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डाई बोटि - कुमाऊँनी कविता

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डाई बोटि

रचनाकार: चम्पा पान्डे

पालि पोसी बै ठुल करिया,
यूं छीं हमर जान रे,
झन काटीया डाई बोटि कैं,
बचु इनुल पराण रे।

डाई बोटि जब कम है जाला,
हाव पाणी काबटी खाला,
सांस् नी आलि जालि हमरी,
फड़फड़ाट हम पाडुला,
फड़फड़ाट हम पाडुला, ल्है जाला पराण रे
झन काटीया..............।

डाई बोटु कौ जड़ बटीक,
ठन्डो पाणी सीर फुटनी,
गाड़ गध्यारा आनी जब,
धरती कैं जकड़ी रनी,
धरती कैं जकड़ी रनी, धरनी सबूक ध्यान रे,
झन काटीया .........।

ठुल ठुला बोटुलै सब,
भिड़ पहाड़ा थामि रनी,
काटि दिला जब डाई बोटि कैं,
यूं पहाड़ा खिसक जानि,
यूं पहाड़ा खिसक जानि, लिलिनी कतु जान रे,
झन काटीया.............।

फल फूल व दवाई पाण,
डाई बोटी हमूकैं दिनी,
कभतै पॉन कभतै स्यौ,
गर्मी लै हमु कैं बचानी,
गर्मी लै हमु कैं बचानी, धर जानी पराण रे,
झन काटीया..............।

जस्सै पराण् हमू में हनी,
उस्सै पराण इनु में हनी,
जौस हमार पराण जानी,
उसै यूं निर्जीव है जानी,
उसै यूं निर्जीव है जानी, तब लै आनी काम रे,
झन काटीया डाई.............।
धन्यवाद
*चम्पा *पान्डे*, 26-04-2018

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