
चाहा- हमार पहाडन में राष्ट्रीय पेय
लेखक: विनोद पन्त 'खन्तोली'
चाय या चाहा .. यो यस नाम छ जैछैं सब परिचित छन और हमार पहाडन में तो यो राष्ट्रीय पेय भै। रोजगार क साधन हो या आतिथ्य सत्कार, टैम पास हो या थकान हो, गरमी हैरे या ह्यूं पडि गो, लगभग हर जगह चाहा मुख्य भै। क्वे गरीब गुर्द होल के रुजगार नि भै तो कति चहा होटल खोल ल्योल। ज्यादे के नि चैन भै, कती रोड साइड चार लाकाड गैठ मैलि बटी पिरुवक छान् डाल, एक कितैलि चार गिलास ल्हिगे बस दुकान तैयार। पहाडन में जां दूध कम उपलब्ध भै वां पौडर क दूद ले चलनेरे भै।
आजकल तो तरीक बदल गो, चाहा लिजी पाणि दूध चीनी सब दगाडै उबालनन फ्राईपान में। होटलन में पैली एक कितैली में पाणि और चाहापत्ती पकै ल्हिनेर भाय। फिर जदुक गिलास बणूण भै उदुक गिलासन मेॆ दूद डाल फिर गरम चाहा डाल फिर एक चम्मच चीनि डालिबेर..। खट खट खट खट करिबेर चीनि घोली जानेर भाय, चाहा तैयार। लगभग आजकल क ठुल होटनक जस स्टाइल भै। नानछना चाहा कि तदुक शौक नि भै लेकिन उ खट खट खट खट करी चाहा अलगै जस चिताइनेर भै।
उ दिनान होटल में चाहा यैक विलि ले पीनेर भया कि जब ईसकूल या कती भ्यैर जाई में भूक लागि तो सबसे सस्त जुगाड चाहा भै। तब चार आन क चाहा और चार आन आठ आन क एक बन खाय ख्वाड देर भूक मिटी जानेर भै। चाहा दगाड एक पप ले हूंछी, जैक भितर मीठी सूजी भरी रूनेर भै। बनक दगाड चाहा पीण में एक बबाल भै, चाहा में बन डुबायो तो आदू बन में सारै चाहा सोसी जानेर भै। वी बाद आदू बन उसीके बुकूण भै, धो नेलण हुनेर भै बाद में। अगर कदिनै डबल भाय तो एक हाफ आल चांण खाय फिर एक गिलास चाहा पी तो कैलाश पुजि जाईनेर भै।
आजकल तो गाडी क बाट हैगेईन तब पैदल जाण भोय। दूर जैबेर चाहा होटल मिल गोय तो टेक जसि है जानेर भै। चाहा पहाडी जीवन में रचि बसि भोय, क्वे मेहमान आल तो कदुकै धौ धिनाई होलि कदुकै घाम कि देफरि हैरौलि पैली चाहा उनेर भोय। चाहा पहाडी आतिथ्य सत्कार में फस्ट एड जस भै। क्वे मेहमान चाहा पीणि नि भै तो असज ऐ जानेर भै कि इनन कैं आब कि दिनू! क्यालि करी जाओ स्वागत, फिर वीकि च्वाइस पुछि जानेर भै। मर्चाणि पीला पें, आद क पाणि बणैं लूं पैं, ज्वाण क पाणि बटी लिबेर मेथी क चाहा तक आँफर करी जाल। पर वीकैं चाहा नामक एक गर्म पेय जरूर पिलाई जाल। हमार घर एक बार कती बटी कौफी ऐगे उ ले चाहा जसि बणाई जानेर भै। क्वे ले काम काज नैनान भुकार पुज पाति जागर घन्याई कीर्तन भजन होल तो वीक सामान एकबट्यूण है पैली चाहा जुगुत जरूर धरी जालि।
दूध नि भै तो फिक चाहा चलौल पर चहा हुण चैन भै। एक बात और पहाडि में फिकि चहा मतलब हिन्दी क फीकी बिना चीनी की चाय नि भै। पहाड में फीकी चाय मतलब बिना दूध की भै। मतलब चाहा में मीठ जरूर भै, एक चहा क प्रकार पुरि दुन्नी मेॆ पहाडै में हूं उ छ - कटकि या टपकि चहा। जो यो लेख कें पढ सकाल उनन तो यो पत्तै होल। आहा मिसिरिक कणिक या गूडक डौव दगाड सुडुक्क सू सू सू कैबेर .. अलगै आनन्द भै। पहाडि आदिमैकि एक आदत और हूं, चहा पीण हैबेर पैली एक बार गिसास में फूउउउउउउ जरूर कराल और चहा गिलासै में पीण भल मानाल। कप में तो पराय गाल जाण जस चितूनेर भाय। गरम चाहा कें एक बार गिलास में हातैलि गोल कैं रिगाल। चहा पीण बखत एक सुडूउउउक जसि आवाज जरूर निकालण भै। दुन्नि असभ्य कौली तो भाड में गे, सवाद ल्हिण ले कि एक चीज भै।
