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हमर बचपनक जमानक बर-ब्योली किस्स

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हमर बचपनक जमानक बर-ब्योली किस्स 

लेखक: विनोद पन्त 'खन्तोली'

आज मैं आपु के उ दौर में ल्हिजां जो हमरि हैबेर जरा ठुल लोगनक जपान छी।  मतलब हमर बचपन और हमर है ठुल लोग जभत जवान हई भै।  समय आज क जस एडवांस नि भै पर एकदम पुराण लोगनक जस ले नि भै। . उ टैम पर न तो बहुत बंधन ना रुढिवादी, मतलब आब नई बर ब्योली आपस में बुलानेरे भाय।  चेली ले पढ लिख गे जैक स्कूल नजदीक भै, ब्या काजन में बनारसी साडि ले उण बैठ गे।  कुछ नई ब्वारी भले साल द्वी साल बाद जाओ पर दुल्हो दगाड देश देखण ले जांण बैठ गे।

आब दैज में रेडियो ले मिलण बैठ गोय, ब्योली क लिजी फैंसी चप्पल ले उण बैठ गे।  कती कती बजाराक रंग्वाली पिछौड उण बैठ ग्याय, छोई में रिखू (गन्ना) और ठुल नीबू दगाड चार चार गुद काजू बदाम और आदू किलो ताजमखाना ले उण बैठ गे।  निवाडकि चारपाई, प्लास्टिका तार नैलि बुणी लाकाडाक कुरसी, जननछैं सोपास्यट कूनेर भै।  एक ड्रैसिंग टेबल, जास चीज ले मिलण बैठ गे।  तियल में सूती धोती जाग पर साडी मिलण बैठ गे।  पिठ्या ले बर'क परिवार वालन पांच रुपें या दस रुपें लागण बैठ गे।  बर्यात छिलुका राख क जाग  में ग्यस्स क उज्याव में उण बैठ गे।

मुर्गा बोले कुकडू कूं ऐसे बराती लाये क्यों जस गीतनक प्रादुर्भाव क समय ले यै छी।  कुछ गीतक अन्तरा ले कुछ माडर्न हैग्याय (उ जपाना हिसाबलि ) - समदी महाराज कुत्ते को पाल लो, जैसे किरमड के कांटे वैसे बरजी के भांटे.. कुत्ता पाल लो...!   दो दो पूरी जेबन में लुकाया करो, जास गीत ले वी समयक देन भै।  हां एक और गीत छी .. चल मेरे मिठ्ठू चने के खेत में।   वी टैम छी जब  कुछ खास खास बरेती न कें बीडि जाग पर पनामा मिलण बैठ गे।  पनामा फाकते हुए द्वि चार जाणीन कें देखबेर पत्त लागनेर भै कि यो बराक परिवाराक छन।  गाडी बुक करबेर बर्यात ल्हिजाणक रिवाज शुरू हैगे।  बर क परिवार और खास रिश्तेदारन कें गाडि क अघिला सीटन में बैठूणक प्रचलन वी टैम पर छी।   घर पना गडेरी, लोकी सागा क जाग पर आल टिमाटर, मटर'क साग कि ले शुरुआत हैगेछी।
 
कती कती चेलि देखणक ले प्रचलन योई टैम पर शुरू भो पर यो बहुत कम हुनेर भै।  बरै तें चमडा ज्वात और आचार्य तैं पी टी शूज वी टैम पर चलन में आईन।  कति ब्योली क बाबू फौजी भै तो बर,क लिजी गत्त कि अटेची, जमें भ्यैर बटी रैक्सीन जस चढी हूंछी कैन्टीन बटी मगाई जाणक शुरुआत ले हैगेछी।  

बर्यात जसे घर पुजी तो बर क भिन्ज्यू या माम, फूफा जास आदिम बर कि चापपाई,क निवाड वगैरह कसि बाद वीकें फिट करी बाद पैली रेडियो चलाल।  हमन जास नानतिन अगर न्है गेयां देखण तो हमैलि रेडियो तो दूर बर कि चारपाई लै ले हात नि लगूण भै।  हम जो गोठमाव दैज सजाई जाल वीक मोरि (खिडकी) बटी चानेर भयां।  कैकै बर्यात अगर अलमाड शहर में गे ऐर चेलि वाल सेठ भै तो वां स्प्रिग वाल सोफा ऐ रूनेर भाय।  हम यो ताक में रूनेर भयां मौक मिललौ हम तमें कुदना कैबेर और कयेक बार थप्पड ले खायी तौ चक्कर में।

