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शेर सिंह बिष्ट, शेरदा अनपढ़ - कुमाऊँनी कवि 18

शेरदा की कविता - गजबजल 1, Sherda ki kumaoni rachna gazbazal,sherda ki kumaoni kavitaa ki kavita

शेरदा की कविता - गजबजल 1


शेरदा की रचनाओं कि सबसे बड़ी विशेषता उसका कुमाऊँ के पहाड़ी जनजीवन व सामाजिक व्यवहार या दैनिक जीवन के पलों में होने वाले सुखद-दुखद अनुभवों को भी हास्य-व्यंग्य के माध्यम से प्रस्तुत करना है। शेरदा की कुमाऊँ के सामाजिक जनजीवन, धार्मिक आस्थाओं और अंधविश्वासों को अपने अंदाज में व्यंग्यात्मक रूप में अपनी कविता के माध्यम से प्रस्तुत करना है।  यहां पर प्रस्तुत है शेरदा की रचना जिसके बारे में उनका कहना है की वो लिखना चाह रहे थे एक ग़ज़ल पर सब "गजबजल" हो गया-

बुब ज्यु बोट की ओट में चटणि चटै गईं
यौ उ मिलौल कै सौ गिनती राटै गईं

जनुं पै भरौस छी पेटै कि आग निमाल 
उ और जै पेटाक अनाड़ ततै गईं

नौ हौवाक बल्द कुंछि कूड़ि-कूड़ि रिटाल
अब मालूम पड़ौ उ......................दिखै गईं।

सौ सकुल भर द्युल जो कौंछि हमर फोचिन 
ज्ये लै फोचिन में छी उ लै टपकै खै गईं

सौ शगुन खै बेर कौंछि हमै छां तुमर
तौ तुमर दिल्ली बजारै उ हमार हरै गईं

बतै द्यो क्वे कईं डोई रै हुनाल 
कां छन के छन कैं पत्त बतै गईं

चुथरौव जस मुखौड़ छी उनौर बडुवा जस टांग 
कोप कुनांछि अब बुब फुल्की जस ओसै गईं

धैं कभैं बरसला कबै अगाश जै चै रौछि 
अब तो शेरदा अगाशाक बादव लै फटै गईं


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