पायी, लेकिन मंदिर परिसर में धनुष-वाणों के अकूत ढेर से अनुमान लगाया जा सकता है कि ऐड़ी देवता का यह पौराणिक मंदिर हजारों वर्ष पुराना  हो सकता है। बताया जाता है कि ऐड़ी नाम के राजा ने ब्यानधूरा में तपस्या की और कालान्तर में देवत्व प्राप्त किया और यह राजा, लोक देवताओं के  के रूप में पूजे जाने लगे।

उत्तराखण्ड जनकल्याण संगठन का आज यह प्रयास है कि आप सभी उत्तराखंडी लोकप्रेमियों को आज एक ऐसे स्थान का दर्शन कराएं जहाँ न केवल भौगौलिक दृष्टि से हजारों वर्ष पूर्व का परिदृश्य देखने को मिलता है बल्कि इतिहास के वे खण्डहर आज भी देवभूमी में देववास को प्रमाणित करते हैं।  जहाँ आज भी आधुनिक विज्ञान को लोगों की यह मान्यता चुनौती देती है कि देव अवतरित होते हैं सुनने में बड़ा विचित्र लगता है लेकिन जो लोग इस अनुभव को ले चुके हैं जरूर अचंभित नहीं होंगे।  उत्तराखंड की देवभूमि में स्थापित लोक देवताओं के मंदिरों के बाबत जानने सुनने के बाद आश्चर्य ही नहीं होता बल्कि आस्था से सिर भी झुक जाते हैं। श्री ब्यानधूरा बाबा ऐड़ी देवता मंदिर भी इन्हीं मंदिरों में एक है।

कहा जाता है कि ऐड़ी देव धनुष युद्ध विद्या में निपुण थे जिस कारण उनका एक रुप महाभारत के अर्जुन के अवतार के रूप में माना जाने लगा।  यहां ऐड़ी देवता को लोहे के धनुष-वाण तो चढ़ाये जाते हैं वहीं अन्य देवताओं को अस्त्र-शस्त्र चढ़ाने की परम्परा भी है।  बताया जाता है कि यहां के अस्त्रों के ढेर में ऐड़ी देवता का सौ मन भारी धनुष भी है।  मंदिर के ठीक आगे गुरु गोरख नाथ की अखंड धुनी भी है जो लगातार जलती रहती है।  मंदिर प्रांगण में एक अन्य धुनी भी है, जिसमें जागर आयोजित होती है।  यहां गोदान करने की परम्परा में कई लोग मंदिर को गाय का दान भी करते हैं।  मकर संक्रांति, चैत्र नवरात्र तथा माघी पूर्णमासी को यहां भव्य मेला लगता है।  कुछ लोग के अनुसार इस मंदिर को शिव के 108 ज्योर्तिलिंगों में से एक की मान्यता प्राप्त है।

लोकमान्यताओं के आधार पर उत्तराखंड की पुण्य भूमि में देवी देवताओं का समय समय पर अवतार हुआ है।  कुमांऊँ अंचल की लोक परम्परा में उत्तराखंड में लगभग सभी गांवों में ऐड़ी देवों का वास माना जाता है।  असल में ब्यान्धुरा ही वह जगह का नाम है जहाँ ऐड़ी देवता का वास है और ऐड़ी देवता का मुख्य मंदिर ब्यान्धुरा ऐड़ी देवता मंदिर है।  अपार आस्था से प्रभावित होकर लोग ऐड़ी देवता को ब्यान्धुरा बाबा के नाम से जानने लगे और पीढ़ी दर पीढ़ी हम लोग ब्यान्धुरा के नाम से पहचानने लगे। असलियत में ब्यान्धुरा यहाँ के उस स्थान का नाम है जहाँ धनुर्धारी एड़ी देवता ने वास लिया था।

ऐड़ी देव की बहुत सी कथाएं कुमाऊं में प्रचलित हैं परंतु उनमें से यह कथा जो फागों में गाई जाती है सर्वमान्य है।

लोककथाओं के आधार पर कहा जाता है कि ऐड़ी बाईस भाई डोटी वर्तमान में नेपाल देश के यशस्वी राजा थे। जिनकी शासन प्रणाली थी की राज्य में कमजोर और गरीब भूखा न रहे तथा अमीर और मजबूत अकड़ में न रहे।  जिस कारण उनके राज्य में साधारण प्रजा सुखी थी और नौलाख डोटी में सभी आनंदित थे।   राजा का बहुत बड़ा महल था, जिसके सैकड़ों स्वर्ण दरवाजे थे तथा हजारों घोड़े-हाथियों सहित सैकड़ों गौशालाये महल के अंदर थी।  कहानी बहुत लंबी है थोड़ा संक्षिप्त में लिखने का प्रयास है जो संभव हो पाया है ब्यान्धुरा बाबा के पारंपरिक दास कथा वाचक श्री जगत राम जी से जब 2016 में स्वयं उनके घर जाकर मुझे सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

एड़ी देवता फाग भाग-१

लोकगाथा के अनुसार देश देश तक उनके शौर्य को उनके अपने ही सहन नहीं कर पा रहे थे और एड़ियों की संपन्नता से उंनके अपने ही जलने लगे।  उनके कुल के पुरोहित केशिया पंडित एक षड्यंत्र कर पूरे राजमहल वासियों को विषपान करवा देता है।  जिससे पूरा राजमहल कई सप्ताहों तक बेहोश हो जाता है, तब सबसे बड़े ऐड़ी भाई में देवात्मा प्रवेश करती है और वह किसी वैद्य के सपने में आकर ऊन्हें वहां बुलाते हैं। उसके बाद वहां पहुंचकर सभी वहां से सन्यासी रूप मे कुमाऊँ में प्रवेश करते हैं यह बात कथनों अनुसार मुग़ल काल के समकालीन की लगती है।   जब मुग़ल पुरे भारतवर्ष में फैले हुए थे मगर ऐड़ी देव की कृपा से देवभूमि में मुगलों का प्रवेश नहीं हो पाया, मुग़लों के साथ युद्ध का वर्ण भी लोककथा में आता है।

एड़ी देवता फाग भाग-२

यूँ तो ऐड़ी देव संपूर्ण उत्तराखंड के पूज्य होने चाहिए जिनकी छत्र छाया में उत्तराखंड मुगलों के आक्रमण से बच पाया।  मगर जमीनी हकीकत यह है कि मंदिर में कुछ भी विकास नहीं हुआ है।  आज भी देव शक्ति के रूप में ब्यान्धुरा ऐड़ी साक्षात शक्ति है यहाँ पर ऐसे कई उदाहरण देखने को मिल जाएंगे जो बाँझ जोड़े उम्र के अंतिम पड़ाव तक औलाद का ख्वाब देखते रहे और अंत में ऐड़ी देव की आस्था के चलते उन्हें यह सुख मिला है।

पढ़िए स्वर्गीय प्रेम बल्लभ पंगरिया जी द्वारा रचित श्री ब्यानधूरा ऐड़ी महात्म्य

अमित नाथ
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8 टिप्पणियाँ

  1. प्रेम से बोलो ऐड़ी फटक शिला की जय हो।।सराहनीय कदम।।

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    1. जय जयकार हो ऐड़ी ब्यानधुरा फटकशिला बाबा

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  2. जय हो ऐडी ब्यानधुरा बाबा 🙏🙏🙏🙏🌹🌹💖जय हो ब्यानधुरी ब्यानपखान, गहतौडा चौघान सबों हैनि दैण है जाए 🌹🌹

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  3. जय हो ब्यानधुरा बाबा की💐💐🙏

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