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बखत कि चक्की - कुमाऊँनी कविता

बखत कि चक्की - कुमाऊँनी कविता, kumaoni poem about time also teaches, kumaoni bhasha ki kavita

बखत कि चक्की

रचनाकार: रमेश हितैषी

जो ईस्कूल कॉलेज धर्म कर्म बै नि सीख सिकु।
       उ बखतक ईस्कूल में भलिक सीखि ह्या मलि।

अपना पर्या की सीख बखत अघिन मटा डेल छ।
     सूड़ बथौ  बै इकलै ठणिणु सीखि ह्या मलि।

ढूंगु बै टिकण मट बै जेड़िण डांसि बै चमकण।  
     कुठमुण बै फूटण और कमल बै खिलण सीखि ह्या मलि।

पिरुवा बून बै जगण घास बै जामण। रौ है शांत रहण।
     अर गध्यार है बुल्हाण सीखि ह्या मलि।

सिध है सतीर अछ्याण है ज़िम्मेदारी।
     नस्यूड़ है घिसिणु बल्ड है खैंचण सीखि ह्या मलि।

धान हैबै खुसबू सिमार बै सीजव भराण है मजबूत।
     अर माल बै औरों कें जोड़न सीखि ह्या मलि।

जून बै दूर रहण गैणियों बै सबु बीच में रहण।
ध्रुव तारा बै एकाग्र अर समोदर  बै गंभीर रहण सीखि ह्या मलि।

घाम है तपण व्याव है ढलण किरमोई बै चढ़ण।  
     मूर्ति है चुप रहण नौहौ है तिसाव रहण सीखि ह्या मलि।

फलों डौ बै झुकण लगुल है उठण ठंगर बै सहार दिण।
      मौहनौं बै एकजुट रहण फूल बै डंक खाण सीखि ह्या मलि।

दाथुलळ अपण तरफ कटाण छूरी अर गधु है बचण।
     घड़ी है हिटण अर बखत कि चक्की पिसिणु सीखि ह्या मलि। 

सर्वाधिकार@सुरक्षित, May 14, 2021
श्री रमेश हितैषी

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