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शेर सिंह बिष्ट, शेरदा अनपढ़ - कुमाऊँनी कवि 13

कुमाऊँनी भाषा की व्यंग्य रचना "मुर्दाक बयान", शेरदा की कविता,Kumaoni Kavita Sherda Anpadh, Sherda ki kavita

मुर्दाक् बयान

रचनाकार: शेरदा अनपढ़

शेरदा की रचनाओं कि सबसे बड़ी विशेषता उसका पहाड़ी जनजीवन से जुड़ाव तो रहा ही है साथ ही वह सामजिक समस्याओं और विषताओं को भी हास्य-व्यंग्य के रूप में प्रस्तुत कर देते हैं।  लेकिन शेरदा के व्यंग्य में हमेशा हास्य ही नहीं होता कभी-कभी उनका व्यंग्य जीवन के यथार्थ की गंभीरता को भी बहुत गहराई छू जाता है। शेरदा की सामाजिक एवं पारिवारिक संबंधों  के परिपेक्ष में जीवन के यथार्थ को एक मृत शव के द्वारा व्यक्त करती मार्मिक लोकप्रिय कुमाउँनी व्यंग्य  रचना है, "मुर्दाक बयान":-

जब तलक बैठूँल कुनैछी, बट्यावौ-बट्यावौ है गे।
पराण लै छुटण नि दी, उठाऔ-उठाऔ है गे।।

जो दिन अपैट बतूँ छी
वी मैं हूँ पैट हौ,
जकैं मैं सौरास बतूँ छी
;वी म्यौर मैत हौ।
माया का मारगाँठ आज
आफी-आफी खुजि पड़ौ,
दुनियल् तरांण लगै दे
फिरलै हाथ हैं मुचि पड़ौ।
अणदेखी बाट् म्यौर ल्हि जाऔ-ल्हिजाऔ है गे।
पराण लै छुटण निदी, उठाऔ-उठाऔ है गे।।

जनूँकैं मैंल एकबट्या
उनूँलै मैं न्यार करूँ,
जनूकैं भितेर धरौ
उनूँलै मैं भ्यार धरुं।
जनू कैं ढक्यूंणा लिजि
मैंल आपुँण ख्वौर फौड़,
निधानै घड़ि मैं कैं
उनुलै नाँगौड़ करौ।
बेई तक आपण आज, निकाऔ निकाऔ है गे।
पराण लै छुटण निदी, उठाऔ-उठाऔ है गे।।

ज्यूंन जी कैं छाग निदी
मरीहूं सामोउ धरौ,
माटौक थुपुड़ हौ
तब नौ लुकुड़ चड़ौ।
देखूं हूं कै कांन चड़ा
दुनियैल् द्वी लाप तक,
धूं देखूं हूं सबैं आईं
आपुंण मैं-बाप तक।
बलिक् बाकौर जस, चड़ाऔ-चड़ाऔ- है गे।
पराण लै छुटण निदी, उठाऔ- उठाऔ है गे।।

जो लोग भ्यारा्क छी ऊं
दुखूं हूँ तयार हैईं,
जो लोग भितेरा्क छी ऊं
फुकूं हूं तयार हैईं।
पराई पराई जो भै
ता्त पाणि पिलै गईं,
जनूं थैं आपुंण कूंछी
वीं माट में मिलै गई।
चितक छारण तलक, बगाऔ-बगाऔ है गे।
पराण लै छुटण निदी, उठाऔ-उठाऔ है गे।।

यो रीत दुनियैंकी चलि रै
चलण जरूरी छू
ज्यूंन रुंण जरूरी न्हैं
मरण जरूरी छू।
लोग कुनई दुनि बदलिगे
अरे दस्तूर त वीं छन,
छाति लगूणी न्हैं गईं यां बै
आग् लगूंणी वीं छन।
जो कुड़िक लै द्वार खोलीं, वैं लठ्याऔ-लठ्याऔ है गे।
पराण लै छुटण निदी, उठाऔ-उठाऔ है गे।
जब तलक बैठुल कुनैछी, बट्यावौ- बट्यावौ है गे।।


प्रो शेरसिंह बिष्ट के संकलन  शेरदा 'अनपढ़ संचयन' से साभार
प्रकाशक अल्मोड़ा बुक डिपो, अल्मोड़ा
(पिछला भाग-१२) ............................................................................................................(कृमश: भाग-१४)

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