-:बाल दिवस:-
रचनाकार: नीमा पाठक
नानछिना रोज बाल दिवस हुछी,
के टोका टाकी नि भें आपू मन की करछी।
गाड़ गधेरा, डान कान एक लगूछी,
क्वे 'किडनैप' नि करछि।
दिन में स्कूल, रात में रामलीला च्याल ने को दगड़ रुच्छी,
कभैं,क्वेे 'बेड टच' नि करछि।
आपुड़ पराय के नि समझ ऊंछी,
गौं सब मैसों कुं म्यार काक,म्यार दाद कुंछी।
काखी काकड़, आम आड़ू टोड़ लिछि,
डांट क्वे नि लगुछी, चेली भलिके उतर बोट बटी कुछि।
च्याप्ड़ी, खडूनी, यां मर वा मर कुँ प्यार समझछी,
जी रें, जाग रै सुण हरयाव समझ छी।
खूब खेल छी, दर्जी बे कतरन ली बेर डॉल बनुछी,
फाटी चिथाडा बॉल बनुछी,
सिवाई धनुष बनुछी, झटालू बंदूक बनुछी।
पाठी में बैठ बेर घुसघुसी खेलछी,
कमेट दवात में रीठ डाल बेर गुड़ गुड़ करछी।
हम कस कस कर दिछी,
फुटी कंटर बजे द्याप्त नचूंछी,
सांक बजै ग्रहण भजे दिछी,
फटयाब लगे बेर हाव चलें दिछी
पिरुल जले रावण लंका फूंक दिछी
क्याल बोट काटी पन्याब बने लिछी।
हमर एक दिन ना,
रोज बाल दिवस हूंछी।
नीमा पाठक।
नीमा पाठक जी द्वारा फ़ेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी शब्द सम्पदा पर पोस्ट
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