उ टैम पर पहाडन में ज्यादेतर घर नानै भै तो  निवाड वालि चारपाई कें जो गोठमाव लगाई जाल वैं एक आरसी वाल टेबुल, दैजकि कुरसी, मेजपोस वगैरह सजाई जाल और एक जाव् (आला) जमें अघिंकांश लम्फू धरी रुनेर भै खालि करी जाल और वीमें रेडियो सजाई जाल।   एक नान् नान् वाल मेजपोस या कुरुसियैलि बुणी रुमालैलि रेडियो ढकी जाल।  बाद में रेडियो लिजी चमडक कवर क्वे अलमाड जांणी होल तो वीछैं मगाई जांछी..।  रेडियो ज्यादे दिन नांगड नि धरण भै,  नतर ध्वांस पैठ गे तो मामुल खराप।  

और वी गोठमाव सुहागरात क कक्ष ले हुनेर भै।  कुछ लोगनाक गोठ माव मेॆ अगर तखतनक पटबाड (पाटेशन) नि भै तो द्वि चार पुरांण धोतिनक पर्द जस बणैबेर पटबाड (पार्टेशन) करी जानेर भै।  कयेकनाक तो गोठमाव दगाड जुडी गोठ में गोरु भैंस ले भै।  कल्पना करो कबै कबै कदुक असुविधा हुनि हुनेलि,  दैज में मिली रेडियोक उ बखत भौते क्रेज भै।  मेकें लागौं बर सुहागरात में ब्योली घूघट हटूण है पैली रेडियो में छाया गीत लगून हुन्योल।

एक बात छी उ गोठमाव बटी खुशबू ले बहुत जोरदार उनेर भै।  किलैकि एक टेबुल में ब्योलिक पौडरक डाब, कुटैक्स (नेल पालिस), एक काजल क डाब, एक बिन्दी पत्त, सिंदूर क डाब, एक लिपिस्टिक, एक आवला तेल और एक सापुण कि टिक्की हुनेर भै।  बस तदुकै भै श्रृगारक सामान सापुण कि टिक्की ले तब सौन्दर्य प्रसाधनै भै।  उ टैम पर कुछ लोगनाक रिश्तेदार शहरन बटी ले उनेर भाय तो ब्योलिक श्रगारदान मेें धरणतें लक्ल सापुण लै रूनेर भाय।  ब्योलि ले नाणा लिजी सनलाइट या लाईबौय ल्हिजाली और लक्स मूख ध्वैणैते धरी रूनेर भै।

शुरू शुरु में ब्योली रत्तै उठबेर है अलावा ब्याल बखत ले मूख ध्वेनेर भै।   हालाकि दस पन्द्र दिन बाद जब उ लोग खेतन जाल गोरु भैसनक गुबर वगैरह काम कराल तब फिर बिचारिनक मूख ध्वैण नि ध्वैण बराबरै भै।  फिर कदिने मन्दिर जाणतैं या कौतिक वगैरह जाण मैत जाणा दिन उ लक्स सापुण निकाली जानेर भै।  क्वे नन्द लोग मागला उ सापुण तो बोज्यू लोग उनन बोत्यूनेर भाय।  आब्बै तुमार दाद आला तो तुमन तैं ले मगै द्यूल, पर उनन तब कां यादरूंछी।   जब म्यार नई बोजी आईन काक जेठबौज्यू च्यालनाक, तो मी पाच साल सालक हुन्येलूं।

नई बोज्यू जब मूख ध्वेबेर आल और मूख लै पौडर चुपडाल तो बोज्यून बटी जो खुशबू उनेर भै।  आब हम नानतिनै भयां, बोज्यूनकि खुशबू सुगणतैं उनार गोठमाव पुजि जानेर भयां।  आब तदुक अकलै नि भै कि हम कबाब में हड्डी बणनयां।  दाद लोग हमन भजाल और के कूंछी, जा किताब पढ कौल।  हम जबरदस्ती बोज्यू नाक दहाड पड जानेर भयां।  आब दाद मैक्याल तो घात ले बोज्यून छैं कूण भै।  बोज्यू बिचारि न चाहते हुए हमरै तरफदारी करनेर भै. के बात नै लाला.. पडि जाओ.. और दाद कें दांत पीसनै भ्यैर जाण पडनेर भै।

विनोद पन्त' खन्तोली ' (हरिद्वार), 14-06-2021
M-9411371839
विनोद पंत 'खन्तोली' जी के  फ़ेसबुक वॉल से साभार
फोटो सोर्स: गूगल 

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