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नंदा देवी मंदिर, मुनस्यारी

नंदा देवी मंदिर, मुनस्यारी, Nanda Devi temple Munsyari, Nanda Devi temple Munsyari in kumaon

नंदा देवी मंदिर, मुनस्यारी

लेखक: नीरज चन्द्र जोशी

पिथौरागढ़ जनपद में मुनस्यारी से तीन किलोमीटर दूर स्थित यह प्राचीन देवालय महादेव की अर्धांगिनी देवी पार्वती के एक रूप माता नन्दा देवी को समर्पित है। इस देवालय का निर्माण 1994 ई. में स्थानीय जनता के सहयोग से किया गया था। माना जाता है कि नंदा देवी उत्तराखंड के कत्यूरी, रजवार, मनराल, पवार, पाल और चन्द राजवंश की कुल देवी थी। एक अन्य लोक कथा के अनुसार नंदा कत्यूरी वंश के महाप्रतापी शासक कीर्तिवर्मन देव की रानी थी। वह सीता और सावित्री के समान पति व्रता थी। नंदा कोट व नंदा देवी पर्वत शिखर इनका निवास स्थान था। इतिहासकार प्रोफेसर डी. डी. शर्मा के अनुसार नंदा देवी ने संवत 295 से 360 तक 65 वर्ष अपनी राजधानी कार्तिकेयपुर से अपने राज्य का संचालन किया। यह कूर्मांचल और गढ़वाल की सबसे ज्यादा पूजे जाने वाली देवी है। कुमाऊं में नंदा देवी के उन्नीस देवालय हैं। नंदा देवी का उल्लेख वेद, रामायण, महाभारत, वृहत संहिता और मत्स्य पुराण में हुआ है। वाराह पुराण में वर्णन है कि देवी नंदा ने अधर्मी महिषासुर और अनेकों राक्षसों का वध कर के विंध्य पर्वत पर चैत्रासुर का वध किया। पौराणिक साहित्य में नंदा माँ को नवदुर्गाओं में से एक माना गया है। भविष्य पुराण में जिन नव दुर्गाओं का उल्लेख है उनमें महालक्ष्मी, नंदा, क्षेमकरी, शिवदूती, महाटूँडा, भ्रामरी, चंद्रमंडला, रेवती और हरसिद्धी देवी हैं। शिवपुराण में वर्णित नंदा तीर्थ वास्तव में कूर्मांचल ही है। आदि शक्ति के रुप में नंदा माँ को पूरे हिमालय में पूजा जाता है। गढ़वाल में एशिया की सबसे बड़ी धार्मिक यात्रा नन्दा राजजात का आयोजन नंदा माँ के सम्मान में होता है। कुमाऊँ में मुनस्यारी, अल्मोड़ा, रणचूला, डंगोली, बदियाकोट, सोराग, कर्मी, पोथिंग आदि जगहों पर मां नंदा के मंदिर स्थापित हैं। मुनस्यारी में प्रतिवर्ष नंदाष्टमी के अवसर पर भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें हजारों लोग बढ़ चढ़कर प्रतिभाग करते हैं। इसमें कुमाऊँनी संस्कृति की विशेष झलक दृष्टिगोचर होती है। माना जाता है कि नंदा देवी के पूजन से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है।

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