
कुमाउनी भाषा - मानक रूप
डॉ. हयात सिंह रावतकुमाउनी भाषा के इस्कूलों में एक विषय रूप में पढून लिजी तथा सरकार द्वारा एक भाषा रूप में कुमाउनी क मान्यता दिलीने लिजी गद्य लेखन में कुमाउनी भाषाक एक मानक रूप हुण भौत जरूरी छ। सामान्य अर्थ में मानकीकरण मतलब लेखन में एकरूपता हुंछ।
मानकीकरण लिजी हमूकै तीन बातों पर खास ध्यान दिण जरूरी हुंछ
1. भाषा सरल, सरस और स्पष्ट हुण चैछ। उमें मिठास हुण च। पढ़न में, लेखन में कठिनाई. हुण चैन।
2. मुख सुख सिद्धांत लागू हुण चैं अर्थात उच्चारण में, बुलाण में कठिनाई या अटपटापन नैं हुण चैन।
3. वर्तमान तकनीकी युग में कंप्यूटर/मोबाइल में लेखन में आसानी हो। आङव कम चलून पड़न चैनी।
इनी खास बातों के ध्यान में धरि बेर हम सब कुमाउनी में लेखनेर लोगन क कुमाउनी भाषाक मानक रूप सामणि लोण छ। दरसल हम जस लेखनयां, हम उस लेखनकि आदत पडि रै। पर मानक रूप में लेखनै लिजी हम सब लोगों के अभ्यास करणकि जरवत पड़लि।

हमूक कुमाउनी भाषा के सरल और सितिल बणून छ। जल्लै जरूरी हुंछ, अर्थ भेद हुणकि संभावना हैं उती लै मात्रा लगाई जाण चैनी, जति ले जरूरी नै लागन, उति ले गैर जरूरी मात्रा लगूण है बचण चैं। जसिक - नौक, भौल, नौश, यौस,कौस, जीस, तौस, इनौर, उनौर, जनौर, म्यौर, त्यौर, देशौक, किताबौक, घरौक आदि शब्दों के नक, भल, नश, यस, कस, जस, तस, इनर, उनर, जनर, म्यर, त्यर, देशक, किताबक, घरक लेखी जाण छ। यसीकै-दिनकि, कूर्णकि, आमैकि, सालैकि, देशैकि, बिदेशैकि, किताबैकि, उत्तराखंडैकि, मनकि, खाणैकि, पिणैकि आदि शब्दों के दिनकि, कूणकि, आमकि, सालकि, देशकि, विदेशकि, किताबकि, उत्तराखंडकि, मनकि, खाणकि, पिणकि लेखी जाण च । यास ऐ और औ मात्रा वाल सैकड़ों शब्द छन, इनूमें हमुर्क गैर जरूरी माना लगूणकि जरवत न्हां।
कुमाउनी रचनाकारों के अपिल के यसीकै लेखणक अभ्यास करण चैं। हमर निवेदन छु आपणि रचना मानक रूप में लेखि बेरै 'पहरू' हु भेजिया। लेखवारों हैं हमर य लै निवेदन छु कि आपणि रचना में जादा है जादा कुमाउनी शब्दोंक इस्तमाल करिया और आपण कुमाउनी शब्द भंडार कं बढ़ाया।
कुमाउनी बुलाण में गर्व हुंण चैं।कुमाउनी मासिक: पहरू, जुलाई २०२१
फेसबुक ग्रुप, कुमाउंनी मासिक "पहरु" से साभार
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