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दिल्ली

दिल्ली -कुमाऊँनी कविता, kumaoni poem about delhi,rajdhani delhi par kumaoni kavita

दिल्ली!

कवि: रमेश हितैषी

धन रे दिल्ली तेरी पराणी,
सबुलै तेरी पीड़ पछ्याणी।
अपण घरकि नि जाणी कहाणी,
भ्यार अपणी जै जै कराणी।

अपडु कें घर भूकै छोड़ि यानी,
दिल्ली में ऐ भंडारा बांटनी।
कैकी हैरै घर जणे सियाणी,
कैल छोड़ि ह्यै जन्म भूमि अपणी।

आपण गुठ्यार कि दीवाल नि चीणी,
दिल्ली में सब बल भलिक बसाणी।
अपण घर जैल समाइ नि जाणी,
भ्यार कर में पंच परवाणी।

अपण चै धारु धार डोई जै,
दिल्ली अपणी भलिक बसाणी।

सर्वाधिकार सुरक्षित @ रमेश हितैषी

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