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मानुरदेश और कत्युरियों की कुलदेवी

कत्युरियों की कुलदेवी मानिला देवी, Manila Devi Mandir, Talla aur Malla Manila, Manila Devi Temple

"मानुरदेश" और कत्युरियों की कुलदेवी

तल्ला मानिला माँ चंडी और मल्ला मानिला में शक्ति के हाथ पूजन की परम्परा, अलौकिक है यह धरा

सृष्टि की शुरुआत से अनंतकाल तक का काल निर्धारण करने वाले महाकाल का पवित्र धाम है देवभूमि। इस निर्धारण के लिए जिस शक्ति की नितांत जरूरत होती है, उस आदिशक्ति का वास भी इसी भूमि पर है। उत्तराखंड का तकरीबन हर शिखर देवी का धाम है। कई आसुरी शक्तियों का मर्दन आदिशक्ति ने यहीं किया था। शिव की तरह शक्ति भी इस देवभूमि में कई रूपों और स्थानों पर कहीं समान तो कहीं अलग-अलग रूप में पूजी जाती रही हैं। ऐसे ही दो अलग-अलग रूपों में देवी के पूजन का साक्षी है वीरभूमि सल्ट का दिव्य मानिला क्षेत्र।

तल्ला मानिला में देवी अपने चंडी स्वरूप तो मल्ला मानिला में भगवती रूप में पूजी जाती हैं। इस बार चलते हैं कत्यूरकाल के मानुरदेश की नैसर्गिक सौंदर्य से लबरेज उस हरीभरी पहाड़ी की ओर जो अपनी खगोलीय तरंगों, सकारात्मक ऊर्जा और अध्यात्म के केंद्र के तौर पर भी कुमाऊं में विख्यात है। आस्था, श्रद्धा, आध्यात्मिकता की अनुभूति यहां होती है तो इतिहास भी दमकता है। शक्ति की ऐसी भूमि जिसकी सीमा किसी दौर में गढ़वाल तक थी और चंद शासनकाल में इस दिव्य धरा से देवलिपि संस्कृत का प्रचार प्रसार भी किया गया। देवभूमि में देवी की जागर आज भी मानुरदेश की मानिला, भौन की भगवती व हाट की कालिका स्तुति के साथ होती है।

कत्युरियों की कुलदेवी मानिला देवी, Manila Devi Mandir, Talla aur Malla Manila, Manila Devi Temple

इतिहास: .....और सैंणमानुर बन गई कत्यूर राजवंश की राजधानी

अतीत में मानिला का सैंणमानुर कत्यूर राजवंश की राजधानी रही। इस राजधानी की सीमा का विस्तार कुमाऊं के बारामंडल, पालीपछाऊं परगना का संपूर्ण सल्ट, चौकोट, सराईखेत, ककलासौं समेत लैंसडौन, धूमाकोट को समेटे पछुवादून (गढ़वाल) तक माना जाता था। इस राजधानी के अंतर्गत आने वाली संपूर्ण सीमा को ही मानुरदेश कहा जाता था। कत्यूर शासनकाल के निरंतर अध्ययन में जुटे परिपूर्ण वात्सायन मनराल कहते हैं जब चंद राजवंश ने कत्यूरी साम्राज्य को अपने कब्जे में लेने के लिए युद्ध छेड़ दिया तो व्यापक जनहानि होने लगी। इस पर कत्यूरी शासक राजा वीरमदेव ने सत्ता पाने को आतुर चंद शासकों को नरसंहार रोकने का संदेश भेज अपनी राजधानी लखनपुर (चौखुटिया) से स्थानांतरित कर सैंणमानुर में स्थापित की। रातोंरात अभेद्य किला तैयार कर तल्ला मानिला में अपनी कुलदेवी की प्राणप्रतिष्ठा की। लोकमत के अनुसार मानुरदेश की सुरक्षा के लिए मल्ला मानिला में भी मां का मंदिर बनवाया जो कुलदेवी चंडी का ही अंश माना गया।

वैदिक शिक्षा का भी गढ़

चंद शासनकाल में शुरू संस्कृत की पाठशाला ब्रितानी दौर में बंद हो गई। यहां प्राचीन कुटिया में ध्यान लगाने पहुंचे श्री श्री 1008 चैतन्यानंद सरस्वती महाराज ने 1989 में संस्कृत पीठाश्रम की पुनःस्थापना की। वह मल्ला मानिला के इसी स्थल पर कई दिन ध्यानमग्न रहे।

प्रतिमा के आगे हाथ के दर्शन

मल्ला मानिला में शक्ति रूपी हाथ वर्तमान मूर्ति के ठीक आगे रखा गया है। हालांकि आंचल से उसे ढका गया है।मात्र अंगुल ही नजर आती है। स्थानीय लोग हों या कत्यूरीमनराल वंशज, तल्ला मानिला स्थित कुलदेवी की मूर्ति को खंडित नहीं मानते। उनका मानना है कि मां की शक्ति दो जगह बंट गई। प्राण प्रतिष्ठा के बाद इसे जीवंत ही कहा जाता है।

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कत्यूरियों की थाती को चंद राजवंश ने धरोहर की तरह सहेजा

तल्ला मानिला में कत्यूरी शासकों की कुलदेवी विराजमान थीं तो कालांतर में मल्ला मानिला वैदिक परंपरा के प्रकांड विद्वानों तथा धर्मशास्त्रियों की कर्म स्थली बना। लोकमत का हवाला दे सैंणमानुर निवासी परिपूर्ण वात्सायन मनराल कहते हैं तल्ला मानिला स्थित कुलदेवी की पुकार मल्ला मानिला व समीपवर्ती क्षेत्रों को जागृत करती रहती थी। आध्यात्मिक तरंगों व नैसर्गिक सौंदर्यता से भरपूर यह क्षेत्र बाद में चंद राजाओं के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण रहा। मान्यता है कि मल्ला मानिला में देवी के भगवती रूप की पूजा का श्रीगणेश हुआ। यहां स्थित प्राचीन कुटिया में मौजूद अभिलेख के अनुसार मंदिर की स्थापना संवत 1346 (1289 ई.) में हुई। इतिहाकारों के अनुसार चंद राजा त्रिलोक चंद (1296-1303) ने कत्यूरी राजाओं को पराजित कर बारामंडल, पालीपछाऊं तथा छखाता पर अधिकार कर लिया था। मल्ला मानिला का पूरा वैभव चंद राजवंश को मिला तो इस राजवंश ने कत्यूरी शासकों की थाती को अपने शासन में धरोहर की भांति सहेज कर रखा।

दैनिक जागरण, हल्द्वानी, शनिवार, 15 अक्टूबर 2022

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