
-:मै-चेली और बौल बुति:-
प्रस्तुति - अरुण प्रभा पंतजिबुलिक जब ब्या भौ तो सबै कूंण लागिं कि "चलौ एक बोज बिसै हालौ माधवज्यू तुमूल छोर मुया चेलिक उद्धार कर दे।" माधवज्यूक हैजै पड़ि, उनूल आपण जमीन छुणूणाक लिजि किसनूक 'बौया भांण्ज' दगै आपण छोरमुआ औरि बान भतिजिक ब्या कर बेर पुण्य लै कमै ल्हे और किसनूक चंगुल बै आपण जमीन लै छुड़ुवै ल्हे,"एक तीरैल द्वि निशाण"
अब शुणौ जिबुलिक सौरास और दुल्हौक काव-बेकाव।
एक जाग बैठै दि कुंछा ब्या दुल्हैणि जिबुलि कं, न बाट में पुछ पाणि चहा कं, न घर ए बेर। बिना दुल्हों वील घरैकि देई पुजि, द्याप्तन थैं बेठि, जैल जस कोय कर, शुण पर बगल में दुल्हों नदारत। खैर थ्वाड़ देर में एक बुढ़ि शैणिल वीक सब जर-जेवर उतार ल्हि उ दिनै ब्याव हुं। बस सिर्फ कपावभरि सिंदूर बिंदी, चर्यो और हाथों कांचाक चुड़ और कान में वीक मैताक कनफूल और हाथन टिकैकि एक मुनैड़ि भै।
उभत्तै रिश्या जै बेर चहा और रसदार साग और लगड़ पकाय वील जब सबनैलि कौय "आज तै नय दुल्हैणि पकालि"
पर ऐल राताक नौ बाजिग्याय पर कैलै उथैं खा नि कौय। डरन-डरनै सबनाक खैयी माथ जिबुलिल एकौर मुख कर बेर द्वियै पुरि (लगड़) बचि भाय, कढ़ै चाटबेर खै और पाणि पि बेर भनपान लैम्फू उज्याव में करण लागि।
कैलै उथैं "यां पड़ि जा पै"निकौय। एसिकै जाड़ में कुड़कुड़ी बेर लधरि गे पत्त नै कभत नीन लागि और जब रत्तै कैलै ढ्योस मार बेर उठा तब अलबलानै उठी जिबुलि जो ब्या दुल्हैणि छि। दुल्हौ को छु जाणनेरे नि भै, मुखैलि कूण में बज्यूण शरम लागनेर भै। खैर उठि पाणि सार, नै ध्वे बेर चहा बणाय, सब ऐग्याय चहा पिण हुं। एक सयाणि जै दिखीणी शैणि थैं पुछ के करण छु?
तब वील पछ्याणौ आपण दुल्हौ कं कि जो चहा लै भलीकै नि पि सकौणौछि उकं एक फुली बालनौक मैंस कुणौय- "उ देख तेरि घरवाय, आब सब काम तौयी करैलि तेर हां" और उ पगौल बोया जौ दिखीणी गौरफन्नार लौंड "होय होय" कुणौय तालै।
जिबुलिक हाथाक खुटाक ताव नि रैग्याय- "ओ इजा कैसी रूंल तौ पागल दगाड़ मैं, काकैल को जन्मों बदल ल्हेन्हौल!"............
क्रमशः अघिल भाग-०२मौलिक
अरुण प्रभा पंत

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