
-:हमरि ईजा:-
रचनाकार: हिमानी
ईज न जाणि
कै माटा कि बणीं भईं
ईज हमूंल न कभै
बैठ्यां देखि
न कभै
सित्यां देखि
नान-तिन, बूड.-बोलि
सबूंक खव्या-पिव्या
चूलि-भांडि. करि बेर
रात दस बज्या बाद
ईज सितनेर भई और
अन्यारपट्ट में
उठ जानेर भई
डर क् त वि नाम नि
जाड.नेर भई
पत्त न को माटा कि ईज
बणीं भई
यो बात त् केवल
राम ज्यू जांणनी
ईज रात - दिन
कतुआ क् समान
नाचनेर भई
मुण में नौल बटि
बीस लीटर क्
गागर भरि ल्यूनेर भई
गोठ में, भितर में,
ख्यतन में
रात-दिन वुई
नाचनेर भई
उच्च-उच्च डानूं बटि
घा काटनेर भई
उच्च-उच्च बोट न बटि
लकड़ ले वुई काटनेर भई
गोठ क गोरू-बाछ सबै
ईज क् लिजी
मतर-बाब, भ्या-बैणी जस भईं
पत्त न ईज
कै माट क् बणीं भई
एेपण बणूंन, ढोलकी बजूंण,
भजण,बनण गान, नांचण सबै बातन में
ईज छुपि हुई कलाकार भई
ईज क् कभै पसिण नि
बहनेर भई
वीक कपाव क् इंगूर
तभै त् कभै नि
बगनेर भई
रूप की ईज
खाण जसि भई
परिश्रम की वु
देवि भई
ईज क् वील त्
घर, घर भईं
गौं, गौं भईं
पहाड़, पहाड़ भईं
ईज कि वीलि
हमर पहाड़ आजि लि
देखण ल्याक भईं.
--हिमानी ©, 01-08-2020
-सर्वाधिकार सुरक्षित
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