पहाडक चाहा क कदुकै प्रकार भै . यो बढिया श्रेणी बटी घटिया तक और नाम धरण वाल सब भै। जसिक - गटमट चाहा, दडबकव चाहा, तात्तै चाहा, टौंण पाणि जस चाहा, मर्चाणि, ज्वाण क चाहा, आदौ क पाणि,(खाली अदरक बिना पत्ती), किकिडक चहा, त्वेसी चाहा, मेथी पाणि (पाणि जहां भी कहेगे मतलब बिना पत्ती ), टौटेन चाहा, गौतैन चाहा, चवाणि जस चाहा(दूध पत्ती चीनी सब बहुत कम), कितैलि ध्वैइक पाणि, टपकी या कटकी चाहा, फिक चाहा, घर क चाहा( ग्रीन टी)। खुद चाहा पत्ती तोडबेर और आजकल स्यूणक चाहा,( मैं यकें पहाडि चाय नि माननू किले कि पैली यकें पहाडन में नतो क्वे पछाणछी न पीछी)।
पहाडि आदिनाक चाहा क यदुक दीवानगी भै कि मेरि ईजैलि एक दिन बर्त में भदो म्हैण आठू बर्त में उदिन अग्नि पाक नि खान तो वीलि पाणि कें घाम में ततूण धर और पत्ती डालबेर चहा बणै दी।
चाहा पर पहाडन में कदुकै गीत और मुहावरा लोकोक्ति ले बणी छन।
चहा को अमल लागौ चाहा पति नै..... बक्स ताल कैलि टोडो पैंस एकै नै।
बाटै कुडी चाहा में उजडि(लोकोक्ति)।
ऊँ जय चाहा की लोटिया,
मलि बटी चमकिल चमकिल देखीणै, तलि बटी को फुटिया..
ऊँ जय चाहा की लोटिया (हास्य)
पहाडक चाहा क असली सवाद कितैली में पाकी चाहा कै हुनेर भै। उ कितैलि लगातार आंच में रूनेर भै, काली है जानेर भै। वीक हैन्डिल टुट जालो तो तार बादी जाल और उ कितैलि रोज ले नि माजीनेर भै। तीन चार दिन बाद आल वीक नम्बर. कितलि जब गरम हैबेर फुंकार मारलि तो समझण भै चाहा पाकि गो।
अच्छा एक बात और, टैम पर कैली चाहा पिलाय तो वीक गुण कुछ यास अंदाज में गायी जाल -खासकर स्यैणी -
पटै हैरैछी वीलि दडबकव चाहा पिवा, आंग छाव हैगोय!
दिगौ वीलि मेकें चीनि हाली चाहा पिला.. गुईया गुई (मीठो मीठ)!
परुवै दुल्हैणि गजबै देताव हातेकि भै, चाहा दगाड ठुल्लो गूडक डौव दे!
हेम कि दुल्हैणिली गटमट चाहा दे वीक भल हैजौ!
दिन भर धान गोडबेर पटै हई भै, एक गिसास भरिबेर चाहा दे अमरसिंह कि स्यैँणिलि मेर आखन लै उज्याव जस भो!
बहुत भलि ब्वारि छ खीमदा कि, तलि मलि जाण वालन भलो चहा पिलूं, वीक भल हैजौ!
या कैकी बुराई करण भै तो -
वीक हात बटी एक चाहा छिट ने झणन!
बज्जर पडि जाल है, चहा चवाणि जस बणाई भै, खाप में ल्वेरैन जस लागि गे!
भौते कमचूस भाय जग्गू का !राठ, कभै कैछैणी एक घुटुक चाहा पी नि कौ हुन्योल!
कुछ समय पैलियकि बात छ चाहा पत्ती खतम है जाल तो पडौस बटी पेंच माग लाल पर चाहा बणौल जरूर। हमैलि तो चीनि हाली चाहा दगाड बासि रोट ले खै राखौ। यो बात नै कि चहा केवल आतिथ्य सत्कारैकि काम उ, यो कुछ चिपकू मैंसन भजूणाक काम ले ऊं। जसिके क्वे बहुत देर बटी बैठ रौ तो उकैं भजूणा लिजी पुछी जाल! एक बखत चाहा आजि पेला, चाहा बणु पें तुमन तें
या
ब्वारी इनैलि चाहा पीछै नै, मेकणी यादै नहां!
यस सुणबेर उ आदिम कें जरा शरम होली तो उ न्है जाल।
तुमन कें आश्चर्य होल पर पहाडन में एसिडिटी या खट्टी डकार (पेट में झुलस्यैनि, पेट चुकीण) क इलाज ले चाहा भै..
पेट चुकी गो जरा चाहा पिला!
पेटन या छाति में दहा पडि गो जरा चाहा बणै दे कालि मर्च डालि बेर!
मतलब थ्वाड देरा क लिजी चिकित्सा विग्यान ले घा चरण न्है जाल।
तो मेकें चहा पिलूण कब बुलाला आपुण घर? चाहा कि तीस (प्यास) जसि लागि गे!
विनोद पन्त' खन्तोली ' (हरिद्वार), 19-06-2021
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फोटो सोर्स: गूगल
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