
शेरदा अनपढ़ की कविता "देबी-थान"
शेरदा की रचनाओं कि सबसे बड़ी विशेषता उसका कुमाऊँ के पहाड़ी जनजीवन से जुड़ाव होना है साथ ही वह सामाजिक व्यवहार या दैनिक जीवन के पलों में होने वाले सुखद-दुखद अनुभवों को भी हास्य-व्यंग्य के माध्यम से प्रस्तुत कर देते हैं। शेरदा की कुमाऊँ के सामाजिक जनजीवन और धार्मिक आस्थाओं और अंधविश्वासों के परिपेक्ष में लोकप्रिय कुमाउँनी कविता है, "देबी-थान":-
नै आँख उज्याव
नै आङ्ग बिकाव
नै हुलार हुं तड़ि
नै उकाऊ हुं तराण
नै भाँटि
नै जाँठि
नै मुठि
नै गोठि
मन में रटन दिगो!
देबिक दर्शन!
के-के माननी
के नि जाणनी
पैट-अपैट-कुपैट
पौ-परबी
त्यार-ब्यार
बार-कुबार
सङ्गराँति
मसाँति
द्विती
पुन्यूँ
अमूस
पड़्याव
कुनव
पातौड़ म्यार लिजी माट्
लाट काला लागी भयूँ बाट!
बुबु के-के कूंछी म्यार
के छू म्यार दगाड़
नै तुतुरि
नै जातुरि
नै ढोल नङ्गार
नै नौ नाइ
नै भनार
नै दुध सुन्याणी
नै गंगजौव
नै ध्यूड़ हर्याव
नै ज्वाड़ बिन्दुलि
नै ज्वाड़ चर्यौ
नै ज्वाड़ फतुई
नै ज्वाड़ पिछोड़
नै ज्वाड़ निशाण
नै जौंया बकार
नै पन्चम्याव
नै मिसिरि-ग्वाव
क्येल करूँ देवी स्याव?
सोचन-सोचनै मैं
रुजि गऊँ,
आँसुलै मैं
भिजि गऊँ,
घुन-मुनई
टेकन टेकनै
देवी त्यार दरबार में
पुजि गऊँ!
खुलि गईं देवी द्वार
खुलि गईं धरमा किवाड़
लागण फै गे नौमत
बाजण फै गईं सांक-घँट
छाजण फै गईं लाख-ब्वाक
चमकण फै गईं खुकुरि
नाचण फै गईं बड़याठ
बटी गईं चड़हूँ बकार
पाणि परिखि मरुहूँ बकार
जसै बकाराँल बर्र करी
म्यार मनेल झर्र करी
धूप-बाति फूल-पाति
जे से छी भेट परयोव
म्यार मुठिन
देवि कैं जै चडूल कूँछी भितेर
खुजि पड़ी भ्यारै
बकारौं जै खुटिन बन्द मुठि
जांणि कसिक खुजि गे
काँ जै भेट पुजूँल कुनैछी
को जै भेट पुजि गे
के जे म्यर करार छी
के जे म्यर कौल
यौ के है हुनौल?
गच्छयूने रयूँ मन में माव
यौ अन्यार भौ छौ उज्याव
गाणि-माणि लगूने रयूँ
फर्र फरकि खुट यारो!
परहूँ ऊने रयूँ।
सुनिए कविता "देबी-थान" शेरदा के स्वर में
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