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कन्या भ्रूण हत्या है बचो और बचाओ

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कन्या भ्रूण हत्या है बचो और बचाओ

लेखक : पूरन चन्द्र काण्डपाल

दिल्ली बै चिट्ठी ऐरै 
कुर्मांचल अखबार अल्माड़ 27 सितम्बर 2021

मनखी के जन्म दिणी मयेड़ि के जन्मण है पैलिकै बेख़ौफ़ मारणी हमर संकुचित परम्परावादी समाज जिम्मेदार छ। च्येलियां कि गर्भ में हत्या करि बेर हाम मानवता के विनाशकि तरफ ल्ही जा रयूंबिन स्यैणियां समाजकि त कल्पना लै नि है सकनि फिर लै हाम य कुकृत्य करें राय। तकनीकल हमुकै शैतान बने है, जो हम बीमारीकि जानकारी दिणी मशीन ल हत्या क लिजी 'कन्या भ्रूण' ढुंढण फै गाय।  कुकुरमुत्तों क चार अवैध गर्भपात केन्द्रों और कसाईखाण बनी नर्सिंगहोमोल प्रकृतिक बनाई 'मानव लिंग-अनुपात' कि चूव हलै है।  अगर यूं कसाईखाणों के नि रोकि जालौ तो च्यलांक चहेतों मैं आपण अणब्यवाई लाडिलोंक लिजी ब्योलि ढूँढी बेर लै नि मिला। देश क कुछ राज्यों में य समस्या ठाड़ि हैगे।

च्येलिय पैद हुण है पैलिक किलै मारि दिई जानी? जन्मी हुई च्येलिय हमुकै भारि (ख्खरक ब्बज) किलै लागनी? हम च्येलियां कि तुलना में च्यलां के ज्यादै मान्यता क्यलै दिनूं? हमुक च्यल यस क्ये दि द्यल जो च्येलि नि दि सका?  च्यल के चांगव और च्येलि के भुस समझण कि सोच हमार मन-मस्तिष्क में क्यले पनपीं?  यास किस्माक कएक सवालों क जबाब हमरि आपणि दूषित-संकुचित मानसिकता और कथनी-करनी में बदलाव करि बेर खुद मिलि जाल।  'च्येलि सरास है जालि, च्यल त हमेशा हमार दगाड़ में रौल और हमरि स्याव करणी ब्योलि ल्याल, जबकि च्येलि के पढूंण में, फिर वीक ब्या में भौत खर्च ह्ह्वल और म्वट दैज लै दीण पड़ल। यतू धन कां बै आल?  दैज़क 'स्टैण्डर्ड' भौत बढ़ि गो।  यहै भल छ कि द्वि- चार हजार 'सफाई' क दिदियो और लाखों बचौ। फिर च्यल त स्याव करल, वंश चलाल, मुखाग्नि-पिंडदान और सराद लै करल। च्येलि क्ये कामकि?'  यसि किस्मकि मानसिकता ल आज य सामाजिक समस्या ठाड़ि करि रैछ।  कसाई बनी डाक्टरों के दोष भलेही दियो पर वास्तविक दोषी त मै-बाप या आम- बुबु छीं जो सुलांग लगूनै बिराऊ चार कसाइयों क पास जानी।

च्यलकि लालसा ल जनसंख्या क सैलाब के विस्फोटक बनै है।  बढ़ती जनसंख्या में विकास 'ऊंट क गिच में जिर' जस लागै रौ।  शिक्षा क प्रसार ल लोग य बात मैं समझें रई कि च्येलि-च्यल ज्ये लै हो संतान द्वियै भौत छीं।  आज लै हमार देश में एक आस्ट्रेलिया कि जनता क बराबर जनसंख्या हर साल जुड़ते जां रै।  ग्रामीण भारत और शहरों क पिछड़ी तबक में जनसंख्या वृद्धि ज्यादै छ।  हमुकें एक ठोस जनसंख्या नीति अपनूण पड़लि जमें द्वि संतान क बाद ग्राम सभा बटि संसद तक कि सबै सुविधा बंद करण पड़लि।  पड़ोसी देश चीन ल नीति बनै बेर जनसंख्या पर नियंत्रण करि है।

जनसंख्या नियंत्रण क आज कएक तरिक छीं पर अवैध शल्य चिकित्सा द्वारा भ्रूण हत्या में स्वैणि मैं पीड़ क साथ-साथ बच्चदानी क अंदरूनी पर्त क क्षतिग्रस्त हुण कि संभावना लै छ। उ टैम पर गर्भ है छुटकारा पाण कि जल्दी में यास स्वैणियां मैं इच्छा क हिसाब ल दुबार गर्भधारण करण में रुकावट है सकीं।  कानून क अनुसार लिंग बतूण और भ्रूण हत्या करण अपराध छ। कुछ 'कसाइयों' के उनार पाप कि सजा लै मिलि चुकि गे।  दुख कि बात तो य छ कि अनपढ़ और गरीबों क अलावा संपन्न लोग लै च्यलां क लिजी भटकैं रई।  काश! यूं लोगों के मैंसों दगै कान् दगै कान् मिलै बेर सफलता क अगास में पुजणी अणगणत स्वैणिय नजर औना तो शैद यूं आपण च्येलियां दगै क. अन्याय नि करन और द्वि च्येलिय क औण बाद च्यल क इन्तजार में परिवार नि बदूंन।  रियो और टोक्यो ओलम्पिक पदक ल्यौणी च्येलिय हमार सामणि छी।

कविता संग्रह 'स्मृति लहर' में 'नारी का ऋण' कविता में मील एक दम्पति क शब्दों के कविता क रूप दि रौछ, ("बेटा, बेटा रह सकता है पुत्रवधू के आने तक बेटी, बेटी ही रहती है अंतिम साँस के जाने तक।") अर्थात च्यल ब्याक बाद बदलि जांछ जबकि च्येलि ताजिंदगी नि बदलनि तो च्येलि मैं औण दियो, उकै गर्भ में नि मारो। हमुक कन्याभ्रूण हत्या ल ना बल्कि कन्यादानल अपार सुकून, अनंत सुख और मानसिक शांति ताजिंदगी मिलते रौलि।

पूरन चन्द्र काण्डपाल, रोहिणी, दिल्ली

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