
तरकीब
लेखिका-ज्योतिर्मयी पंत
आज एक पुरानी बात याद ऐगे।तब सात साल कि उमर हुन लि। जाड़ नक छुट्टी में हम लोग पूर्णागिरी मंदिर गया।हमर परवार ठुल बाब, ठूल इज और एक हमारे रिश्तेदार ताऊ जी लै भै। उनर च्योल और हम द्वि बैनी समान उमरक भया और दोस्ती लै भई।
तब हल्द्वानी बै टनकपुर तक बस में फिर वाँ बै पैदल जान पड़न छी। हम नान तीनैल खूब आनंद लै और जब टुन्यास पु जां तब तक तो पटाई लाग बेर हालत खराब है गे। वां धरमशाल में रुकां।तब खान पिनक सामान और परसाद पकून क सामान लै डगडे लिंजांछी। रात हूं हमारे रिस्त वाल ताऊ जी ल खान पका। उं खान पकूंन में भौ त कुशल छी और चोख जुठक विचार लै करनें र वाल छि।
खैर ।हम नानतिनान के पेली खान पसक दी, यो हिदायत ले दी।
"नंतिनो खूब पटाई गो छा आब खै पी बेर जल्दी सित जया। रत्ते उठ बेर नै धवे बेर तैयार हुंन छु फिर मंदिर में दर्शन करि बाद खान हूं मिलल। वी है पैलि मुख झन जुठैया।"
यो बात सुनते ही हम तीनों हाथ धवेन हूं भैर गया तो आपस में फिकर हैगे।
"अरे कैं अध रात में भूख लागली तो के होल, रात्ते लै के नी खाइ जाल।"
तब यो तरकीब बनी कि पेट भरी बाद लें द्वि द्वि र_वाट और ल्ली बेर आपुन आपूण स्वेटर भीतेर लुके बेर धर द्यूं न।रात हुन चुप चाप खई जाल, फिर के फिकर नी हो लि।"
तरकीब पुरि करि पर नीन य सि आई कि र त्ते आंख खुल। आब स्नान ध्यान करि बाद लै ऊ रवात फिर स्वेटर क बीच में लूकाई गई किलेकि कई और सम्हालन में कोई जान जालो?
फिर उसी के मंदिर दर्शन करि परसाद खा फिर लौटन तक तो र_वाट सुकि बेर कुड़कुड़ है गई। जसी तसी उनन कैं सम्हाल। फिर वापसी में ठुली गाड़ में जब पुजां तब जै सांस में सांस ऐ। पानी में उछल कूद करना क बहानैल ऊ र_वाट पाणी में विसर्जित करी गई।
नान उमर में लै पेट पुज की यतू व्यवस्था करी। अन्नपूर्णा देवी कि कृपा ल तरकीब सफल है गे।
July 29, 2020

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